भोपाल। साल 1885 में बनी कांग्रेस आज 21वीं सदी में शायद अपने इतिहास के सबसे नाजुक दौर से गुजर रही है। लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद आज कांग्रेस में नेतृत्व का संकट खड़ा होता दिख रहा है। एक ओर जहां पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने इस्तीफे पर अड़े हैं तो दूसरी ओर अब तक दर्जनभर से अधिक प्रदेशों के पार्टी अध्यक्षों ने अपना इस्तीफा दिल्ली भेज दिया है। वहीं मध्य प्रदेश, राजस्थान और कर्नाटक में जहां कांग्रेस सत्ता में काबिज है उसका भविष्य भी सवालों के घेरे में है। ऐसे में सवाल ये उठ रहा है कि कांग्रेस यहां से कैसे आगे बढ़ेगी। ऐसे कौनसे उपाय होंगे जिनसे कांग्रेस का कायाकल्प होगा।
राहुल का इस्तीफा देना या लेना विकल्प नहीं : शनिवार को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में इस्तीफा देने के बाद राहुल ने पार्टी के बड़े नेताओं से एक तरह से दूरी बना ली। राहुल चुनाव में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के पुत्रमोह के चलते हुए नुकसान से नाराज बताए जा रहे हैं। राहुल की नाराजगी के सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि उनकी नाराजगी इस हद तक जायज है कि पहले तो कमलनाथ और अशोक गहलोत दोनों ही मुख्यमंत्रियों ने अपने बेटों को टिकट दिलवाया और फिर पूरे प्रदेश में चुनाव प्रचार करने की बजाए अपने बेटों की सीटों पर ज्यादा ध्यान केंद्रित किया। ऐसे में जितना टाइम उनको पूरे प्रदेश में देना चाहिए उतना नहीं दे पाए। लेकिन रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि आज राहुल गांधी का इस्तीफा देना या पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से लेना उनकी नजर में कांग्रेस को फिर से खड़ा करने का कोई विकल्प नहीं है। अगर राहुल गांधी अशोक गहलोत को हटाते भी हैं तो ये तय नहीं है कि गहलोत के खेमे के विधायक सचिन पायलट को अपना नेता मानेंगे, ऐसे में पार्टी के टूटने का खतरा भी हो सकता है।
चेहरे-मोहरे नहीं संगठन के ढांचे को बदलना होगा : लोकसभा चुनाव में हार के बाद कहा जा रहा है कि कांग्रेस में बड़े पैमाने पर नेताओं की भूमिका में बदलाव होगा। इस बड़ी हार के बाद कई पुराने चेहरों की जगह नए चेहरे लिए जाएंगे। कांग्रेस की अंदरखाने की राजनीति को बहुत ही करीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि कांग्रेस में जब तक संगठन में आमूलचूल परिवर्तन नहीं होगा तब तक मोहरे बदलने से काम नहीं चलेगा। आज जरुरत इस बात की है कि पार्टी अपने संगठनात्मक ढांचे में बदलाव करे। पार्टी का संगठन जो बहुत सालों से नॉमिनेटेड ढंग से चल रहा है उसमें लोकतंत्रिक ढंग से चुनाव कराने होंगे। चुनाव नहीं होने से निचली और उपरी इकाइयों में ऊर्जा नहीं आ पा रही है। ऐसे में कांग्रेस का जमीनी स्तर का कार्यकर्ता नाराज और मायूस है।
नीतियों और कार्यक्रमों में हो बदलाव : लगातार पांच साल के अंतराल पर दो आम चुनाव में भाजपा के हाथों कांग्रेस को मिली बड़ी हार के बाद अब पार्टी की नीतियों और कार्यक्रमों पर भी सवाल उठने लगे हैं। भाजपा जो कांग्रेस के मुकाबले कुछ सालों में बेहतर चुनावी मैनेजमेंट करने में सफल हुई है उसके सामने कांग्रेस के चुनावी तरकश का हर तीर बेकार चला गया है। वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि कांग्रेस को नए सिरे से खड़ा करने के लिए जरूरी है कि वो अपनी नीतियों, कार्यक्रमों में बड़े स्तर पर व्यापक बदलाव करें। पार्टी को जनभावना से जुड़ना होगा। आज कांग्रेस को नए सिरे से अपने को रिडिफाइन करने की जरूरत है।
रामदत्त कहते हैं कि लोकसभा चुनाव में भाजपा अपने चुनावी कैंपेन में लोगों को इस बात का विश्वास दिलाने में सफल हो गई कि भारतीय संस्कृति की रक्षा वही कर सकती है जबकि कांग्रेस पश्चिमी संस्कृति की पोषक और मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करती है। ऐसे में भाजपा और आरएसएस के इस प्रोपेगंडा का मुकाबला कांग्रेस अध्यक्ष के केवल जनेऊ दिखाने और कैलाश मानसरोवर की यात्रा करने से नहीं हो पाएगा।
नई पीढ़ी से बढ़ाना होगा संवाद : लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार की बड़ी वजह नई पीढ़ी के वोटरों का कांग्रेस से एकदम से दूर हो जाना है। भाजपा जिसने पांच सालों में इस बात को जोरशोर से लोगों के सामने रखा कि कांग्रेस ने पिछले 70 सालों में कुछ नहीं किया इसका जवाब देने के लिए आज कांग्रेस को नई पीढ़ी से जनसंवाद बढ़ाना होगा। कांग्रेस को अपना सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण देश के सामने रखना होगा। उसे ये बताने की जरूरत है कि देश की आजादी में उसके नेताओं ने कुर्बानी दी है और देश की तरक्की और सामाजिक सुधार में उसकी बहुत बड़ी भूमिका है।