महाराजा के स्नेहभाव से द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान इंदौर के नागरिकगण भी उद्वेलित हो उठे। नगर में जगह-जगह धन एकत्रित करने का अभियान चल पड़ा। इंदौर के नागरिकों ने 5 हजार पौंड की राशि ब्रिटिश सरकार को एक हवाई जहाज खरीदने के लिए भेंट की। उस सहायता के साथ यह अनुरोध भी किया गया था कि उस लड़ाकू विमान पर 'इंदौर नगर' लिखवाया जाना चाहिए। इस अनुरोध को स्वीकार कर लिया गया। खरीदे गए विमान पर 'इंदौर नगर' अंकित करवाया गया। यह कल्पना ही रोमांचित कर देने वाली है, जब शत्रु के क्षेत्र में 'इंदौर नगर' कहर ढाता था और आक्रमण के बाद वह जहाज सकुशल लौट आता था।
द्वितीय विश्वयुद्ध 1939 से 1945 तक चलता रहा। इस अवधि में इंदौर की कपड़ा मिलों पर भी भारी दबाव रहा, क्योंकि युद्ध काल में ब्रिटेन का वस्त्र उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुआ था। युद्ध काल में इंदौर की कपड़ा मिलों ने 5 करोड़ का कपड़ा ब्रिटेन को निर्यात किया था। इसके अतिरिक्त साढ़े 3 करोड़ की सैनिक सामग्री भी भेजी गई थी। भारतीय सैनिक सहायता कोष में इंदौर राज्य के नागरिकों ने 6,58,234 रु. का दान किया था। राज्य के कर्मचारियों व जनता ने ब्याजरहित रक्षा-पत्र व 3 प्र.श. ब्याज देने वाले रक्षा-पत्र भी खरीदे जिनका कुल मूल्य 72 लाख रु. से अधिक था।
इस प्रकार इंदौर राज्य ने द्वितीय विश्वयुद्ध में जन-धन की सहायता प्रदान की और इंदौर के सैकड़ों वीर योद्धाओं ने उस प्रलयकारी युद्ध में भाग लिया। अनेक वीर मोर्चों पर लड़ते हुए शहीद हो गए। उन अमर शहीदों के प्रति नगर ऋणी रहेगा जिन्होंने विदेशों में कर्तव्य पालन में प्राण न्योछावर कर दिए और जिन्हें अंत समय में अपनी मातृ-भूमि का स्पर्श तक नहीं मिल पाया।