प्रशासनिक दृष्टि से इंदौर के निर्माण और क्रमश: उसके विकास में जिन लोगों की महती भूमिका रही है, उनमें स्व. सिरेमल बापना का नाम अत्यंत महत्वपूर्ण है। वे होलकर स्टेट में 14 वर्ष तक प्रधानमंत्री रहे। नाबालिग शासन के सर्वेसर्वा रहे। वे एक कुशल प्रशासक ही नहीं, संवेदनशील इंसान भी थे। तभी तो वे इंदौर के नागरिकों के दु:ख-दर्द को समझते थे और सदैव उनके हित में निर्णय लेते थे। उन्होंने मानवीय आधार पर शासन चलाया। शायद इसीलिए उन्हें 'संत राजनीतिज्ञ' की संज्ञा दी गई।
इंदौर की जनता उन्हें बहुत चाहती थी। इसीलिए वे एक बार जल-कर वृद्धि का विरोध कर रहे उग्र हड़तालियों के बीच अकेले चले गए थे और समस्या सुलझा दी थी। श्री बापना ने ही इंदौर के पुन: निर्माण हेतु योजना तैयार करने के लिए पैट्रिक गिडीस को आमंत्रित किया था। गिडीस द्वारा प्रस्तुत विस्तृत रिपोर्ट वर्षों तक इंदौर के विकास के लिए मार्गदर्शक बनी रही। श्री बापना ने कृषि और सहकारिता के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय कार्य किया। उन्होंने ही 1920 व 1927 में सर्वप्रथम ग्राम पंचायत कानून बनवाया था।
इंदौर नगर पालिका को अधिक अधिकार देने के लिए अधिनियम में संशोधन करवाया। इंदौर को वस्त्र उद्योग में देश के मानचित्र पर स्थापित करने और इस उद्योग की समस्याओं को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में उस समय उल्लेखनीय उपलब्धियों का श्रेय भी श्री बापना को जाता है। श्री बापना ने सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के लिए अनेक कानून बनवाए। वर्ष 1882 में जन्मे श्री सिरेमल बापना का स्वर्गवास 1964 में हुआ था। वे 41 वर्ष तक प्रशासक रहे। प्रधानमंत्री के रूप में उनका निवास बक्षीबाग स्थित कोठी में रहा।
वर्साय संधि में सहभागी थे बापनाजी : नवंबर 1914 में ब्रिटेन तथा तुर्की के मध्य युद्ध छिड़ जाने का समाचार जब इंदौर पहुंचा तो इंदौर नगर के शिया तथा सुन्नी मुस्लिमों ने होलकर राज्य के तत्कालीन सहायक पुलिस निरीक्षक श्री अजीज-उर-रहमान खान की अध्यक्षता में एक सभा का आयोजन कर तुर्की के कार्यों की आलोचना की थी।
प्रथम विश्वयुद्ध में इंदौर कॉन्टिजेंट ने अपूर्व शौर्य का प्रदर्शन किया। अंतत: जर्मन पक्ष ने ब्रिटेन के पक्ष के समक्ष घुटने टेक दिए। 18 जनवरी 1919 ई. को फ्रांस के प्रसिद्ध वर्साय के शीशमहल में संधि वार्ता प्रारंभ हुई। इंदौर राज्य के लिए यह अत्यंत गौरव की बात है कि इस संधि सम्मेलन में इंदौर रियासत के प्रधानमंत्री सर सिरेमल बापना ने भी हिस्सेदारी की थी।