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मुनाफ... जिसने लोगों को ‘समोसे’ खि‍लाने के लिए ‘गूगल की नौकरी’ को कहा अलवि‍दा

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नवीन रांगियाल

कोई गूगल में नौकरी करे तो फि‍र उसे कुछ और करने की क्‍या जरुरत है। ऐसी कंपनी में नौकरी करते हुए आराम से जिंदगी बसर हो सकती है। लेकिन कुछ बि‍रले ऐसे होते हैं जो ऐसी लक्‍जरी नौकरी भी छोड़ देते हैं। लेकि‍न नौकरी छोड़ने का कारण अगर समोसा बनाकर बेचना हो तो इसे आप क्‍या कहेंगे।

मुनाफ कपाड़ि‍या एक ऐसा ही नाम है, जि‍सने गूगल की अच्‍छे खासे पैकेज वाली नौकरी छोड़कर समोसे बेचना शुरू कर दिया। मुनाफ की यह कहानी मीडि‍या में छाई हुई है।

‘द बोहरी किचन’ नाम से उन्‍होंने अपना यह स्‍टार्टअप शुरू कि‍या है। दि‍लचस्‍प बात यह है कि मुनाफ की इस सक्‍सेस स्‍टोरी के चर्चे बॉलीवुड तक पहुंच गए हैं। अब कई सेलि‍ब्रेटी भी उनके फैन हैं।

तो आखि‍र क्‍या है मुनाफ की गूगल छोड़कर समोसे बनाने वाली कहानी।

दरअसल, कुछ साल पहले अपने बर्थडे पर उन्होंने कुछ दोस्तों को खाने के लिए बुलाया था। मुनाफ़ की मां नफीसा ने उनके लिए समोसे बनाए थे। दोस्‍तों को समोसे इतने अच्‍छे लगे कि‍ लंबे समय तक वे वो स्‍वाद नहीं भूल पाए।

दोस्तों की तारीफ़ के बाद मुनाफ़ ने अपने घर पर भी डाइनिंग एक्सपीरियंस की शुरुआत कर दी। उन्होंने घर पर होटल जैसा एक्सपीरियंस देने के लिए कुछ दोस्तों को बुलाया और खाने के साथ समोसे खि‍लाए। लोग खाने से इतने खुश हुए कि उनके पास कोई जवाब भी नहीं था।

यह सब मुनाफ़ की मां नफ़ीसा के खाना बनाने के शौक की वजह से हुआ। मुनाफ दरअसल दाऊदी बोहरा समाज से ताल्‍लुक रखते हैं। उन्‍होंने देखा कि स्मोक्ड चिकेन, कीमा, नल्ली-नहारी, काजू चिकन ये वो चीज़ें थी जो बाजार में आसानी से नहीं मि‍लती, मि‍लती भी हैं तो पसंद नहीं आती।

जैसे ही यह कॉन्‍सेप्‍ट उनके दिमाग में आया उन्‍होंने अपने गूगल की नौकरी को अलवि‍दा कह दि‍या। उन्‍होंने घर में ही रेस्‍टोरेंट बना डाला। घर के माहौल में यह खाना और भी लजीज हो गया।

‘द बोहरी कि‍चन’ के स्‍वाद की कहानी पूरे मुंबई में फैल गई। रानी मुखर्जी, रिति‍क रोशन जैसे स्‍टार्स भी उनके खाने के दीवाने हो गए। खुशी तो तब हुई जब बीबीसी की टीम उनके घर पहुंची और उनके पूरे कॉन्‍सेप्‍ट पर स्‍टोरी बनाई। बाद में कई पत्रकार उनके यहां पहुंचे और यह कहानी प्रकाशि‍त की।

बाद में उन्होंने दो किचन बनाए, ताकि लोगों तक बढ़िया खाना पहुंचाया जा सके। मेनू में 100 चीज़ों की लिस्ट थी। मुनाफ़ और उनकी मां नफ़ीसा के खाने की जिस चीज़ की सबसे ज़्यादा चर्चा होती है, वो है उनकी थाली। 3.5 मीटर चौड़ी इस थाली का मकसद सभी पकवान लोगों को उपलब्ध कराना।

मुनाफ इसका कॉन्‍सेप्ट उनके समुदाय से ही आया, जिसकी शुरुआत यमन से हुई थी। यमन एक रेगिस्तानी इलाका है, जहां पानी और कम बर्तनों के साथ खाना परोसा जाता है।

एक व्यक्ति के लिए एक मील की कीमत 1500 से 3000 रुपयों के बीच होती है। थाली में 40 प्रतिशत पकवान वेजिटेरियन होते हैं। इनमें चिकन बिरयानी, चिकेन कटलेट के अलावा दूधी का हलवा और खजूर की खट्टी-मीठी चटनी भी बहुत लोकप्रिय है।

हालांकि कोरोना की वजह से मुनाफ के काम पर असर हुआ है। पांच शहरों में खोले गए उनके आउटलेट्स बंद करना पड़े हैं।

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