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दुनिया ‘गलतियों’ का पिटारा है, लेकिन ‘क्षमा मांगना’ सिर्फ भारत में एक पर्व है, उत्‍सव है

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नवीन रांगियाल

भारत में माफी मांगना एक उत्‍सव है और माफ कर देना जॉय ऑफ गि‍विंग

भारत में माफी मांगना एक उत्‍सव है और माफ कर देना जॉय ऑफ गि‍विंग’, लेकिन शेष दुनिया में यह सि‍र्फ एक ‘सॉरी’ तक ही सीमित है, सॉरी दिन में कई बार महसूस होता और बोला जाता है, इसमें क्षमा मांगने की तरह मन, कर्म और वचन जैसे तत्‍व शामिल नहीं है। शायद इसीलिए भारत में क्षमा मांगने के लिए बरसों लग जाते हैं, लेकिन जब मांगी जाती है तो देने वाले के लिए यह सबसे बड़ा जॉय ऑफ गि‍विंग होता है।

यह दुनिया गलतियों से भरी पड़ी है। त्रुटि‍यों का पिटारा है संसार। कहीं न कहीं हर किसी ने कोई गलती की है या किसी का दि‍ल दुखाया है। दुख देने वाला शख्‍स अपनी इन त्र‍ुटि‍यों का बोझ जिंदगीभर सिर पर उठाए फि‍रता है।
लेकिन भारत में इस गलति‍यों के बोझ को उतार फेंकने की भी व्‍यवस्‍था है।

दुनिया में भारत के अलावा कोई ऐसा देश नहीं है, जहां इन गलतियों के लिए क्षमा मांगने वाले भाव के लिए भी उत्‍सव मनाया जाता हो। जहां बतौर उत्‍सव क्षमा के लिए एक पूरा दिन समर्प‍ित किया गया हो। यह भारत में माफी मांगना भी एक उत्‍सव है। एक सेलिब्रेशन है। ‘सेलिब्रेशन ऑफ फॉरगिवनेस’

गलती करना और फि‍र उसे स्‍वीकार कर के मन की कलुषता को मिटाने और मन को निर्मल करने का सहूलियत ज्ञान और भाव को जीवन का केंद्र मानने वाले इस देश में ही संभव है। दुनिया में और कहीं नहीं।

जैन समुदाय में प्रयूषण पर्व आत्म शुद्धि  और आत्म कल्याण का पर्व  हैं। 10 दिनों के इस पर्व के खत्‍म होने पर क्षमा याचना को बतौर उत्सव मनाने की परंपरा हैं, इस दौरान याचना की जाती है कि-

जीवन में अगर जाने-अनजाने में मन, वचन और कर्म से किसी को मैंने आहत किया हैं, दुख पहुंचाया है तो मैं क्षमा प्रार्थी हूं। मुझे माफ कर दें।

जरा सोचिए, जहां माफी मांगना भी एक उत्‍सव हो, उस देश की आध्‍यात्‍मिक जड़ों में कितनी गहराई और कितना विस्‍तार होगा।

दरअसल, माफी की अवधारणा तो हर जगह है, लेकिन वो सिर्फ ‘सॉरी’ तक सीमि‍त है, आमातौर पर ‘सॉरी’ दिन में कई बार बोल दिया जाता है, उसमें कोई भाव नहीं, कोई प्रायश्‍चित नहीं। उसमें मन, कर्म और वचन शामिल नहीं है। लेकिन क्षमा को बतौर उत्‍सव भारत के अलावा कहीं नहीं देखा-मनाया जाता है। यहां क्षमा उत्‍सव भी और दान भी। इसलिए जैन संप्रदाय में क्षमा को सबसे ‘उत्‍तम क्षमा’ कहा गया है।

माफी मांगते वक्‍त मन, कर्म और वचन तीनों तत्‍वों को शामिल किया जाता है और सिर का बोझ उतारकर मन को पवित्र कर दिया जाता है।

महावीर स्‍वामी ने तो माफी मांगने से ज्‍यादा माफ कर देने को उच्‍च और महान अवस्‍था बताया है। यह सही भी है, मांगने से अहंकार खत्म हो जाता और देना जॉय ऑफ गि‍विंग है।

कवि रामधारी सिंह दिनकर ने तो कहा है कि, माफी मांगना साहसी लोगों का काम है, यह वीरों को सुहाती है।

जीजस क्राइस्‍ट ने तो इसे और आगे ले जाकर कहा है कि, Be kind and compassionate to one another, forgiving each other, just as in Christ God forgave you.

सबके लिए दयालु बना, एक दूसरे को माफ करो, ठीक वैसे ही जैसे ईश्‍वर ने तुम्‍हे हर चीज के लिए माफ किया है।
जीजस ने आगे कहा है, if you forgive other people when they sin against you, your heavenly Father will also forgive you.

अगर तुम उन लोगों को माफ करना जानते हो, जिन्‍होंने तुम्‍हे दुख पहुंचाया या पाप किया तो ईश्‍वर भी तुम्‍हे तुम्‍हारे अपराधों के लिए माफ करेगा।

इस दौर में माफी मांगना किसी संघर्ष से कम नहीं, वो पलभर में गलती कर देता है, दुख पहुंचाता है, लेकिन माफी मांगने में उसे सालों लग जाते हैं, कई बार तो वो माफी मांग ही नहीं पाता है, क्‍योंकि उसका अभि‍मान उसके क्षमा भाव से बड़ा है। ऐसे में वो अपना ही नुकसान करता है।

क्षमा वाणी पर्व न सिर्फ आध्‍यात्‍मि‍क स्‍तर पर हमारे जीवन को और चरित्र को पवित्र करता है, बल्‍कि विज्ञान कहता है कि इसके मानसिक और शारीरिक फायदें भी हैं। फॉरगि‍वनेस पर की गई एक स्‍टडी की रिपोर्ट कहती है कि गलती होने पर माफी मांगना हमारी मानसिक और शारीरिक सेहत के लिए फायदेमंद है।

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