मन, वचन और काया से क्षमा भाव का संदेश देता है 'क्षमावाणी पर्व'
- राजश्री कासलीवाल
क्षमावणी पर्व या 'क्षमा दिवस' दिगंबर जैन धर्मावलंबियों द्वारा मनाया जाने वाला एक खास पर्व है। इसे क्षमावाणी, क्षमावानी या क्षमा पर्व भी कहते हैं। दिगंबर अनुयायियों द्वारा यह पर्व आश्विन मास कृष्ण पक्ष की एकम के दिन मनाया जाता हैं। इस वर्ष यह पर्व 21 सितंबर 2021, दिन मंगलवार को मनाया जाएगा। इस पर्व पर अपने आत्मिक शुद्धता के लिए सबसे अपने भूलों की क्षमा याचना की जाती है। यहां माफी मांगने का मतलब यह नहीं कि आप गलत हैं और दूसरा सही।
दसलक्षण या पयुर्षण महापर्व के 10 दिन मन का अहंकार दूर करके झुकने की कला, दूसरों का दिल जीतने की, किसी के भी दिल को ठेस न पहुंचाने की शिक्षा ग्रहण करने की प्रेरणा हमें देते हैं और निरंतर क्षमा के पथ पर आगे बढ़ाते हुए मोक्ष की प्राप्ति कराते हैं। दसलक्षण पर्व के दिनों में किया गया त्याग और उपासना हमें जीवन की सच्ची राह दिखाते है। जैन धर्म में 'क्षमा' भाव को वीरों का आभूषण कहा गया है। क्षमा भाव धर्म का आधार है और यह सभी के लिए हितकारी होता है। क्रोध-कषाय सदा सभी के लिए अहितकारी माना गया है।
वैदिक ग्रंथों में भी क्षमा की श्रेष्ठता पर बल दिया गया है। क्षमा शब्द मानवीय जीवन की आधारशिला है। जिसके जीवन में क्षमा है, वही महानता को प्राप्त कर सकता है। क्षमावाणी हमें झुकने की प्रेरणा देती है। दसलक्षण पर्व हमें यही सीख देता है कि क्षमावाणी के दिन हमें अपने जीवन से सभी तरह के बैर भाव-विरोध को मिटाकर प्रत्येक व्यक्ति से क्षमा मांगनी चाहिए और हम दूसरों को भी क्षमा कर सकें यही भाव मन में रखना चाहिए। यही क्षमावाणी है।
हमें चाहे छोटा हो या बड़ा क्षमा पर्व पर सभी से दिल से क्षमा मांगी जानी चाहिए। क्षमा कभी भी सिर्फ उससे नहीं मांगी जानी चाहिए, जो वास्तव में हमारा दुश्मन है। बल्कि हमें हर छोटे-बड़े जीवों से क्षमा मांगनी चाहिए। जब हमें क्रोध आता है तो हमारा चेहरा लाल हो जाता है और जब क्षमा मांगी जाती है तो चेहरे पर हंसी-मुस्कुराहट आ जाती है। क्षमा हमें अहंकार से दूर करके जीवन में विनम्र बनना सिखाती है। क्षमावाणी पर्व पर क्षमा को अपने जीवन में उतारना ही सच्ची मानवता है।
हम क्षमा उससे मांगते हैं, जिसे हम धोखा देते है। जिसके प्रति मन में छल-कपट रखते है। जीवन का दीपक तो क्षमा मांग कर ही जलाया जा सकता है। अत: हमें अपनी पत्नी, बच्चों, बड़े-बुजुर्गों, पड़ोसी हो या हमारे मिलने-जुलने वाले सभी से क्षमा मांगना चाहिए। क्षमा मांगते समय मन में किसी तरह का संकोच, किसी तरह का खोट नहीं होना चाहिए। हमें अपनी आत्मा से क्षमा मांगनी चाहिए, क्योंकि मन के कषायों में फंस कर हम तरह-तरह के ढ़ोंग, स्वांग रचकर अपने द्वारा दूसरों को दुख पहुंचाते हैं। उन्हें गलत परिभाषित करने और नीचा दिखाने के चक्कर में हम दूसरों की भावनाओं का ध्यान नहीं रखते जो कि सरासर गलत है।
हमें तन, मन और वचन से चोरी, हिंसा, व्याभिचार, ईर्ष्या, क्रोध, मान, छल, गाली, निंदा और झूठ इन दस दोषों से दूर रहना चाहिए। यही इस पर्व की सीख हैं। दसलक्षण पर्व के दिनों में किया गया त्याग और उपासना हमें मोक्ष के मार्ग पर ले जाती है। दसलक्षण पर्व जैन धर्म के दस लक्षणों को दर्शाते हैं। जिनको अपने जीवन में उतार कर हर मनुष्य मुक्ति का मार्ग अपना सकता है। यहां जानिए 10 धर्म-
दसलक्षण के 10 धर्मों की शिक्षा-
* उत्तम क्षमा- क्षमा को धारण करने वाला समस्त जीवों के प्रति मैत्रीभाव को दर्शाता है।
* उत्तम मार्दव- मनुष्य के मान और अहंकार का नाश करके उसकी विनयशीलता को दर्शाता है।
* उत्तम आर्जव- इस धर्म को अपनाने से मनुष्य निष्कपट एवं राग-द्वेष से दूर होकर सरल ह्रदय से जीवन व्यतीत करता है।
* उत्तम सत्य- जब जीवन में सत्य धर्म अवतरित हो जाता है, तब मनुष्य की संसार सागर से मुक्ति निश्चित है।
* उत्तम शौच- अपने मन को निर्लोभी बनाने की सीख देता है, उत्तम शौच धर्म। अपने जीवन में संतोष धारण करना ही इसका मुख्य उद्देश्य है।
* उत्तम संयम- अपने जीवन में संयम धारण करके ही मनुष्य का जीवन सार्थक हो सकता है।
* उत्तम तप- जो मनुष्य कठिन तप के द्वारा अपने तन-मन को शुद्ध करता है, उसके कई जन्मों के कर्म नष्ट हो जाते हैं।
* उत्तम त्याग- जीवन के त्याग धर्म को अपना कर चलने वाले मनुष्य को मुक्ति स्वयंमेव प्राप्त हो जाती है।
* उत्तम आंकिचन- जो मनुष्य जीवन के सभी प्रकार के परिग्रहों का त्याग करता है। उसे मोक्ष सुख की प्राप्ति अवश्य होती है।
* उत्तम ब्रह्मचर्य- जीवन में ब्रह्मचर्य धर्म के पालन करने से मोक्ष की प्राप्ति अवश्य होती है।
इस प्रकार 10 धर्मों को अपने जीवन में अपना कर जो व्यक्ति इसके अनुसार आचरण करता है, वह निश्चित ही निर्वाण पद को प्राप्त कर सकता है।
पयुर्षण पर्व के यह 10 दिन हमें इस तरह की शिक्षा ग्रहण करने की प्रेरणा देते है और निरंतर क्षमा के पथ पर आगे बढ़ाते हुए मोक्ष की प्राप्ति कराते हैं। अत: क्षमावाणी के दिन बिना किसी संकोच के तन-मन से सभी से क्षमायाचना मांगना ही जैन धर्म का उद्देश्य है। अत: क्षमावाणी के इस पावन पर्व पर मन, वचन और काया से निर्मल क्षमायाचना करती हूं।
अंत में इतना ही-
क्षमा पर्व का पावन दिन है
भव्य भावना का त्योहार,
विगत वर्ष की सारी भूलें
देना हमारी आप बिसार।।
'उत्तम क्षमा...।जय जिनेंद्र ! '