जम्‍मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन 6 महीने बढ़ाने के प्रस्ताव को राज्‍यसभा की मंजूरी

Webdunia
सोमवार, 1 जुलाई 2019 (21:36 IST)
नई दिल्ली। राज्यसभा ने जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन की अवधि 6 माह बढ़ाने वाले सांविधिक संकल्प को सोमवार को सर्वसम्मति से पारित कर दिया जिससे इस पर संसद की मुहर लग गई। लोकसभा इस संकल्प को पहले ही पारित कर चुकी है। सदन ने संकल्प के विरोध में लाए गए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के डी. राजा के सांविधिक प्रस्ताव को पूरी तरह खारिज कर दिया।
 
जम्मू और कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक 2019 को भी सदन ने सर्वसम्मति से पारित किया जिससे इस पर भी संसद की मुहर लग गई, क्योंकि लोकसभा शुक्रवार को इसे पहले ही पारित कर चुकी है। जम्मू-कश्मीर में पिछले वर्ष भारतीय जनता पार्टी द्वारा गठबंधन सरकार से समर्थन वापस लेने के बाद राज्यपाल का शासन लागू किया गया था। इसके 6 माह बाद गत दिसंबर में वहां राष्ट्रपति शासन लागू किया गया जिसकी अवधि 2 जुलाई को समाप्त हो रही थी।
 
इससे पहले गृहमंत्री अमित शाह ने सांविधिक प्रस्ताव और आरक्षण विधेयक दोनों पर लगभग 6 घंटे चली चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि केंद्र का मकसद राज्य में परोक्ष रूप से शासन करने का नहीं है और जैसे ही राज्य में विधानसभा चुनाव कराने के अनुकूल हालात बनेंगे और चुनाव आयोग इसकी मंजूरी देगा, केंद्र वहां तुरंत चुनाव कराएगा।
 
आरक्षण विधेयक में जम्मू में अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगते क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को दुश्वारियों के चलते आरक्षण देने का प्रावधान किया गया है। पहले केवल नियंत्रण रेखा के निकट रहने वाले लोगों को ही आरक्षण का लाभ मिलता था लेकिन अब यह सुविधा अंतरराष्ट्रीय सीमा के निकट रहने वाले लोगों को भी मिलेगा। शाह ने कहा कि देशभर में 132 बार राष्ट्रपति शासन लगाया गया है जिसमें से 93 बार इसका निर्णय कांग्रेस की केंद्र सरकारों ने लिया है।
 
हालात अनुकूल होते ही जम्मू-कश्मीर में होंगे विधानसभा चुनाव : गृहमंत्री ने सोमवार को कहा कि लोकसभा चुनाव के साथ जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनाव इसलिए नहीं कराए गए थे कि करीब 1,000 उम्मीदवारों को सुरक्षा देना संभव नहीं था। लेकिन वहां जैसे ही स्थितियां अनुकूल होंगी और चुनाव आयोग सहमत होगा तो चुनाव करा दिए जाएंगे।
 
शाह ने कहा कि उनकी सरकार आतंकवाद को जड़ से उखाड़ने के लिए प्रतिबद्ध है और इस संबंध में जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाएगी। उन्होंने जम्मू-कश्मीर की समस्या के ऐतिहासिक कारणों की चर्चा करते हुए कहा कि यह सवाल उठाया कि इस मामले को पंडित नेहरू के कार्यकाल में संयुक्त राष्ट्र में क्यों ले जाया गया था? और इस जनमत संग्रह कराने का फैसला क्यों किया गया था? इतिहास में जो गलतियां हुईं, उन्हें ठीक करना जरूरी है।
 
शाह ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद पर अंकुश लगाने के लिए उठाए गए कदमों का हवाला देते हुए कहा कि पीडीपी के साथ राज्य में सरकार बनाने का फैसला जनता का था, क्योंकि किसी को बहुमत नहीं मिला था और इसी लिए भारतीय जनता पार्टी ने वहां सरकार बनाई था। बाद में पीडीपी की नीतियां अलगाव को बढ़ावा देने लगी तो समर्थन वापस ले लिया गया।
 
उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव के समय केवल 6 सीटों पर चुनाव होना था जबकि विधानसभा चुनाव में करीब 1,000 उम्मीदवार होते है और सभी उम्मीवारों और लोगों की रक्षा करना सरकार का दायित्व होता है। लेकिन उस समय इतनी संख्या में सुरक्षा बल तैनात करना संभव नहीं था इसलिए विधानसभा चुनाव नहीं कराए गए।
 
शाह ने कहा कि कश्मीर की समस्या का समाधान करने के लिए नई सोच अपनानी होगी। सरकार ने पहली बार विदेश नीति और सुरक्षा नीति को अलग-अलग कर दिया है। सरकार का स्पष्ट मानना है कि जो हमारी सीमाओं का सम्मान नहीं करेगा, उसे कड़ा जवाब दिया जाएगा। आतंकवाद का मुकाबला केवल भावनाओं से नहीं किया जा सकता है बल्कि इससे पर कड़ा प्रहार करना होगा। (वार्ता)

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