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धरती का क्रम विकास और विनाश का काल...

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अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

, मंगलवार, 5 सितम्बर 2017 (15:53 IST)
पुराण और वेद अनुसार धरती की उत्पत्ति, विकास और विनाश के बारे में स्पष्ट रूप से लिखा हुआ मिलता है। धरती सूर्य का एक अंश है। मंगल और चंद्र धरती का अंश है और उसी तरह अन्य ग्रह की स्थिति है। एक महातारा के विस्फोट से यह सभी जन्में हैं। धरती के जन्म के बाद जब धरती की आग ठंडी हुई तो वह करोड़ों वर्ष तक जल में डूबी रही। उस काल को पुराणों में गर्भकाल कहा गया।
 
1. गर्भकाल : करोड़ों वर्ष पूर्व संपूर्ण धरती जल में डूबी हुई थी। जल में ही तरह-तरह की वनस्पतियों का जन्म हुआ और फिर वनस्पतियों की तरह ही एक कोशीय बिंदु रूप जीवों की उत्पत्ति हुई, जो न नर थे और न मादा। 
 
2. शैशव काल : फिर संपूर्ण धरती जब जल में डूबी हुई थी तब जल के भीतर अम्दिज, अंडज, जरायुज, सरीसृप (रेंगने वाले) केवल मुख और वायु युक्त जीवों की उत्पत्ति हुई।
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3. कुमार काल : इसके बाद पत्र ऋण, कीटभक्षी, हस्तपाद, नेत्र श्रवणेन्द्रियों युक्त जीवों की उत्पत्ति हुई। इनमें मानव रूप वानर, वामन, मानव आदि भी थे।
 
4. किशोर काल : इसके बाद भ्रमणशील, आखेटक, वन्य संपदाभक्षी, गुहावासी, जिज्ञासु अल्पबुद्धि प्राणियों का विकास हुआ।
 
5. युवा काल : फिर कृषि, गोपालन, प्रशासन, समाज संगठन की प्रक्रिया हजारों वर्षों तक चलती रही।
 
6. प्रौढ़ काल : वर्तमान में प्रौढ़ावस्था का काल चल रहा है, जो लगभग विक्रम संवत 2042 पूर्व शुरू हुआ माना जाता है। इस काल में अतिविलासी, क्रूर, चरित्रहीन, लोलुप, यंत्राधीन प्राणी धरती का नाश करने में लगे हैं।
 
7. वृद्ध काल : माना जाता है कि इसके बाद आगे तक साधन भ्रष्ट, त्रस्त, निराश, निरूजमी, दुखी जीव रहेंगे।...इनकी आयु बहुत कम होगी।
 
8. जीर्ण काल : फिर इसके आगे अन्न, जल, वायु, ताप सबका अभाव क्षीण होगा और धरती पर जीवों के विनाश की लीला होगी।
 
9. उपराम काल : इसके बाद करोड़ों वर्षों आगे तक ऋतु अनियमित, सूर्य, चन्द्र, मेघ सभी विलुप्त हो जाएंगे। भूमि ज्वालामयी हो जाएगी। अकाल, प्रकृति प्रकोप के बाद ब्रह्मांड में आत्यंतिक प्रलय होगा।

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