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लॉक डाउन के साइड इफेक्ट्स- 2 : प्रकृति के नए रंग रूप

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तरसेम कौर

इन दिनों प्रकृति अपने पूरे यौवन पर है। इठलाती , मस्ती से भरपूर स्वच्छ हवा बहती हुई गुनगुनाती हुई हमें छूकर हरे भरे पेड़ों में रच बस जाती है। आसमान पर जैसे नीली परियों का बसेरा हो गया है । चांद कुछ ज़्यादा ही चांदनी भेज रहा है, तारे जो खो गए थे अब झुरमुट बनाकर टिमटिमा रहे होते हैं ।सूरज का उगना और अस्त होना पहले से भी खूबसूरत हो गया है । पक्षी , जानवर सब खुश होकर खुले में घूमने लगे हैं। नदियां साफ सुथरी होकर कलकल बहने लगी है।
 
क्या आपने कभी भी अपने जीवन में प्रकृति को इतना खुश देखा था !  मानव ने कुदरत के साथ जो भी अत्याचार किए अब तक , यह उसकी भरपाई ही हो रही है । प्रकृति अगर देती है तो उसे सूद समेट वापिस ले लेना भी जानती है । हर प्रकार के प्रदूषण से कुदरत की हरेक देन को हमने तहस नहस कर दिया था । वायु प्रदूषण खतरे की रफ्तार से बढ़ा हुआ था , जल प्रदूषण ने नदी नालों की दयनीय स्थिति में पहुंचा दिया था। अब हालात काबू में हैं। 
 
विश्वस्तर पर लगे इस लॉक डॉउन ने कुदरत को उसका असली चेहरा वापिस लौटा दिया है। हमें इससे सबक लेना चाहिए कि यदि हम कुदरत से अमानवीय व्यवहार करेंगे , तो वो भी अपनी क्रूरता पर उतर आएगी । कुदरत की दी हुई बेमिसाल सुख सुविधाओं का नाजायज फायदा ना उठाकर हमें उनके रख रखाव पर भी विशेष ध्यान देना होगा। 
कुदरत , जो एक अदृश्य शक्ति है , जिसने मनुष्य को बन्द करके  स्वयं को मनुष्य की गिरफ्त से मुक्त कर लिया है। इस यथार्थ को ध्यान में रखते हुए मनुष्य को अब प्रकृति से प्यार कर लेना चाहिए, इसे सहेजना होगा ताकि हम सब इस विकट परिस्थिति से जल्द ही बाहर निकल आएं।
-तरसेम कौर

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