छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्र दंतेवाड़ा में बहुत ही प्राचीन स्थान है जहां पर माता दंतेश्वरी का मंदिर है।परंपरा से देवी दन्तेश्वरी बस्तर राज्य के आदिवासियों की कुलदेवी हैं। इसे काकतीय राजाओं की कुलदेवी भी माना जाता है।
52वां शक्तिपीठ : कहते हैं कि यह 108 शक्तिपीठों में से एक है। कहते हैं कि यह वह स्थान हैं जहां पर देवी सती का दांत गिरा था इसीलिए इस स्थान का नाम दंतेश्वरी है। इसे देश का 52वां शक्तिपीठ माना जाता है।
मंदिर निर्माण का इतिहास : यहां सबसे प्राचीन मंदिर का निर्मांण अन्न्मदेव ने करीब 850 साल पहले कराया था। डंकिनी और शंखिनी नदी के संगम पर स्थित इस मंदिर का जीर्णोद्धार पहली बार वारंगल से आए पांडव अर्जुन कुल के राजाओं ने करीब 700 साल पहले करवाया था। अर्थात लगभग 14वीं शताब्दी में। 1932-33 में दंतेश्वरी मंदिर का दूसरी बार जीर्णोद्धार तत्कालीन बस्तर महारानी प्रफुल्ल कुमारी देवी ने कराया था।
दंतेवाड़ा, छत्तीसगढ़ के जगदलपुर के दक्षिण-पश्चिम में स्थित शंखिनी और धनकिनी नदियों (डंकिनी और शंखिनी) के संगम पर स्थित है। यह मंदिर अपनी समृद्ध वास्तुकला और मूर्तिकला और समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा के कारण जाना जाता है। दंतेश्वरी माई मंदिर इस क्षेत्र के लोगों के लिए सबसे महत्वपूर्ण आध्यात्मिक केंद्र के रूप में स्थापित है। यहां नलयुग से लेकर छिंदक नाग वंशीय काल की दर्जनों मूर्तियां बिखरी पड़ी हैं।
तांत्रिकों की स्थली : यहां स्थित नदी के किनारे अष्ट भैरव का आवास माना जाता है, इसलिए यह स्थल तांत्रिकों के लिए महत्वपूर्ण स्थल है। मान्यता अनुसार यहां आज भी बहुत से तांत्रिक पहाड़ी गुफाओं में तंत्र विद्या की साधना कर रहे हैं। 1883 तक यहां नर बलि होती रही है।