डॉक्टर कहते हैं कि डर से आपकी प्रतिरोधक क्षमता पर असर पड़ता है। इसीलिए कहा गया है कि ध्यान से शरीर में प्रतिरक्षण क्षमता (इम्यून) का विकास होता है। ध्यान करने से तनाव नहीं रहता है। दिल में घबराहट, भय और कई तरह के विकार भी नहीं रहते हैं। ध्यान से मन और मस्तिष्क शांत रहता है। कोराना संकट के दौर और लॉकडाउन में ध्यान करना बहुत ही जरूरी है।
1. रोग को शारीरिक बीमारी कहते हैं और शोक को सभी तरह के मानसिक दुख। दोनों की ही उत्पत्ति मन, मस्तिष्क और शरीर के किसी हिस्से में होती है। ध्यान उसी हिस्से को स्वस्थ कर देता है। ध्यान मन और मस्तिष्क को भरपूर ऊर्जा और सकारात्मकता से भर देता है। शरीर भी स्थित होकर रोग से लड़ने की क्षमता प्राप्त करने लगता है। चिंता और चिंतन से उपजे रोगों का खात्मा होगा।
2. ध्यान से श्वास-प्रश्वास में सुधार होने से किसी भी तरह के दुख के मामले में हम आवश्यकता से अधिक चिंता नहीं करते। हमारी भावनाएं श्वास-प्रश्वास से संचालित होते हैं। श्वास-प्रश्वास के सही होने से भावनाएं भी नियंत्रित हो जाती है। ध्यान से हर तरह का भय जाता रहेगा। कार्य और व्यवहार में सुधार होगा। रिश्तों में तनाव की जगह प्रेम होगा। दृष्टिकोण सकारात्मक होगा।
3. ध्यान से उच्च रक्तचाप नियंत्रित होता है। सिरदर्द दूर होता है। शरीर में प्रतिरक्षण क्षमता का विकास होता है, जोकि किसी भी प्रकार की बीमारी से लड़ने में महत्वपूर्ण है। ध्यान से शरीर में स्थिरता बढ़ती है। यह स्थिरता शरीर को मजबूत करती है।
4. प्रतिदिन तीन माह तक सिर्फ 10 मिनट का ध्यान करें। आपके मस्तिष्क में परिवर्तन होंगे और आप किसी भी समस्या को पहले की अपेक्षा सकारात्मक तरीके से लेंगे। मात्र तीन माह में हर तरह के रोग को रोककर शोक को मिटाने की क्षमता है ध्यान में।
5. ध्यान करने के लिए सबसे पहले स्नान आदि से निवृत्त होकर कुश आसन पर सुखासन में आंखे बंद करके बैठ जाएं। बस आपको 10 मिनट तक के लिए आंखें बंद करके रखना है। इस दौरान शरीर को हिलाना डुलाना नहीं है। इस दौरान आंखों के सामने के अंधेरे को देखते रहना और श्वासों के आवागमन को महसूस करते रहना है। इस दौरान आपके भीतर कई विचार आएंगे और जाएंगे। उन्हें होशपूर्वक देखें कि एक विचार आया और गया फिर ये दूसरा विचार आया। बस यही करना है। मानसिक हलचल को बस देखें। श्वास की गति अर्थात छोड़ने और लेने पर ही ध्यान देंगे तो मनसिक हलचल बंद हो जाएगी। बस यही करना है।