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Coronavirus: ये लापरवाही कहीं ले न डूबे हम सब को!

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कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल

लॉकडाऊन के बाद समूचे देश में अनलॉक का द्वितीय चरण चालू हो चुका है। लेकिन संक्रमण की गति अप्रत्याशित तौर लगातार बढ़ती ही जा रही है। राहत वाली बात यह है कि संक्रमितों का रिकवरी रेट लगभग 62 प्रति‍शत के करीब है, जिससे ज्यादातर संक्रमित लोग स्वस्थ हो रहे हैं।

लेकिन अनलॉक होते ही जिस तरह से सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क न पहनने के पुराने ढर्रे पर लोग वापस आ रहे हैं, यह बताने के लिए पर्याप्त है कि लोग कितने लापरवाह हैं। लोग खुद की जान तो जोखिम में डाल ही रहे हैं साथ ही एक समुदाय को भी खतरे के आगोश में लेने के लिए आमादा है।

एक चीज दिमाग खोलकर स्पष्ट तौर पर समझ लेना आवश्यक है कि कोरोना अभी न तो खत्म हुआ है तथा भविष्य में कब तक खत्म होगा इसकी कोई गारंटी नहीं है। इसका मतलब यही है कि कोरोना का संकट अब अपने रौद्र रुप में अपनी अदृश्यता के साथ ही ताण्डव कर रहा है।

लोगों में पता नही कौन सी सनक सवार है कि उन्हें कोरोना से संक्रमण के बचाव के उपायों को धता बताने में कितना आनंद आ रहा है। लॉकडाऊन के बाद ऐसा लग रहा है मानों कोरोना का संकट खत्म हो गया हो। दिन-रात चौबीसों घण्टे सरकार, विभाग, विशेषज्ञ, टीवी चैनल चीख-चीख कर बतला रहे हैं कि कोरोना से बचाव के लिए पर्याप्त एहतियात बरतिए और स्वास्थ्य संबंधी दिशा-निर्देशों का पालन कीजिए। यहां तक कि मोबाइल फोन में कॉल करने पर वही एडवाइजरी हर क्षण सुनते हैं लेकिन लोग हैं तो मानने को तैयार ही नहीं हैं।

देश की व्यवस्थाओं को सुचारू रुप से संचालित करने के लिए आवश्यक था इसलिए क्रमशः सभी गतिविधियां नियमानुसार शुरु की गईं किन्तु जिस प्रकार से नियमों की धज्जियां लोग एवं उपक्रमों के संचालनकर्ता उड़ा रहे हैं उससे ऐसा लगता ही नहीं है कि लोगों के जीवन का कोई महत्व है। धीरे-धीरे सभी क्षेत्रों में आवागमन तो शुरु ही हो गया है और लोग एक जगह से दूसरी जगह आ-जा रहे हैं किन्तु न तो सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहे हैं न ही मास्क का प्रयोग कर रहे हैं।

अनलॉक के साथ ही मास्क का प्रयोग करने वालों की संख्या मात्र 30 प्रतिशत हो गई है जो कि यह बताने के लिए पर्याप्त है कि लोग कितने संवेदनहीन तो हैं ही साथ ही मूर्खता की सीमाओं को भी लांघ रहे हैं। इसमें सभी हमाम में नंगे हैं चाहे आम नागरिक हों, व्यवसायी हों, सरकारी कर्मचारी, विभिन्न संस्थान हों या कि राजनीतिक क्षेत्र के लोग हों। न तो स्वास्थ्य सम्बन्धित दिशा-निर्देशों का पालन कर रहे हैं न ही सोशल डिस्टेंसिंग का।

राजनि‍तिक पटल तो और ज्यादा बेशर्म है क्योंकि इन्हें अपना वोटबैंक साधने, चुनावी जाजम बिछाने के लिए चाहे कुछ भी करना पड़ जाए ये कभी नहीं मानने वाले हैं। जहां देखो वहीं नेता भीड़ जुटाकर अपने स्वार्थ साधने के लिए लोगों को मौत के मुंह में झोंकने के लिए तैयार हैं। इन लोगों ने चुनाव की तैयारी करनी शुरु कर दी तो कभी अपने आकाओं को खुश करने के लिए शक्ति प्रदर्शन, जयकारे लगाने से बाज नहीं आ रहे हैं।

सोचिए कि यदि इनकी भीड़ में एक भी संक्रमित शामिल हुआ, तब पता लगने पर क्या होगा? क्या उतने बड़े समूह की कॉन्टैक्ट लिस्ट का पता लगाना मुमकिन होगा? किन्तु ये लोग हैं तो गंभीरता से एहतियात बरतने की बजाय अपनी राजनि‍तिक जमीन को बनाने में जुटे हुए हैं। इसमें पक्ष क्या-विपक्ष क्या, सभी एक ही थाली के चट्टे-बट्टे सा व्यवहार कर रहे हैं।

आखिर इनको जनता के जीवन के साथ खिलवाड़ करने की छूट किसने दे रखी है कि ये कुछ भी करेंगे और उसके बाद धड़ल्ले से स्वयं को पाक साफ भी घोषित करके मामले से कन्नी काट लेंगे? आशा इन्हीं से की जाती है कि जनता का भाग्य लिखेंगे तथा कोई न कोई सही रास्ता ईजाद करेंगे किन्तु दुर्भाग्य देखिए कि इन्हीं लोगों के पास व्यवस्थाओं को संभालने का जिम्मा होता है और यही लोग बड़ी ही बेशर्मी से माखौल उड़ाते हैं।

आप चाहे बाजार चले जाइए या किसी भी दुकान अब स्थिति यह हो गई है कि लोग मास्क, सेनेटाइजर इत्यादि का प्रयोग नाम मात्र के लिए करते हैं। गिने-चुने लोग ही नजर आते हैं जो मास्क पहने हुए दिख जाएं। बाकी के लोगों को पता नहीं मास्क पहनने में कौन शर्म सी आती है? या कि उनकी कोई संपत्ति लूटे ले रहा हो। लोग शौक से मास्क गले में लटकाए रहेंगे लेकिन मुंह को कव्हर नहीं करेंगे।

अगर बात करना हुआ तो झट से मास्क निकालकर बात करने लगेंगे तो गुटखा, पान, तम्बाकू खाकर किसी भी जगह थूंक देंगे लेकिन मजाल क्या है कि लोगों को जरा सी भी शर्म आ जाए। इन सबमें ज्यादातर खुद को शिक्षित समझने वाला तबका ही अव्वल दर्जा हासिल कर रहा है। लोगों के ऐसे रवैय्ये से लग रहा है जैसे इन्होंने अमृतपान किया हो कि इन्हें कोरोना बख्श देगा। एक ओर कोरोना भले भी रफ्तार पकड़ रहा हो, लेकिन लोग जिस तरह से लापरवाही बरत रहे हैं उससे यही लग रहा हो जैसे कि परिस्थिति कोरोना के पहले जैसी हो गई हो।

जबकि अगर देखा जाए तो कोरोना से संक्रमण का खतरा अब और ज्यादा गंभीर हो चुका है क्योंकि अनलॉक के चलते अब सबकुछ चालू हो चुका है जिसके चलते आवागमन, गतिविधियों के संचालन से व्यक्ति एक दूसरे के सम्पर्क में आ रहा है। लॉकडाऊन के समय कम से कम लोगों का सम्पर्क टूटा हुआ था जिसके चलते यदि कोई व्यक्ति संक्रमित निकलता है तो उसके सम्पर्क में आए लोगों का पता करना आसान था।

अब यह बेहद जटिल हो चुका है। ऐसी परिस्थितियों में यदि अब कोई व्यक्ति संक्रमित पाया जाता है तो उसके सम्पर्क में आए लोगों की श्रृंखला का पता लगाना नामुमकिन सा हो चुका है लेकिन लोग इस बात को बिल्कुल ही गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। कोरोना से बचाव के लिए अब तक न तो कोई वैक्सीन बन पाई है तथा न ही इतना जल्दी बनने की कोई संभावना दिख रही है। कोरोना से बचाव के लिए केवल सोशल डिस्टेंसिन्ग, मॉस्क लगाना, बाहर आने जाने पर सैनेटाईजर, साबुन से हाथ धुलना ही कारगर उपाय है।

जो व्यक्ति जितना ज्यादा संक्रमण से बचाव के उपायों का पालन कर सकता है वह उतना ही ज्यादा सुरक्षित है किन्तु जब लोगों को चेतना शून्य हो गई हो तब ऐसे में भगवान ही मालिक हैं। यदि हमारे यहां लोग नियमों का पालन करना प्रारंभ कर दें तो हम महान ही न बन जाएँ। पहले जहां गिने-चुने लोग ही संक्रमित हो रहे थे वहीं संक्रमण से बचाव के उपायों को न अपनाने के कारण थोक के भाव कोरोना से संक्रमित मामले सामने आ रहे हैं, इसके पीछे का सिर्फ और सिर्फ कारण लोगों, शासनतंत्र की लापरवाही है अन्यथा ऐसी स्थिति न आ पाती। इसी की परिणति है कि सरकारों को फुटकर में लॉकडाऊन लगाना पड़ रहा है।

सरकार भले ही मॉस्क पहनने एवं एहतियात बरतने के लिए नियम-कानून बनाएं किन्तु उनका पालन अब कोई सपना ही रह गया हो। लगभग ऐसा हो चुका है कि जैसे लॉकडाऊन के तीन महीने के समय की थकावट मिटाने के लिए सरकार और प्रशासन सुस्ताने लगे हैं। हमेशा की तरह सरकारी अमला अपने पुराने रास्ते में फिर लौट आया है तथा लॉकडाऊन के समय प्रशासनिक व्यवस्था से जो आशा की किरण फूटी थी वह अब विलुप्त सी हो चुकी है।

सरकारी अमला जिस तरह से लॉकडाऊन में निष्ठापूर्वक नियमों का पालन सुनिश्चित करवाने में जुटा था। अनलॉक की शुरुआत के साथ ही एकदम से निष्क्रिय और अकर्मण्य सा हो गया है। किसी को अब कोई मतलब ही नहीं रह गया है। शायद सरकार भी यही चाहती है कि जिसको जीना हो जिए या जिसको मरना हो मर जाए हमको क्या करना है? लेकिन अगर यही हाल रहे आए तो कोरोना बम विस्फोट हुआ तो फिर स्थितियां सम्हाले नहीं सम्हलेंगी। ऐसे में बाद में चाहे जितने ताम-झाम कर लिए जाएंगे, लेकिन यदि अभी कारगर कदम न उठाए गए तो सिवाय हाथ मलते रहने के अलावा कुछ भी शेष नहीं बचने वाला है।

प्रशासनिक निष्क्रियता के कारण लोग कोरोना से बचाव के लिए अपनाए जाने वाले दिशा-निर्देशों को ताक पर रखकर कोरोना को आमंत्रण देने का कार्य कर रहे हैं। सरकारी एजेंसी एवं विभिन्न तुलनात्मक अध्ययनों के के द्वारा जारी आंकड़ों से यह बात तथ्य के तौर पर उभरी है कि जिन राज्यों और स्थानों में पाबंदियों पर ढील दी गई वहां कोरोना संक्रमण के मामले में अप्रत्याशित बढ़ोत्तरी हुई है जबकि जहां नियमों का पालन एवं पाबंदियों के हिसाब से गतिविधियों का संचालन हुआ है वहां कोरोना के कम मामले मिले हैं। इसका अभिप्राय तो यही है कि जनता-सरकार-प्रशासन तीनों की लापरवाही के चलते ही कोरोना का प्रसार बढ़ा है।

जनता फिर सरकार के विरुद्ध बिगुल फूंके या सरकार अपनी पीठ थपथाए या कि अपनी सफाई देती रहेगी कि हम कोरोना से निबटने में फला-फला कारण असफल हुए लेकिन फिर सच्चाई से मुंह नहीं छिपाया जा सकता है। इसलिए अभी समय है कि स्थितियों को जनता, सरकार, प्रशासन, विभिन्न उपक्रमों के संचालनकर्ता अपने-अपने स्तर से सम्हालें और कोरोना की गंभीरता को समझते हुए रोकथाम, बचाव, नियंत्रण से सम्बंधित स्वास्थ्य विभाग की सभी दिशा-निर्देशों का समुचित ढंग से अनुशासन पूर्वक अपने-अपने दायित्वों का पालन करना सुनिश्चित करें क्योंकि कोरोना से सभी के सहयोग के साथ ही जीता जा सकता है।

प्रत्येक व्यक्ति को यह समझना होगा कि सभी का जीवन बहुमूल्य है तथा हर व्यक्ति की उतनी भी भूमिका है जितनी की सरकार एवं प्रशासन की क्योंकि यह जान लीजिए कि एक व्यक्ति की लापरवाही भी हजारों लोगों के जीवन पर संकट ला सकती है। इसलिए यदि आप किसी भ्रम में हों कि मास्क नहीं लगाएंगे, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं करेंगे तथा अवारागर्दी करते रहने के बावजूद भी सुरक्षित रहेंगे तो यह लापरवाही ले डूबेगी। जब आप अपने और समाज के जीवन की नाव में लापरवाही रुपी पानी भरते जा रहे हैं तो फिर आपकी कश्ती को डूबने से बचाने के लिए कोई भी पतवार काम नहीं आने वाली है।

नोट: इस आलेख में व्‍यक्‍त वि‍चार लेखक की नि‍जी अनुभूति‍ है, वेबदुनि‍या से इसका कोई संबंध नहीं है।

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