नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट आपसी सहमति से स्थापित समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी में रखने वाली आईपीसी की धारा 377 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर गुरुवार को फैसला सुनाएगा। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान पीठ यह फैसला सुनाएगी। कोर्ट ने जुलाई माह में इस मुद्दे पर फैसला सुरक्षित रख लिया था और स्पष्ट किया था कि ऐसे लोगों के विवाह करने के मुद्दे पर कोई व्यवस्था नहीं देगा। जानते हैं धारा 377।
क्या है धारा 377? : भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के मुताबिक कोई किसी पुरुष, स्त्री या पशुओं से प्रकृति की व्यवस्था के विरुद्ध संबंध बनाता है, तो यह अपराध होगा। इस अपराध के लिए उसे उम्रकैद या 10 साल तक की कैद के साथ आर्थिक दंड हो सकता है। सीधे शब्दों में कहें तो धारा 377 के मुताबिक अगर 2 वयस्क आपसी सहमति से भी समलैंगिक संबंध बनाते हैं, तो वह अपराध होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने बदला था फैसला : सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए धारा 377 को बहाल कर दिया था। हाईकोर्ट ने 2009 में नाज फाउंडेशन की याचिका पर धारा 377 को हल्का कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ कई समीक्षा याचिकाएं दायर की गईं। इन्हें बाद में रिट याचिकाओं में बदल दिया गया और मामला संविधान पीठ को सौंप दिया गया था।
पांच जजों की पीठ देगी फैसला : 5 जजों की संविधान पीठ यह तय करेगी कि सहमति से 2 वयस्कों द्वारा बनाए गए यौन संबंध अपराध के दायरे में आएंगे या नहीं? संविधान पीठ में मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस रोहिंटन नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चन्द्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा शामिल हैं।