नई दिल्ली। आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिलने से नाराज चंद्रबाबू नायडू की तेलगू देशम पार्टी (टीडीपी) ने न केवल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) से नाता तोड़ लिया है बल्कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का भी फैसला किया है। इस काम में कई अन्य दल भी नायडू का साथ दे सकते हैं।
इससे पहले वाईएसआर कांग्रेस ने भी मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की घोषणा कर दी है। उल्लेखनीय है कि वाईएसआर कांग्रेस ने अपना प्रस्ताव शुक्रवार को (आज ही) लोकसभा में पेश कर दिया है। इसके लिए उसने सभी विपक्षी पार्टियों को पत्र लिखकर समर्थन मांगा था, जिसका कांग्रेस, टीडीपी, टीएमसी, सीपीएम, आरजेडी ने समर्थन देने का एलान किया है। विदित हो कि उसके अविश्वास प्रस्ताव का भी टीडीपी समर्थन करेगी और इसके बाद अलग से अपना अविश्वास प्रस्ताव भी लाएगी।
अविश्वास प्रस्ताव लाने की प्रक्रिया
सबसे पहले विपक्षी दल को लोकसभा अध्यक्ष या स्पीकर को इसकी लिखित सूचना देनी होती है। इसके बाद स्पीकर उस दल के किसी सांसद से इसे सदन में पेश करने के लिए कहता है।
इसे कब लाया जाता है ?
जब किसी दल को लगता है कि सरकार सदन का विश्वास या बहुमत खो चुकी है तब वह अविश्वास प्रस्ताव पेश कर सकती है।
इसे कब स्वीकार किया जाता है ?
अविश्वास प्रस्ताव को तभी स्वीकार किया जा सकता है, जब सदन में उसे कम से कम 50 सदस्यों का समर्थन हासिल हो।
विदित हो कि वाईएसआर कांग्रेस के लोकसभा में नौ सदस्य हैं। वहीं टीडीपी के 16 सांसद हैं और अगर इसे कांग्रेस के 48 सांसदों भी समर्थन मिलता है तब प्रस्ताव को स्वीकार किया जा सकता है।
अविश्वास प्रस्ताव पर मंजूरी मिलने के बाद क्या होता है ?
अगर लोकसभा अध्यक्ष या स्पीकर अविश्वास प्रस्ताव को मंजूरी दे देते हैं, तो प्रस्ताव पेश करने के 10 दिनों के अंदर इस पर सदन में चर्चा जरूरी होती है। इसके बाद स्पीकर अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोटिंग करा सकता है या फिर कोई अन्य फैसला ले सकता है। मोदी सरकार के खिलाफ यह पहला अविश्वास प्रस्ताव होगा।
लोकसभा में सीटों की स्थिति
फिलहाल लोकसभा में भाजपा के 273 सांसद हैं। कांग्रेस के 48, एआईएडीएमके के 37, तृणमूल कांग्रेस के 34, बीजेडी के 20, शिवसेना के 18, टीडीपी के 16, टीआरएस के 11, सीपीआई (एम) के 9, वाईएसआर कांग्रेस के 9, समाजवादी पार्टी के 7, इनके अलावा 26 अन्य पार्टियों के 58 सांसद है। पांच सीटें अभी भी खाली हैं।
क्या मोदी सरकार को खतरा है?
नहीं, मोदी सरकार को खतरा नहीं लगता क्योंकि अकेले भाजपा के पास 273 सांसद हैं। लोकसभा में बहुमत के लिए 272 सीटों की जरूरत होती है। ऐसे में सदन में मत विभाजन की स्थिति आने पर मात्र अपने दम पर ही भाजपा सरकार बचा सकती है।