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जनकपुत्री माता सीता के भाई कौन थे?

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अनिरुद्ध जोशी

देवी सीता मिथिला के राजा जनक की ज्येष्ठ पुत्री थीं इसलिए उन्हें 'जानकी' भी कहा जाता है। कहते हैं कि राजा जनक को माता सीता एक खेत से मिली थी। इसीलिए उन्हें धरती पुत्री भी कहा जाता है। लक्ष्मण, भारत और शत्रुघ्न की पत्नियां माता सीता की बहनें थीं।
 
 
मार्गशीर्ष (अगहन) मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को भगवान श्रीराम तथा जनकपुत्री जानकी (सीता) का विवाह हुआ था, तभी से इस पंचमी को 'विवाह पंचमी पर्व' के रूप में मनाया जाता है।
 
 
विवाह के समय ब्रह्महर्षि वशिष्ठ एवं राजर्षि विश्वामित्र उपस्थित थे। कहा जाता है कि उनका विवाह देखने को स्वयं ब्रह्मा, विष्णु एवं रूद्र ब्राह्मणों के वेश में आए थे। दूसरी ओर सभी देवी और देवता भी विभिन्न वेश में उपस्थित थे। चारों भाइयों में श्रीराम का विवाह सबसे पहले हुआ।
 
 
विवाह का मंत्रोच्चार चल रहा था और उसी बीच कन्या के भाई द्वारा की जाने वाली रस्म की बारी आई। इस रस्म में कन्या का भाई कन्या के आगे-आगे चलते हुए लावे का छिड़काव करता है। विवाह करवाने वाले पुरोहितजी ने जब इस प्रथा के लिए कन्या के भाई को बुलाने के लिए कहा तो वहां समस्या खड़ी हो गई, क्योंकि जनक का कोई पुत्र नहीं था। ऐसे में सभी एक दूसरे से विचार करने लगे। इसके चलते विवाह में विलंब होने लगा।
 
 
अपनी पुत्री के विवाह में इस प्रकार विलम्ब होता देखकर पृथ्वी माता भी दुखी हो गयी। तभी अकस्मात एक श्यामवर्ण का युवक उठा और इस रस्म को पूरा करने के लिए आकर खड़ा हो गया और कहने लगा कि मैं हूं इनका भाई। दरअसल, वह और कोई नहीं बल्कि स्वयं मंगलदेव थे जो वेश बदलकर नवग्रहों सहित श्रीराम का विवाह देखने को वहां उपस्थित थे। चूंकि माता सीता का जन्म पृथ्वी से हुआ था और मंगल भी पृथ्वी के पुत्र थे। इस नाते वे सीता माता के भाई भी लगते थे। इसी कारण पृथ्वी माता के संकेत से वे इस विधि को पूर्ण करने के लिए आगे आए।
 
 
अनजान व्यक्ति को इस रस्म को निभाने को आता देख कर राजा जनक दुविधा में पड़ गए। जिस व्यक्ति के कुल, गोत्र एवं परिवार का कुछ आता पता ना हो उसे वे कैसे अपनी पुत्री के भाई के रूप में स्वीकार कर सकते थे। उन्होंने मंगल से उनका परिचय, कुल एवं गोत्र पूछा।
 
 
राजा जनक के आपत्ति लिए जाने के बाद मंगलदेव ने कहा, 'हे राजन! मैं अकारण ही आपकी पुत्री के भाई का कर्तव्य पूर्ण करने को नहीं उठा हूं। मैं इस कार्य के सर्वथा योग्य हूं। अगर आपको कोई शंका हो तो आप महर्षि वशिष्ठ एवं विश्वामित्र से इस विषय में पूछ सकते हैं।'
 
 
ऐसी वाणी सुनकर राजा जनक ने महर्षि वशिष्ठ एवं विश्वामित्र से इस बारे में पूछा। दोनों ही ऋषि इस रहस्य को जानते थे अतः उन्होंने इसकी आज्ञा दे दी। इस प्रकार सभी की आज्ञा पाकर मंगलदेव ने माता सीता के भाई के रूप में सारी रस्में निभाई। हालांकि इस घटना का उल्लेख रामायण में बहुत कम ही मिलता है।
 

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