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Covid 19 : कोरोना से बचे रहने के लिए योग के 7 तरीके

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अनिरुद्ध जोशी

कोरोना वायरस की महामारी के दौर में इससे बचने का सबसे उत्तम उपाय है अच्छी किस्म का मास्क लगाएं, हाथों को बार-बार धोएं, दो गज दूरी बनाकर रखें और अपना इम्यून सिस्टम बढ़ाएं। यह नहीं करते हो तो सब उपाय व्यर्थ है। यहां योग की कुछ ऐसी क्रियाएं बताई जा रही हैं जिन्हें करने से कोरोना जैसे संक्रमण से बचा जा सकता है। यह लेख उन लोगों के लिए है जिन्हें कोरोना नहीं हुआ है। डॉक्टर की सलाह पर ही निम्निलिखित योग करना चाहिए।
 
 
योग में क्रियाओं का बहुत महत्व है। शरीर में जमा गंदगी या कफ इन क्रियाओं को करके निकाला जा सकता है और इन्हें करने से शरीर निरोगी और मजबूत बनता है। परंतु, इन्हें करने के लिए किसी योग्य योग शिक्षक की आवश्‍यकता होती है। मन से ही घर में ही यह क्रियाएं नहीं करना चाहिए। यह क्रियाएं हैं- 1.जल नेती, 2.सूत नेती, 3.कपाल नेती, 4.बाधी क्रिया, 5.धौती क्रिया, 6.बस्ती, 7.शंख प्रक्षालन।
 
1. सूत नेती : एक मोटा लेकिन कोमल धागा जिसकी लंबाई बारह इंच हो और जो नासिका छिद्र में आसानी से जा सके लीजिए। इसे गुनगुने पानी में भिगो लें और इसका एक छोर नासिका छिद्र में डालकर मुंह से बाहर निकालें। यह प्रक्रिया बहुत ही धैर्य से करें। फिर मुंह और नाक के डोरे को पकड़कर धीरे-धीरे दो या चार बार ऊपर-नीचे खींचना चाहिए। इसी प्रकार दूसरे नाक के छेद से भी करना चाहिए। एक दिन छोड़कर यह नेती क्रिया करनी चाहिए।
 
 
2. जल नेती : दोनों नासिका से बहुत ही धीरे-धीरे पानी पीएं। गिलास की अपेक्षा यदि नलीदार बर्तन होतो नाक से पानी पीने में आसानी होगी। यदि नहीं होतो पहले एक ग्लास पानी भर लें फिर झुककर नाक को पानी में डुबाएं और धीरे-धीरे पानी अंदर जाने दें। नाक से पानी को खींचना नहीं है। ऐसा करने से आपको कुछ परेशानी का अनुभव होगी। गले की सफाई हो जाने के बाद आप नाक से पानी पी सकते हैं।
 
3. कपाल नेती : मुंह से पानी पी कर धीरे-धीरे नाक से निकालें।
 
 
नेती क्रिया के लाभ :
1. इससे आंखों की दृष्टि तेज होती है।
2. इस क्रिया के अभ्यास से नासिका मार्ग की सफाई होती ही है।
3. इससे कान, नाक, दांत, गले आदि के कोई रोग नहीं हो पाते हैं।
5. इसे करते रहने से सर्दी, जुकाम और खांसी की शिकायत नहीं रहती।
6. इस क्रिया को करने से दिमाग का भारीपन हट जाता है, जिससे दिमाग शांत, हल्का और सेहतमंद बना रहता है।
7. नेती क्रिया को मुख्यत: श्वसन संस्थान के अवयवों की सफाई के लिए प्रयुक्त किया जाता है। इसे करने से प्राणायाम करने में भी आसानी होती है।
 
सावधानी : सूत को नाक में डालने से पहले गरम पानी में उबाल लिया जाता है जिससे किसी प्रकार के जीवाणु नहीं रहते। नाक, गले, कान, दांत, मुंह या दिमाग में किसी भी प्रकार की समस्या होतो नेती क्रिया योगाचार्य के मार्गदर्शन में करना चाहिए। इसे करने के बाद कपालभाती कर लेना चाहिए।
 
4. बाधी क्रिया : बाघ आदि जानवर अस्वस्थ होने पर इसी प्रकार की क्रिया से स्वास्थ्य लाभ लेते हैं, इसलिए इसका नाम बाधी क्रिया है।
 
 
विधि : खान-पान के दो घंटे बाद जब आधी पाचन क्रिया हुई होती है, तब दो अंगुली गले में डालकर वमन (उल्टी) किया जाता है जिससे अधपचा भोजन बाहर निकल आता है- यही बाधी क्रिया है।
 
ऐसा भी कर सकते हैं। पांच छ: ग्लास गुनगुना पानी पी लें। पानी में थोड़ा नमक डाला जा सकता है। इसके बाद दोनों हाथों को जांघ पर रखकर थोड़ा आगे की ओर झुक कर खड़े हो जाइए। उड्डीयान बंध लगाकर नौली क्रिया करें। पिया हुआ गुनगुना जल को वमन के माध्यम से पूरी तरह बाहर निकाले दें। आप दो अँगुलियों को गले में डालकर वमन क्रिया का आरंभ कर सकते हैं।
 
सावधानी : बाधी क्रिया को करने के लिए किसी योग्य योग चिकित्सक की सलाह लें। यदि किसी भी प्रकार का शारीरिक रोग हो तो यह क्रिया नहीं करना चाहिए। किसी भी प्रकार से किसी भी योगासन या क्रियाओं को जबरदस्ती नहीं करना चाहिए।
 
5. धौती क्रिया : यह कई तरह से होती है उसमें से वस्त्र धौती को करना थोड़ा कठिन है परंतु इससे संपूर्ण कफ बाहर निकल जाता है।
 
विधि : पतले सूत के कपड़े को मुंह के द्वारा पेट में ले जाकर फिर धीरे-धीरे सावधानी पूर्वक बाहर निकालना ही वस्त्र धौती क्रिया है।
 
 
सावधानी : इसे हठयोग के प्रवीण गुरु के प्रत्यक्ष निर्देशन में सीखना चाहिए। इस क्रिया को किसी योग्य योग शिक्षक से सीख कर ही करें। मन से ना करें। कुछ लोग नींबू और सैंधा नमक मिला पानी पीकर बाधी क्रिया अर्थात वमन क्रिया करने भी शरीर की गंदगी बाहार निकालते हैं। इसे बैक्टीरिया बाहर निकल जाते हैं।
 
इनका लाभ : इससे पेट की सभी प्रकार की गंदगी, कफ आदि उस अधपचे अन्न के साथ निकल जाती है। फलतः पेट संबंधी शिकायतें दूर होती हैं, साथ ही कफजन्य रोगों में काफी लाभ मिलता है। उक्त क्रिया से बुद्धि उज्जवल हो जाती है और शरीर में सदा स्फूर्ति बनी रहती है। इससे योगाभ्यास का शत-प्रतिशत लाभ प्राप्त होता है। इस क्रिया से पित्त की अधिकता समाप्त होती है। इसे आहारनाल साफ हो जाता है और पूरी तरह से कफ बाहर निकल जाता है।
 
 
6. बस्ती- योगानुसार बस्ती करने के लिए पहले गणेशक्रिया का अभ्यास करना आवश्यक है। गणेशक्रिया में अपना मध्यम अंगुली में तेल चुपड़कर उसे गुदा- मार्ग में डालकर बार-बार घुमाते हैं। इससे गुदा-मार्ग की गंदगी दूर हो जाती है और गुदा संकोचन और प्रसार का भी अभ्यास हो जाता है।
 
जब यह अभ्यास हो जाए, तब किसी होद या टब में कमर तक पानी में खड़े होकर घुटने को थोड़ा आगे की ओर मोड़कर दोनों हाथों को घुटनों पर दृढ़ता से रखकर फिर गुदा मार्ग से पानी ऊपर की ओर खींचे। आंत और पेट में जब पानी भर जाए तब पेट को थोड़ा इधर-उधर घुमाकर, पुनः गुदा मार्ग से पूरा पानी निकाल दें।
 
 
7. शंख प्रक्षालन- कुछ लोग इसकी जगह शंख प्रशालन या प्रक्षालन करते हैं। प्रातःकाल नित्यक्रिया से निवृत्त हो गुनगुना पानी दो-तीन या चार गिलास पीने के बाद वक्रासन, सर्पासन, कटिचक्रासन, विपरीतकरणी, उड्डियान एवं नौली का अभ्यास करें। इससे अपने आप शौच का वेग आता है। शौच से आने पर पुनः उसी प्रकार पानी पीकर उक्त आसनादिकों का अभ्यास कर शौच को जाएं।
 
इस प्रकार बार-बार पानी पीना, आसनादि करना तथा शौच को जाना सात-आठ बार हो जाने पर अंत में जैसा पानी पीते हैं, वैसा ही पानी जब स्वच्छ रूप से शौच में निकलता है, तब पेट पूरा का पूरा धुलकर साफ हो जाता है। इसके बाद कुछ विश्राम कर खिचड़ी, घी, हल्का-सा खाकर पूरा दिन लेटकर आराम किया जाता है। दूसरे दिन से सभी काम पूर्ववत करते रहें। इस क्रिया को दो-तीन महीने में एक बार करने की आवश्यकता होती है।
 
हिदायत- यह क्रिया किसी जानकार व्यक्ति के निर्देशन में ही करना चाहिए। इसके अभ्यास से आंतों में जमा गंदगी दूर होती है। विशेष लाभ यह है कि लिंग-गुदा आदि के सभी रोग सर्वथा समाप्त हो जाते हैं। कई लोग इसकी जगह एनिमा लेकर काम चला लेते हैं।
 
 
उपरोक्त के साथ ही आप अनुलोम-विलोम प्रणायाम करें और मकरासन योग भी करें। उपरोक्त सभी योग किसी योग्य शिक्षक की देखरेख में ही अच्छे से सीख कर करें।

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