उसने नदी से प्रार्थना की और कहा, ओ प्‍यारी नदी, मुझे अपने में समा लेना

नवीन रांगियाल
बहुत कम लोगों में ‘ग्रेस’ होती है, जिसे मिलती है वो दूसरे इंसान से थोड़ा अलग हो जाता है, यह तत्‍व कोई एक गुण नहीं है, जिसका होना जीवन के किसी एक हिस्‍से को ही प्रभावित करता है, बल्‍कि यह एक ऐसा तत्‍व है, जो जीवन के बहुत से दृष्‍ट‍िकोणों को संवार देता है.

‘ग्रेस’ मुझे ‘प्रेम’ तत्‍व से भी ज्‍यादा आकर्षि‍त करती है, दोनों में एक फर्क है. प्रेम कुछ हद तक सिर्फ एक के लिए होता है या कुछेक के लिए होता है, लेकिन अगर आपके पास ‘ग्रेस’ है तो वह सभी के लिए होती है.

जिस आयशा नाम की युवती ने अहमदाबाद की साबरमती नदी में कूदकर अपनी जान दी, जाहिर है उसके प्रेम के बारे में हम नहीं जानते थे, वो सिर्फ अपने पति‍ आरिफ से प्‍यार करती थी, लेकिन उसकी ‘ग्रेस’ हम सब के लिए थी, घाव की तरह टपकती इस पूरी जिंदगी के लिए थी, इसलिए उसकी ‘ग्रेस’ ने हम सभी को एप्रोच किया.

सवाल यह है कि जिंदगी में कोई कितना अच्‍छा होकर दिखाए, या कोई अपनी मौत में कितना ‘ग्रेसफूल’ हो सकता है, -- निर्मल वर्मा ने कहा था---  मौत पेड़ की टहनी से धीमे से टूटकर लहराते हुए पत्‍ते की तरह होनी चाहिए.

यह जानने के लिए मैं हर मरते हुए आदमी को देखता हूं. उसका मरना देखता हूं-- उसके मरने की गति और जीवन की गहराई को देखता हूं-- जैसे म्‍यूजिक में मुझे ‘आलाप’ और ‘रेंज’ पसंद है, ठीक उसी तरह मुझे जिंदगी और मौत दोनों में ‘गहराई’ और ‘रेंज’ पसंद है। मुझे इसी से पता चलता है कि कला और जीवन से किसी का कितना जुडाव है।

आयशा बेहद खूबसूरत नहीं थी, लेकिन उसकी ‘ग्रेस’ ने उसे बेहद हसीन बना दिया। इतना कि उसकी मौत हम सब को तमाचा मार गई, शूल चुभा गई. अगर उसके पास अपनी बात कहने की यह ‘ग्रेस’ नहीं होती तो वो हमारे लिए सि‍र्फ एक देहभर ही थी। कई लोग रोज मरते हैं, लेकिन आयशा के साथ एक ‘ग्रेस’ की भी मृत्‍यु हुई.

लोग बहुत होते हैं, ‘ग्रेस’ वाले बहुत कम होते हैं, ऐसे लोगों को अगर बचाया नहीं जा सके तो कम से कम दहेज में डेढ लाख रुपए की मांग के लिए तो नहीं ही मरना चाहिए, वो भी तब जब वो आरिफ के प्रेम में हो, अपने प्रेम में उसे आजाद करना चाह रही हो.

आयशा ने पहले साबरमती नदी से प्रार्थना की, उसने कहा, ओ साबरमती, मैं आती हूं, मुझे अपने में समां लेना, मुझे खुशी है कि मैं ऊपर जाऊंगी तो अल्‍लाह से मिलूंगी, और दुआ करती हूं कि इंसानों की शक्‍ल फि‍र से न देखूं.
यही वो फर्क है, जिसकी मैं बात कर रहा हूं, कि मरने से पहले भी नदी से अपने लिए जगह ही मांग रही थी, प्रार्थना ही कर रही है, उसने मरने से पहले भी किसी को श्राप नहीं दिया, किसी को कोसा नहीं.

लेकिन इस भरी-पूरी दुनिया में कोई एक ऐसा न मिला, जिससे कहा जा सके निशंक... कि ये जिंदगी आखिर क्‍या चाहती है. इसे दिया क्‍या जाना चाहिए.

कोई और कितना सुंदर मर के दिखाए कि हम उसे मरने से रोक सकें,

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

8 वेजिटेरियन फूड्स जो नैचुरली कम कर सकते हैं बैड कोलेस्ट्रॉल, जानिए दिल को हेल्दी रखने वाले सुपरफूड्स

सोते समय म्यूजिक सुनना हो सकता है बेहद खतरनाक, जानिए इससे होने वाले 7 बड़े नुकसान

चाय कॉफी नहीं, रिफ्रेशिंग फील करने के लिए रोज सुबह करें ये 8 काम

क्या आपको भी चीजें याद नहीं रहतीं? हो सकता है ब्रेन फॉग, जानिए इलाज

क्या है सिटींग वॉकिंग का 2 पर 20 रूल? वेट लॉस और ब्लड शुगर मैनेज करने में कैसे कारगर?

सभी देखें

नवीनतम

ध' अक्षर से तलाश रहे हैं बेटे का नाम, ये हैं अर्थपूर्ण और आकर्षक विकल्प

मैंगो फालूदा आइसक्रीम रेसिपी: घर पर बनाएं स्वादिष्ट आम फालूदा

युद्ध या आतंकवाद, सबसे ज्यादा घातक कौन?

4:3 डाइट: हफ्ते में सिर्फ 3 दिन डाइटिंग करके घटाएं वजन, जानिए कैसे करता है ये वेट लॉस प्लान कमाल

रोजमर्रा की डाइट में खाए जाने वाले ये 6 फूड्स बढ़ा सकता है प्रोस्टेट कैंसर का खतरा, जानिए कैसे बचें

अगला लेख