एससी-एसटी एक्ट पर केंद्र सरकार द्वारा लाए संशोधित कानून के विरोध में अब आम आदमी भी सड़कों पर निकल आया है। आइए जानते हैं कि आखिर क्या वजह रही कि शांति से अपना काम-धंधा करने वाले लोग सड़कों पर अपना विरोध दर्ज करने उतर पड़े हैं।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को एससी-एसटी अत्याचार निवारण एक्ट के तहत तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगाई थी और अग्रिम जमानत से जुड़े कुछ बदलाव किए थे।
अदालत का कहना था कि इस एक्ट का इस्तेमाल बेगुनाहों को डराने के लिए नहीं होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार शिकायत मिलने पर एफआईआर से पहले जांच जरूरी है। तुरंत गिरफ्तारी नहीं होगी साथ ही आरोपी को अग्रिम जमानत का अधिकार होगा।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दलित संगठनों ने 2 अप्रैल को भारत बंद बुलाया था। इस बंद का कई राजनीतिक पार्टियों ने भी समर्थन किया था। इस दौरान 10 से ज्यादा राज्यों में हिंसा में 14 लोगों की मौत हुई थी।
विपक्ष और एनडीए के सहयोगी दल केंद्र सरकार से अध्यादेश लाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदलने की मांग कर रहे थे। इसके बाद केंद्र ने संसद के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ मानसून सत्र में एक बिल पास कर संशोधित कानून बनाया। इसके अनुसार एफआईआर के लिए जांच जरूरी नहीं। जांच अधिकारी को गिरफ्तारी का अधिकार होगा और इसमें अब अग्रिम जमानत भी नहीं मिलेगी।
एक्ट में हुए संशोधन का विरोध करने वालों का कहना है कि एससी-एसटी एक्ट का दुरुपयोग सामान्य और पिछड़ी जाति के लोगों को फंसाने में किया जा रहा है और सुप्रीम कोर्ट का फैसला सही था।
वहीं राजनीति से जुड़े विश्लेषकों का मानना है कि यह 'सियासी संग्राम' वोटों की राजनीति से प्रेरित है और देश के 17% दलित वोटों को लुभाने की योजना है। उल्लेखनीय है कि इस वर्ग का 150 से अधिक लोकसभा सीटों पर प्रभाव है और वर्तमान में 131 सांसद इसी वर्ग से आते हैं। ऐसे में कोई भी दल इन्हें नाराज नहीं करना चाहता है।