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कोरोना को क्यों रोना, रामायण से सीख सकते हैं लॉक डाउन में कैसे रहना

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राजश्री दिघे चितले

टीवी पर रामायण की समाप्ति हुई। राम भरत मिलाप, संपूर्ण रघुकुल का सालों बाद एक दूसरे से मिलन, पूरी अयोध्या आनंद में…….हम धारवाहिकों में कितने रच बस जाते है ना और फिर ये तो पौराणिक कथा। जीवन का सार बताती रामायण। इस कठिन काल में रामायण का वाचन ही हो गया। ऐसे युवा पीढ़ी को रामायण से परिचय करवाना कठिन ही था…..खैर सालों पूर्व रामायण को देखा करते थे तो उम्र और परिस्थिति दोनों भिन्न थी. परन्तु अभी मानसिक, शारीरिक, बौद्धिक, भावनिक सारी परिस्थितियां अलग रही तो धारावाहिक देखने का नजरिया ही अलग हो चला था…
 
चौदह वर्ष का वनवास, माताओं का विलाप, पिता की दुर्बलता, धर्मपरायणता, बंधू प्रेम सारा सारा कुछ बड़ा ही भावनिक रहा. पिता की आज्ञा का पालन करते श्रीराम, बंधू प्रेम से लबालब भरे हुए भरत लक्ष्मण और शत्रुघ्न. माता सीता की पतिव्रता, मंदोदरी की याचनाएं, विभीषण के अश्रु, रावण की शक्ति, दुर्बलता और धर्म पालन. कुल की रक्षा के लिए किये गए अनेक त्यागों में कौन किससे आगे ये कहना मुश्किल हो जाये. कुछ इस तरह से निहारा इस बार रामायण को. इस सारे के चलते रह रह कर जिसकी याद आती रही वो थी उर्मिला. 
 
सच्चा वनवास तो उर्मिला का लगने लगा. माता को दिए वचनानुसार लक्ष्मण को भाई श्रीराम और भाभी सीता की सेवा करना है तथा उनके विश्राम के समय पहरा देना है. अब लक्ष्मण की निद्रा का क्या? तब निद्रा देवी ने पत्नी उर्मिला की नींद में भगवान लक्ष्मण की निद्रा पूर्ण हो जाये ऐसी व्यवस्था कर दी. जिस वजह से पूर्ण समय लक्ष्मण सचेत रहे. चौदह वर्षो का वनवास और ब्रह्मचर्य का पालन की वजह से लक्ष्मण युद्ध में मेघनाथ का वध करने योग्य सिद्ध हो सके. घर के तीन पुत्र वनवास में है तब पुत्रवधु होने की नाते से राज्य तथा माताओं की सेवा की जिम्मेदारी बड़ी खूबी से निभाई होगी उस जनक पुत्री ने. पति का वियोग वो भी निरपराधी होकर कैसे प्रारब्ध समझकर जी गयी होगी वो पतिव्रता. एक बड़ा सुन्दर दृश्य था रामायण में लक्ष्मण के मूर्छित होते ही दीपक का वायु की लहर से बुझ जाना और उर्मिला का बाकि दीपकों की वायु से सुरक्षा करना. प्रारब्ध तो हम सबका निश्चित है किन्तु कैसे रघुकुल पुत्रवधु कुल के रक्षण हेतु सर्वशक्तिमान से याचना करती है. बड़ा ही भावनिक दृश्य कैसे कर्तव्यनिष्ठ पुरुष के पीछे स्त्री ताकत और विश्वास से खड़ी होती है उसका उत्तम उदाहरण.
 
बहरहाल ये सारी कहानियां सभी को ज्ञात है. तो इसका लॉक डाउन की परिस्थिति से क्या लेना देना????? तो जैसा की इस बार रामायण देखने का नजरिया ही बदल गया तो उसके चलते रामायण के पात्रों को आज की कठिनाइयों से और आज के पात्रों से जोड़ने का छोटा सा प्रयास.
 
covid 19 यानि एक रावण ही समझ ले, इस सारे संघर्ष में श्रीराम के रूप में हर जगह अपनी उपस्थिति दर्ज कराते चिकित्सक, लक्ष्मण रूपी सारे नर्सेस, पैथोलॉजी स्टाफ साथ में लिए प्रजा के उध्दार में जुटे हुए है. जनता इनके रूप को पहचान ही नहीं पा रही और पहले से ही वनवासी चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े इन सवेंदनशील महापुरषों की परीक्षा ले रही है. अब भरत को पुलिस या हमारा रक्षक कह सकते है. राज्य से बाहर अर्थात ये भी अपने परिवार से दूर जनता की ही सेवा में अपने को न्योछावर किये फिर रहे है. ये भरत रूपी सारे रक्षक राम की ही तरह रघुकुल के वचनो से बंधे अपने धर्म का पालन कर रहे है. शत्रुघ्न को हम सरकार और मीडिया कह सकेंगे जो अयोध्या का संरक्षण केवल श्री राम, लक्ष्मण और भरत की वचनबद्धता और कर्तव्यपरायणता के कारण कर पा रही है. और हनुमान की अहम् भूमिका वो सारे अत्यावश्यक सेवा देने वाले निभा रहे हैं. जिनसे हम दूध, किराना या सब्जी खरीद रहे हैं. इस वानर सेना की फेहरस्ति लम्बी है. जब ये सारे स्तम्भ अपना काम बेहतरीन तरीके से करते है तो हमें क्या करना है?????
 
तो हमें उर्मिला बनना है. हमें घर में रहना है. रघुकुल के रक्षक जब अपने अपने युद्ध क्षेत्र में है तब हमें उनके आदेश को अपना प्रारब्ध मानकर बिना किसी विरोध के अपना कर्तव्य निभाना है. साथ ही उर्मिला की भूमिका और वनवास किसी से कम नहीं. हम सभी वो उर्मिला है जो कठिन समय में दीपकों को आने वाले वायु रूपी संकटों से रोकती है. सच मानिये इस महामारी के बाद विजय का जितना श्रेय प्रशासन, चिकित्सा, मीडिया और अत्यावश्यक सेवाओं को जायेगा उतना ही जनता की सहनशीलता, समझदारी और संयम को भी जायेगा. कितना सकारात्मक लगता है जब हम भी किसी योद्धा की भांति ही है शक्ति बढ़ाने वाले भक्त. हाँ संयम के बांध तो बांधे रखने पड़ेंगे जब तक ये अनपेक्षित आघात रुक नहीं जाते. 
 

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