आजकल के बच्चों के खेल बदल गए हैं लेकिन जिनके बच्चे हैं अब मौका है कि वे अपने बचपन के दिन याद करें। लॉकडाउन में उन सभी खेलों को आप अपने बच्चों को सिखाएं या उनके साख खेले जो आप बचपन में घर में ही खेलते थे। आओ ऐसे ही 10 खेलों के बारे में जानकारी।
1. राजा, मंत्री, चोर और सिपाही : यह खेल चार लोग मिलकर खेलते हैं। इस खेल में चार पर्ची बनाते हैं। जिस पर लिखा होता है राजा, मंत्री, चोर और सिपाही। एक अलग कागज पर खेलने वाले खिलाड़ियों के नाम लिखे रहते हैं जिसमें उनके पॉइंट जुड़ते हैं। फिर पर्ची उछालते हैं। सभी एक ऐक पर्ची उठा लेते हैं। कोई भी अपनी पर्ची किसी को नहीं बताता है। जिसके पास राजा की पर्ची आती है वह पूछता है कि मेरा मंत्री कौन। जिसके पास मंत्री की पर्ची आती है वह बोलता है मैं हूं। तब राजा बोलता है कि चोर सिपाही का पता लगाओ। यदि मंत्री सही चोर और सिपाही का पता लगा लेता है तो सभी की पर्ची के नंबर या पॉइंट लिखे जाते हैं। राजा का 1000 नंबर, मंत्री का 800, सिकाही का 500 और चोर का 0 होता है। यदि मंत्री गलत बताता है तो मंत्री और चोर आपस में अपनी पर्ची बदल लेते हैं। यह खेल जब तक बोर नहीं हो जाते खेलते रहो और अंत में जिसके ज्यादा पॉइंट होते हैं वह जीत जाता है।
2. जीरो क्रॉस (Zero cross) : यह खेल दो लोगों का है। इसमें एक कागज पर या पट्टी पर 9 खाने बनाए जाते हैं। किसी भी खाने में पहला खिलाड़ी जीरो लिखेगा तो दूसरे को क्रॉस लिखना होगा। इस तरह जिसका डिजिट या चिन्ह एक ही सीध में होगा वह जीत जाएगा।
3. शतरंज (Chess) : दुनियाभर में शतरंज को दिमाग वालों का खेल माना जाता है। शतरंज का आविष्कार रावण की पत्नी मंदोदरी ने किया था। 'अमरकोश’ के अनुसार इसका प्राचीन नाम ‘चतुरंगिनी’ था जिसका अर्थ 4 अंगों वाली सेना था। गुप्त काल में इस खेल का बहुत प्रचलन था। पहले इस खेल का नाम चतुरंग था लेकिन 6ठी शताब्दी में फारसियों के प्रभाव के चलते इसे शतरंज कहा जाने लगा। यह खेल ईरानियों के माध्यम से यूरोप में पहुंचा तो इसे चैस कहा जाने लगा।
छठी शताब्दी में यह खेल महाराज अन्नुश्रिवण के समय (531-579 ईस्वी) भारत से ईरान में लोकप्रिय हुआ। तब इसे ‘चतुरआंग’, ‘चतरांग’ और फिर कालांतर में अरबी भाषा में ‘शतरंज’ कहा जाने लगा। 7वीं शती के सुबंधु रचित 'वासवदत्ता' नामक संस्कृत ग्रंथ में भी इसका उल्लेख मिलता है। बाणभट्ट रचित हर्षचरित्र में भी चतुरंग नाम से इस खेल का उल्लेख किया गया है।
4.सांप-सीढ़ी (Snakes and Ladders) : इसे मोक्ष-पट भी कहते हैं। प्राचीन भारत में इस खेल को सारिकाओं या कौड़ियों की सहायता से खेला जाता था। सांप-सीढ़ी के खेल का वर्तमान स्वरूप 13वीं शताब्दी में कवि संत ज्ञानदेव द्वारा तैयार किया गया था।
यह खेल हिन्दुओं को नैतिकता का पाठ पढ़ाता था। 17वीं शताब्दी में यह खेल थंजावर में प्रचलित हुआ। बाद में इसके आकार में वृद्धि की गई तथा कई अन्य बदलाव भी किए गए। तब इसे ‘परमपद सोपान-पट्टा’ कहा जाने लगा। इस खेल की नैतिकता विक्टोरियन काल के अंग्रेजों को भी भा गई और वे इस खेल को 1892 में इंग्लैंड ले गए। वहां से यह खेल अन्य योरपीय देशों में लुड्डो अथवा स्नेक्स एंड लेडर्स के नाम से फैल गया।
5. चौपड़ पासा (Dice dice) : इसे चेस, पचीसी और चौसर भी कहते है। यह पलंग आदि की बुनावट का वह प्रकार है जिसमें चौसर की आकृति बनी होती है। दरअसल, यह खेल जुए से जुड़ा खेल है। महाभारत काल में कौरवों और पांडवों के बीच यह खेल खेला गया था और उसमें पांडव हार गए थे। मुस्लिम काल में यह खेल शासकीय वर्ग तथा सामान्य लोगों के घरों में ‘पांसा’ के नाम से खेला जाता था। यह खेल आज भी लोकप्रिय है।
6. ताश के खेल (play cards) : ताश के कई खेल होते हैं। यह आज भी लोकप्रिय है। इससे रमी, तीन पत्ती, रंग मिलाना आदि कई गेम होते हैं। यह भारत के प्राचीन काल के खेल गंजिफा का एक रूप है। गरीब लोग कागज या कंजी लगे कड़क कपड़े के कार्ड भी प्रयोग करते थे। सामर्थ्यवान लोग हाथी दांत, कछुए की हड्डी अथवा सीप के कार्ड प्रयोग करते थे। उस समय इस खेल में लगभग 12 कार्ड होते थे जिन पर पौराणिक चित्र बने होते थे। खेल के एक अन्य संस्करण ‘नवग्रह-गंजिफा’ में 108 कार्ड प्रयोग किए जाते थे। उनको 9 कार्ड की गड्डियों में रखा जाता था और प्रत्येक गड्डी सौरमंडल के नवग्रहों को दर्शाते थे। यही गंजिफा बाद में बन गया ताश का खेल।
इस खेल में पहले राजा-रानी होते थे, बाद में मुगलकाल में बेगम-बादशाह होने लगे और अंग्रेज काल में क्वीन और किंग होने लगे। जिस देश में भी ताश पहुंचा, उसे देश के रंग में ढाला गया। भारतीय ज्योतिषियों के अनुसार 1 साल के अंदर 52 सप्ताह होते हैं और 4 ऋतुएं। इसी आधार पर ताश के पत्तों का निर्माण किया गया। 52 सप्ताह को यदि 4 भागों में विभाजित किया जाए तो एक भाग में 13 दिन आएंगे। भारतीय मान्यता के अनुसार एक भाग में धर्म, दूसरे में अर्थ, तीसरे में काम और चौथे में मोक्ष। ताश के पत्तों के भी 4 प्रकार होते हैं:- लाल पान, काला पान, लाल चीड़ी और काली चीड़ी। अंत में एक जोकर। पहला बादशाह, दूसरा बेगम, तीसरा इक्का और चौथा गुलाम। ये जिंदगी के 4 रंग हैं। यदि गुलाम को 11, बेगम को 12, बादशाह को 13 और जोकर को 1 माना जाए तो अंकित चिह्नों का योग 365 के बराबर होता है।
7. अष्ट चंग पे : यह भी एक दिलचस्प खेल था। इसे अष्ट चांग पे कहा जाता है। चार खिलाड़ियों के बीच खेले जाने वाला खेल 2 के बीच भी खेला जा सकता था। इसमें इमली के 2 बीजों को तोड़कर उसके पासे बनाए जाते हैं। पासे फेंकने पर यदि चारों हिस्से सफेद आए तो चंग (चार) चारों हिस्से ब्लेक आए तो आठ अंक माना जाता था। आई संख्या के मुताबिक गोटी आगे बढ़ती थी और अन्य गोटी के आने पर मर जाती थी। इस खेल में एक नियत स्थान पर पहुंचने से जीत होती थी।
8. कैरम : कैरम के बारे में तो सभी जानते हैं।
9. सोलह सार : यह शतरंज के खेल की तरह था जिसमें हर खिलाड़ी के पास सोलह स्थान होते थे। शतरंज से अलग सभी गोटियां एक समान ताकत लिए होती थीं। इसमें न ही कोई राजा होता था और न ही प्यादा।
10. नाम, वस्तु, शहर, फिल्म : यह खेल एक तरह से बच्चों की जानकारी और याद्दाश्त का पता लगाता था। एक कागज पर नाम, वस्तु, शहर और फिल्म के कॉलम बना कर उनमें किसी अल्फाबेट पर नाम, वस्तु, शहर और फिल्म के नाम लिखना होते थे। सबसे यूनिक नाम बताने वाले खिलाड़ी जीत जाते थे।