Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

हिन्दू धर्मानुसार ऐसी बनावट है ब्रह्मांड की और इस तरह घिरा हुआ है यह

हमें फॉलो करें हिन्दू धर्मानुसार ऐसी बनावट है ब्रह्मांड की और इस तरह घिरा हुआ है यह

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

वोदों के अनुसार अनुसार यह ब्रह्मांड अंडाकार है। इस ब्रह्मांड का ठोस तत्व जल या बर्फ और उसके बादलों से घिरा हुआ है। जल से भी दस गुना ज्यादा यह अग्नि तत्व से घिरा हुआ और इससे भी दस गुना ज्यादा यह वायु से घिरा हुआ माना गया है। वायु से दस गुना ज्यादा यह आकाश से घिरा हुआ है और यह आकाश जहां तक प्रकाशित होता है वहां से यह दस गुना ज्यादा तामस अंधकार से घिरा हुआ है। और यह तामस अंधकार भी अपने से दस गुना ज्यादा महत्तत्व से घिरा हुआ है जो असीमित, अपरिमेय और अनंत है। उस अनंत से ही पूर्ण की उत्पत्ति होती है और उसी से उसका पालन होता है और अंतत: यह ब्रह्मांड उस अनंत में ही लीन हो जाता है।
 
इसे उल्टे क्रम में समझे : महत् से घिरा अनंत तामस अंधकार और उससे ही घिरे आकाश को स्थान और समय कहा गया है। इससे ही दूरी और समय का ज्ञान होता है। आकाश से ही वायु तत्व की उत्पत्ति होती है। वायु से ही तेज अर्थात अग्नि की और अग्नि से जल, जल से पृथ्‍वी की सृष्‍टी हुई। इस पृथ्‍वी पर जो जीवन है उनमें पृथ्‍वी और आकाश दोनों का ही योगदान माना गया है। मानव या अन्य सिर्फ माटी का पुतला ही नहीं है, पांचों तत्व का जोड़ है।
 
सरल भाषा : आज की भाषा में इसे कहें तो हमारी धरती पर जल तत्व की मात्रा अधिक है अर्थात यह धरती जल से घिरी हुई है। प्रारंभी में यह जल से ही ढकी हुई थी। जल से भी अधिक इस धरती पर वायु तत्व विद्यमान है। अर्थात संपूर्ण जल राशि और धरती को वायु ने अपने घेरे में ले रखा है। जहां तक वायु है वहां के बाद अंतरिक्ष शुरू होता है जिसे आकाश भी कह सकते हैं तो यह वायु आकाश से घिरा हुआ है।

फिर जहां तक प्रकाश फैला हुआ है वहीं तक आकाश या जहां तक ग्रह-नक्षत्र विद्यमान है वहीं तक आकाश माना जाता है फिर यह आकाश भी तामस अंधकार से घिरा हुआ है और यह तामस अंधकार भी एक अन्य तरह के अंधकार महत् से घिरा हुआ है।

आत्मा-महत्-अंधकार-अकाश-वायु-अग्नि-जल-धरती 

विस्तार से ऐसे समझे :
ब्रह्मा की इच्छा से त्रिगुण युक्त प्रधान पुरुष का जन्म हुआ। उससे महत् तत्व उत्पन्न हुआ। सृजन की इच्‍छा से प्रेरित होकर अव्यय अव्यता में प्रवेश करके यह आत्मा से अधिष्ठित हो गया। इससे प्रकट सृष्टि को एक रूप (आकार) मिला। तत्पश्चात् महत् से संकल्प वृत्ति, सात्विक अहंकार उत्पन्न हुआ। फिर त्रिगुण रजोधिक अहंकार का जन्म हुआ। फिर रजोगुण से आवृत्त तामसा अहंकार का जन्म हुआ। अहंकार से भूत तन्मात्राएं और उससे अव्यय आकाश उत्पन्न हुआ। तन्मात्राओं से हो का सर्ग हुआ। फिर आकाश से स्पर्श, स्पर्श से वायु, वायु से रूप, रूप से अग्नि, अग्नि से रस, और रस से जल, जल से गंध मात्र धरा उत्पन्न हुई।
 
स्पर्श आकाश को घरे रहता है और रूप मात्रा को क्रियात्मक वायु वहन करता है। विभावसु रस मात्र को घेरे रखता है और सब रसों से युक्त जल गंध मात्र को आवृत्त किए रहता है। यह धरा पांच गुणों वाली है। जल चार गुणों वाला, अग्नि तीन गुणों वाली और आकाश मात्र एक गुण वाला होता है। 
 
ब्रह्मांड में एक जल के बुलबुले के समान पितामह अवतीर्ण हुए। यही विश्‍व में व्यक्त रहने वाले विष्णु है, वे ही भगवान रुद्र, उसी अंड में समस्त लोक और विश्व रहता है। ब्रह्मांड के चारों ओर जल होता है। जल के चारों और से तेज आवृत्त रहता है। यह जल से दस गुना होता है। तेज से दस गुनी वायु इसे आवृत करती है और वायु से दस गुना आकाश, वायु को आवृत करता है। अहंकार आकाश को घरे रहता है और महत् तत्व के प्रधान तथा शब्द हेतु स्वयं आवृत्त होता है। इस प्रकार यह ब्रह्मांड मुख्यत: सात आवरणों से युक्त है। 
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

यदि आपके घर के मंदिर में शिखर है, तो यह अवश्य पढ़ें