-उपनिषद ज्ञान
उपनिषद कहते हैं कि मृत्यु शरीर की होती है, आत्मा की नहीं। जिस आत्मा ने खुद को शरीर से अलग करके नहीं देखा, वही जन्म, मृत्यु और उसके बीच के जीवन के दुखद चक्र से गुजरता रहेगा। यह गीता का उपदेश है कि 'न कोई मरता है और न कोई मारता है तो फिर मौत से क्यों डरना?' आओ अब जानते हैं कि वे तीन बातें क्या हैं जिन्हें सीखने से मृत्यु नहीं होती।
1. आपका सोचना, समझना, भावुक होना, प्रसन्न होना, दुखी होना या भयभीत होना यह सभी आपको शरीर ही बनाकर रखेगा। इसीलिए मात्र देखना और सुनना सीखें। देखें विचारों को, भावनाओं को, लोगों की प्रतिक्रिया को सुनें लेकिन उस पर अपनी कोई राय नहीं बनाएं और न ही विचार करें। जैसे सिनेमा के पर्दे पर एक चित्र आता है और चला जाता है लेकिन पर्दा सफेद का सफेद ही रहता है, उसी तरह हम अपने चित्त को सभी से अछूता कर लें, क्योंकि वह खाली है। बहुत कम लोग जानते हैं कि वे जो देख और सुन रहे हैं, उसमें मिलावट है विचार और भावनाओं की। मौन से ही मन की मृत्यु संभव है।
2. आस्तिकता को प्राप्त नहीं करना पड़ता है, क्योंकि वह हमें मुफ्त में मिली होती है। लेकिन नास्तिकता को अपने ज्ञान और साहस से हासिल करना होता है। किसी किताब को पढ़कर या किसी व्यक्ति से प्रभावित होकर यदि आप नास्तिक बने हैं तो आप गलत मार्ग पर हैं। अंत में आपको यह दोनों ही छोड़ना होता है तभी आगे बढ़ सकते हैं। बहुत आसान है, जैसे कि एक बच्चे की बुद्धि में आस्तिकता या नास्तिकता नहीं होती है। यह इसलिए जरूरी है कि आपको जानना होता है कि आप संसार में अकेले हैं और अपने साथ न्याय या अन्याय करने के लिए स्वतंत्र हैं।
3. यदि आप उपरोक्त दो स्टेप पार कर लेते हैं तो तीसरी स्टेप में आपको अच्छे से योगासन सीखने के बाद बस योग निद्रा में श्वासों पर ध्यान देते रहना है। एक दिन आप खुद ही शरीर से बाहर निकलने का अभ्यास करना सीख जाएंगे। मार्गदर्शन के लिए आपको योगसूत्र और उपनिषदों का निरंतर अध्ययन करते रहना चाहिए।