सोशल मीडिया पर एक खबर तेजी से वायरल हो रही है कि फोर्ब्स की ताजा जारी की गई सूची में भारत को एशिया का सबसे भ्रष्ट देश का स्थान मिला है। कई यूजर्स इस खबर के साथ एक अखबार की कटिंग भी शेयर कर रहे हैं, जिसका शीर्षक है- ‘फोर्ब्स की सूची में भारत एशिया का सबसे भ्रष्ट देश’।
क्या है वायरल?
अखबार की कटिंग के मुताबिक, ‘फोर्ब्स ने एशिया के सबसे भ्रष्ट देशों की एक सूची जारी की है, इसमें भारत को सबसे भ्रष्ट देश बताया गया है और पाकिस्तान इस लिस्ट में चौथे नंबर पर है। ट्विटर पर जारी इस लिस्ट में पहले नंबर पर भारत, दूसरे पर वियतनाम, तीसरे पर थाईलैंड, चौथे पर पाकिस्तान और पांचवें नंबर पर म्यांमार है। यह सूची ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के 18 महीने के सर्वेक्षण पर आधारित है। इसमें 16 देशों के 20 हजार से ज्यादा लोगों से बातचीत की गई।’
क्या है सच?
इस खबर की पड़ताल के लिए हमने सबसे पहले अखबर की हेडलाइन ‘फोर्ब्स की सूची में भारत एशिया का सबसे भ्रष्ट देश’ को सर्च किया, तो हमें कई न्यूज रिपोर्ट मिलीं जिसमें भारत की इसी रैकिंग का जिक्र था। लेकिन सभी रिपोर्ट्स दो साल पहले की हैं।
चूंकि सभी खबरों में ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के सर्वे का जिक्र था, तो हमने उसकी वेबसाइट खंगाली। बर्लिन स्थित वाचडॉग के 2017 में एशिया पैसिफिक के लिए जारी किए गए
ग्लोबल करप्शन बैरोमीटर के मुताबिक, एशिया पैसिफिक में सबसे ज्यादा घूसखोरी दर भारत में थी- 69 फीसदी।
वहीं 65 प्रतिशत के साथ वियतनाम दूसरे स्थान पर था जबकि पाकिस्तान 40 प्रतिशत के साथ चौथे नंबर पर था।
इसी सर्वे के आधार पर फोर्ब्स में रिपोर्ट पब्लिश की गई थी, जिसे फोर्ब्स के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से 18 नवंबर 2017 को ट्वीट किया गया था।
अब यह स्पष्ट है कि जिस सर्वे के आधार पर भारत को एशिया का सबसे भ्रष्ट देश बताया गया था, वह साल 2017 का है।
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा जारी किए गए 2018 के करप्शन परसेप्शन इंडेक्स (सीपीआई) के मुताबिक, 180 देशों के सूची में भारत की रैकिंग 78वीं है।
वहीं, एशिया-पैसिफिक में कुल 31 देशों की रैंकिंग की जाती है, जिसमें 2018 में भारत 13वें पायदान पर मौजूद है। 2018 की रैकिंग के मुताबिक, एशिया-पैसिफिक में सबसे भ्रष्ट देश उत्तर कोरिया है, जिसकी रैकिंग 176 है।
वेबदुनिया की पड़ताल में पाया गया कि भारत को एशिया का सबसे भ्रष्ट देश बताने वाला दावा पुराना है, जो 2017 की पुरानी रिपोर्ट पर आधारित है।
(Photo: Transparency International)