वर्तमान सूचना-प्रौद्योगिकी के दौर में कुछ लोगों के मन में यह प्रश्न उठता है कि श्राद्ध क्यों किया जाए? हिन्दू धर्म में अनेक मान्यताएं प्रचलित हैं। पहली बात मनुष्य की आत्मा मनुष्य योनि से निम्न योनियों में सामान्यत: शरीर धारण नहीं करती, बहुत ही असाधारण मामलों में यह बात होती है। एक बार मनुष्य योनि में शरीर लेने के बाद पुन: पुन: मनुष्य का ही शरीर मिलता है। सिर्फ स्त्री और पुरूष का भेद हो सकता है। यह बात आपको अटपटी लगेगी क्योंकि हमारे धर्म शास्त्रों में तो मनुष्य योनि से निम्न योनियों में जाने की चर्चा है, जो पूर्णत: सत्य नहीं है।
अब प्रश्न है कि "श्राद्ध" क्यों किया जाए? "श्राद्ध" की आवश्यकता व प्रासंगिकता को समझने से पूर्व कुछ बातें समझ लेनी अति-आवश्यक हैं। जैसे साधारण मृत्यु में सिर्फ स्थूल शरीर ही नष्ट होता है, सूक्ष्म शरीर नहीं। योग सूत्र में सात शरीरों के बारे में उल्लेख है। ये हैं - स्थूल शरीर, आकाश शरीर, सूक्ष्म शरीर, मानस शरीर, आत्म शरीर, ब्रह्म शरीर, निर्वाण शरीर। साधारण मृत्यु में ये सारे शरीर स्थूल शरीर को छोड़कर हमारे साथ होते हैं।
भौतिक रूप से हमारे पास इन्द्रयां नहीं होती किन्तु मन हमारे साथ ही होता है, जो सूक्ष्म शरीर के रूप में श्राद्धकर्ता द्वारा शरीर छोड़कर जा चुकी आत्मा के लिए किए गए कर्म को मानसिक रूप से ग्रहण करता है। यह बात सही है कि सामान्यत: मनुष्य के मरने के बाद आत्मा दूसरा शरीर धारण कर लेती है किन्तु उस आत्मा ने कब दूसरा शरीर धारण किया यह साधारण मनुष्य नहीं जान सकता। इसलिए ही उस सूक्ष्म शरीर में प्रविष्ट आत्मा के लिए यह श्राद्धकर्म किए जाते हैं।
यह कर्म न होने पर सूक्ष्म शरीर भी ठीक वैसी ही प्रतिक्रिया देता है, जैसे स्थूल शरीर में रहते हुए मान-अपमान होने पर देता था। इसलिए श्राद्धकर्म आवश्यक है किन्तु यह मरण को प्राप्त हुए व्यक्ति विशेष की प्रकृति पर अधिक निर्भर करता है कि उसके निमित्त श्राद्धकर्म का किया जाना कितना आवश्यक है एवं श्राद्धकर्म के ना किए जाने पर वह कैसी प्रतिक्रिया देगा। चूंकि सामान्य मनुष्य के पास अपने पूर्वजों के सूक्ष्मशरीर के संकेतों को समझने की व्यवस्था नहीं है इसलिए वह अपने पूर्वजों के निमित्त श्राद्ध कर उन सभी के प्रति अपनी श्रद्धा ज्ञापित करता है।
ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
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