Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

आप नहीं जानते होंगे श्राद्ध के रहस्य की ये 6 बातें

हमें फॉलो करें आप नहीं जानते होंगे श्राद्ध के रहस्य की ये 6 बातें
पितृ पक्ष का महत्व - 
 
ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार देवताओं को प्रसन्न करने से पहले मनुष्य को अपने पितरों यानी पूर्वजों को प्रसन्न करना चाहिए।
 
हिन्दू धर्म में मृत्यु के बाद श्राद्ध करना बेहद जरूरी माना जाता है। मान्यतानुसार अगर किसी मनुष्य का विधिपूर्वक श्राद्ध और तर्पण ना किया जाए तो उसे इस लोक से मुक्ति नहीं मिलती और वह भूत के रूप में इस संसार में ही रह जाता है।

हिन्दू ज्योतिष के अनुसार भी पितृ दोष को सबसे जटिल कुंडली दोषों में से एक माना जाता है। पितरों की शांति के लिए हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक के काल को पितृ पक्ष श्राद्ध होते हैं। मान्यता है कि इस दौरान कुछ समय के लिए यमराज पितरों को आजाद कर देते हैं ताकि वह अपने परिजनों से श्राद्ध ग्रहण कर सकें।  
 
श्राद्ध क्या है? 
 
ब्रह्म पुराण के अनुसार जो भी वस्तु उचित काल या स्थान पर पितरों के नाम उचित विधि द्वारा ब्राह्मणों को श्रद्धापूर्वक दिया जाए वह श्राद्ध कहलाता है। श्राद्ध के माध्यम से पितरों को तृप्ति के लिए भोजन पहुंचाया जाता है। पिंड रूप में पितरों को दिया गया भोजन श्राद्ध का अहम हिस्सा होता है।
 
क्यों जरूरी है श्राद्ध देना? 
 
मान्यता है कि अगर पितर रुष्ट हो जाए तो मनुष्य को जीवन में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पितरों की अशांति के कारण धन हानि और संतान पक्ष से समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। संतान-हीनता के मामलों में ज्योतिषी पितृ दोष को अवश्य देखते हैं। ऐसे लोगों को पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।
 
क्या दिया जाता है श्राद्ध में? 
 
श्राद्ध में तिल, चावल, जौ आदि को अधिक महत्व दिया जाता है। साथ ही पुराणों में इस बात का भी जिक्र है कि श्राद्ध का अधिकार केवल योग्य ब्राह्मणों को है। श्राद्ध में तिल और कुशा का सर्वाधिक महत्व होता है। श्राद्ध में पितरों को अर्पित किए जाने वाले भोज्य पदार्थ को पिंडी रूप में अर्पित करना चाहिए। श्राद्ध का अधिकार पुत्र, भाई, पौत्र, प्रपौत्र समेत महिलाओं को भी होता है।
 
श्राद्ध में कौओं का महत्व :- 
 
कौए को पितरों का रूप माना जाता है। मान्यता है कि श्राद्ध ग्रहण करने के लिए हमारे पितर कौए का रूप धारण कर नियत तिथि पर दोपहर के समय हमारे घर आते हैं। अगर उन्हें श्राद्ध नहीं मिलता तो वह रुष्ट हो जाते हैं। इस कारण श्राद्ध का प्रथम अंश कौओं को दिया जाता है। 
 
किस तारीख में करना चाहिए श्राद्ध? 
 
सरल शब्दों में समझा जाए तो श्राद्ध दिवंगत परिजनों को उनकी मृत्यु की तिथि पर श्रद्धापूर्वक याद किया जाना है। अगर किसी परिजन की मृत्यु प्रतिपदा को हुई हो तो उनका श्राद्ध प्रतिपदा के दिन ही किया जाता है। इसी प्रकार अन्य दिनों में भी ऐसा ही किया जाता है।

इस विषय में कुछ विशेष मान्यता भी है जो निम्न हैं :- 
 
* पिता का श्राद्ध अष्टमी के दिन और माता का नवमी के दिन किया जाता है।
 
* जिन परिजनों की अकाल मृत्यु हुई जो यानी किसी दुर्घटना या आत्महत्या के कारण हुई हो उनका श्राद्ध चतुर्दशी के दिन किया जाता है।
 
* साधु और संन्यासियों का श्राद्ध द्वाद्वशी के दिन किया जाता है।
 
* जिन पितरों के मरने की तिथि याद नहीं है, उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन किया जाता है। इस दिन को सर्वपितृ श्राद्ध कहा जाता है। इस साल पितृ पक्ष अमावस्या 28 सितंबर 2019 को है। इसे सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है। इस दिन ब्राह्मण या किसी गरीब जरूरतमंद को भोजन करवाने के पश्चात सामर्थ्यनुसार दान दक्षिणा भी देनी चाहिए तथा संध्या के समय अपनी क्षमता अनुसार 2, 5 अथवा 16 दीपक अवश्य प्रज्ज्वलित करने चाहिए।

 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

क्या श्राद्ध कर्म करने से पितरों को मुक्ति या मोक्ष मिल जाता है? 4 रहस्य