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ऐसे 5 विवाह जिन्हें देखने के लिए सभी देवता थे उपस्थित

हमें फॉलो करें ऐसे 5 विवाह जिन्हें देखने के लिए सभी देवता थे उपस्थित

अनिरुद्ध जोशी

, शुक्रवार, 3 जनवरी 2020 (15:13 IST)
हिन्दू धर्म में विवाह के कई प्रकार हैं जिसमें से ब्रह्म विवाह को ही विवाह का उत्तम और वैदिक विवाह माना गया है। हिन्दू धर्म में ऐसे 5 विवाह के बारे में जानकारी जिन्हें देखने के लिए सभी देवी और देवता तो उपस्थित थे ही साथ ही उक्त विवाह की पुराणों में बहुत ही रोचक तरीके से चर्चा होती है।
 
 
1.शिव, सती और पार्वती विवाह : इस विवाह की चर्चा हर पुराण में मिलेगी। भगवान शंकर ने सबसे पहले सती से विवाह किया था। यह विवाह बड़ी कठिन परिस्थितियों में हुआ था क्योंकि सती के पिता दश इस विवाह के पक्ष में नहीं थे। हालांकि उन्होंने अपने पिता ब्रह्मा के कहने पर सती का विवाह भगवान शंकर से कर दिया। राजा दश द्वारा शंकरजी का अपमान करने के चलते सती माता ने यज्ञ में कूदकर आत्मदाह कर लिया था।

 
इसके बाद शिवजी घोर तपस्या में चले गए। सती ने बाद में हिमवान के यहां पार्वती के रूप में जन्म लिया। उस दौरान तारकासुर का आतंक था। उसका वध शिवजी का पुत्र ही कर सकता था ऐसे उसे वरदान था लेकिन शिवजी तो तपस्या में लीन थे। ऐसे में देवताओं ने शिवजी का विवाह पार्वतीजी से करने के लिए एक योजना बनाई। उसके तहत कामदेव को तपस्या भंग करने के लिए भेजा गया। कामदेव ने तपस्या तो भंग कर दी लेकिन वे खुद भस्म हो गए। बाद में शिवजी ने पार्वतीजी से विवाह किया। इस विवाह में शिवजी बरात लेकर पार्वतीजी के यहां पहुंचे। इस कथा का रोचक वर्णन पुराणों में मिलेगा।

 
2.विष्णु लक्ष्मी विवाह : ऋषि भृगु की पुत्री माता लक्ष्मी थीं। उनकी माता का नाम ख्याति था। राजा दक्ष के भाई भृगु ऋषि थे। एक बार लक्ष्मीजी के लिए स्वयंवर का आयोजन हुआ। माता लक्ष्मी पहले ही मन ही मन विष्णुजी को पति रूप में स्वीकार कर चुकी थीं लेकिन नारद मुनि भी लक्ष्मीजी से विवाह करना चाहते थे। नारदजी ने सोचा कि यह राजकुमारी हरि रूप पाकर ही उनका वरण करेगी। तब नारदजी विष्णु भगवान के पास हरि के समान सुन्दर रूप मांगने पहुंच गए।


विष्णु भगवान ने नारद की इच्छा के अनुसार उन्हें हरि रूप दे दिया। हरि रूप लेकर जब नारद राजकुमारी के स्वयंवर में पहुंचे तो उन्हें विश्वास था कि राजकुमारी उन्हें ही वरमाला पहनाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। राजकुमारी ने नारद को छोड़कर भगवान विष्णु के गले में वरमाला डाल दी। नारदजी वहां से उदास होकर लौट रहे थे तो रास्ते में एक जलाशय में उन्होंने अपना चेहरा देखा। अपने चेहरे को देखकर नारद हैरान रह गए, क्योंकि उनका चेहरा बंदर जैसा लग रहा था।
 
 
'हरि' का एक अर्थ विष्णु होता है और एक वानर होता है। भगवान विष्णु ने नारद को वानर रूप दे दिया था। नारद समझ गए कि भगवान विष्णु ने उनके साथ छल किया। उनको भगवान पर बड़ा क्रोध आया। नारद सीधे बैकुंठ पहुंचे और आवेश में आकर भगवान को श्राप दे दिया कि आपको मनुष्य रूप में जन्म लेकर पृथ्वी पर जाना होगा। जिस तरह मुझे स्त्री का वियोग सहना पड़ा है उसी प्रकार आपको भी वियोग सहना होगा। इसलिए राम और सीता के रूप में जन्म लेकर विष्णु और देवी लक्ष्मी को वियोग सहना पड़ा। इस कथा प्रसंग में भगवान गणेशजी का विष्णु और देवताओं द्वारा अपमान करने का भी उल्लेख मिलता है जिसके चलते विष्णुजी बारात लेकर निकले तब रास्ते में गणेशजी ने अपने मूषक से कहकर संपूर्ण रास्ता खुदवा दिया था। बाद में गणेशजी को मनाया और उनकी पूजा की गई थी तब बारात आगे बढ़ सककी थी।
 
 
3.राम सीता का विवाह :  श्रीराम और देवी सीता का विवाह कदाचित महादेव एवं माता पार्वती के विवाह के बाद सबसे प्रसिद्ध विवाह माना जाता है। इस विवाह की एक और विशेषता ये थी कि इस विवाह में त्रिदेवों सहित लगभग सभी मुख्य देवता किसी ना किसी रूप में उपस्थित थे। कोई भी इस विवाह को देखने का मौका छोड़ना नहीं चाहता था।
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श्रीराम सहित ब्रह्महर्षि वशिष्ठ एवं राजर्षि विश्वामित्र को भी इसका ज्ञान था। कहा जाता है कि उनका विवाह देखने को स्वयं ब्रह्मा, विष्णु एवं रूद्र ब्राह्मणों के वेश में आए थे। राजा जनक की सभा में शिवजी का धनुष तोड़ने के बाद श्रीराम का विवाह होना तय हुआ। चारों भाइयों में श्रीराम का विवाह सबसे पहले हुआ। इस विवाह का रोचक वर्णन आपको वाल्मीकि रामायण में मिलेगा।
 
 
4.रुक्मणी और कृष्ण विवाह : रुक्मणी का विवाह भी बहुत रोचक परिस्थितियों में हुआ था। भगवान श्रीकृष्‍ण ने सबसे पहले रुक्मणी से ही विवाह किया था। श्रीमद्भागवत गीता में इस विवाह का वर्णन रोचक तरीके से मिलता है। भागवत कथा का जहां भी आयोजन होता है वहां इस विवाह की नायकीय रूप से प्रस्तुति की जाती है। भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मिणी विवाह प्रसंग श्रीमद्भागवत महापुराण में श्रीशुकदेवजी राजा परीक्षित को सुनाते हैं।

 
5.गणेशजी का विवाह : भगवान शिव के पुत्र गणेशजी का विवाह प्रजापति विश्वकर्मा की पुत्री ऋद्धि और सिद्धि नामक दो कन्याओं से हुआ था। सिद्धि से 'क्षेम' और ऋद्धि से 'लाभ' नाम के दो पुत्र हुए। लोक-परंपरा में इन्हें ही शुभ-लाभ कहा जाता है। गणेजी का विवाह भी बड़ी रोचक परिस्थिति में हुआ था। उनका विवाह नहीं हो रहा था। इस विवाह की भी चर्चा भी सभी पुराणों में रोचक तरीके से मिलती है।

 
6.तुलसी विवाह : कहीं-कहीं प्रचलित है कि वृंदा ने यह शाप दिया था- तुमने मेरा सतीत्व भंग किया है। अतः तुम पत्थर बनोगे। विष्णु बोले- हे वृंदा! तुम मुझे लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय हो। यह तुम्हारे सतीत्व का ही फल है कि तुम तुलसी बनकर मेरे साथ रहोगी। जो मनुष्य तुम्हारे साथ मेरा विवाह करेगा, वह परम धाम को प्राप्त होगा।

 
इसी कारण बिना तुलसी दल के शालिग्राम या विष्णु-शिला की पूजा अधूरी मानी जाती है। इस पुण्य की प्राप्ति के लिए आज भी तुलसी विवाह बड़ी धूमधाम से किया जाता है। तुलसी को कन्या मानकर व्रत करने वाला व्यक्ति यथाविधि से भगवान विष्णु को कन्या दान करके तुलसी विवाह सम्पन्न करता है। अतः तुलसी पूजा करने का बड़ा ही माहात्म्य है।
 

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