देवी भागवत पुराण में 108, कालिकापुराण में 26, शिवचरित्र में 51, दुर्गा शप्तसती और तंत्रचूड़ामणि में शक्ति पीठों की संख्या 52 बताई गई है। साधारत: 51 शक्ति पीठ माने जाते हैं। तंत्रचूड़ामणि में लगभग 52 शक्ति पीठों के बारे में बताया गया है। प्रस्तुत है माता सती के शक्तिपीठों में इस बार इन्द्राक्षी शक्तिपीठ कोनेश्वरम मंदिर ट्रिंकोमाली श्रीलंका शक्तिपीठ के बारे में जानकारी।
कैसे बने ये शक्तिपीठ : जब महादेव शिवजी की पत्नी सती अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ में अपने पति का अपमान सहन नहीं कर पाई तो उसी यज्ञ में कूदकर भस्म हो गई। शिवजी जो जब यह पता चला तो उन्होंने अपने गण वीरभद्र को भेजकर यज्ञ स्थल को उजाड़ दिया और राजा दक्ष का सिर काट दिया। बाद में शिवजी अपनी पत्नी सती की जली हुई लाश लेकर विलाप करते हुए सभी ओर घूमते रहे। जहां-जहां माता के अंग और आभूषण गिरे वहां-वहां शक्तिपीठ निर्मित हो गए। हालांकि पौराणिक आख्यायिका के अनुसार देवी देह के अंगों से इनकी उत्पत्ति हुई, जो भगवान विष्णु के चक्र से विच्छिन्न होकर 108 स्थलों पर गिरे थे, जिनमें में 51 का खास महत्व है।
लंका- इंद्राक्षी : श्रीलंका में संभवत: त्रिंकोमाली में माता की नूपुर अर्थात पायल गिरी थी (त्रिंकोमाली में प्रसिद्ध त्रिकोणेश्वर मंदिर के निकट)। इसकी शक्ति है इंद्राक्षी और भैरव को राक्षसेश्वर कहते हैं।
कुछ ग्रंथों के अनुसार यहां सती के शरीर का उसंधि (पेट और जांघ के बीच का भाग) हिस्सा गिरा था। जबकि कुछ ग्रंथों में यहां सती का कंठ और नूपुर गिरने का उल्लेख है। कुछ का मानना है कि श्रीलंका का शंकरी देवी मंदिर ही यह शक्तिपीठ है। मान्यता है कि शंकरी देवी मंदिर की स्थापना खुद रावण ने की थी। यहां शिव का मंदिर भी है, जिन्हें त्रिकोणेश्वर या कोणेश्वरम कहा जाता है। यह मंदिर कोलंबो से 250 किमी दूर त्रिकोणमाली नाम की जगह पर चट्टान पर बना है। यह मंदिर त्रिकोणमाली जिले की 1 लाख हिंदू आबादी की आस्था का भी केंद्र है। त्रिकोणमाली आने वाले लोग इसे शांति का स्वर्ग भी कहते हैं।
उल्लेखनीय है कि बिहार के मगध में माता के दाएं पैर की जंघा गिरी थी। इसकी शक्ति है सर्वानंदकरी और भैरव को व्योमकेश कहते हैं। यह 108 शक्तिपीठ में शामिल है।