Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

दहेज प्रथा : सरकार दोषी या समाज

हमें फॉलो करें women

अनिरुद्ध जोशी

इस देश में बहुत आसानी से विवाह भी हो जाता है इसीलिए हमारी न्याय व्यवस्था तलाक देने में माहिर है। दहेज प्रथा की मूल जड़ समाज में है और इस जड़ को खत्म करने के बजाय सरकार कड़े कानून बनाकर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हुआ मान लेती हैं। व्यक्ति उस कानून का दुरुपयोग करना भी सीख ही लेता है। जब कानून का दुरुपयोग होता है तो कानून निष्प्रभावी होकर बदलाव की मांग करता है और यही तो लोग चाहते हैं कि कानून कड़े ना हो।
 

 
सरकार : 
सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में दहेज उत्पीड़न क़ानून में बदलाव कर दिया। इसमें 498-ए के तहत महिला की शिकायत आने पर पति और ससुराल वालों की तुंरत गिरफ्‍तारी पर रोक लगाई गई थी। ऐसा क्यों करना पड़ा क्योंकि कई फर्जी मामले में महिलाओं ने अपने पति को फंसाकर जेल करावा दी थी। मतलब यह कि महिलाओं ने ही इस कानून को निष्क्रिय करने में अहम भूमिका निभाई थी? दहेज उत्पीड़न कानून के तहत कई फर्जी मामले दर्ज हुए जिसके चलते जो महिला सचमुच ही दहेज की शिकार थी उसके साथ कभी न्याय हुआ या नहीं हुआ यह देखने वाली बात है।
 
आखिर 498-ए क्या है?
परिवार में महिलाओं के खिलाफ हिंसा की प्रमुख वजहों में से एक दहेज प्रथा है। इस प्रथा के खिलाफ 498-ए के तहत कार्रवाई का प्रवधान है। इस धारा को आम बोलचाल में 'दहेज के लिए प्रताड़ना' के नाम से भी जाना जाता है। 498-ए की धारा में पति या उसके रिश्तेदारों के ऐसे सभी बर्ताव को शामिल किया गया है जो किसी महिला को मानसिक या शारीरिक नुकसान पहुंचाए या उसे आत्महत्या करने पर मजूबर करे। दोषी पाए जाने पर इस धारा के तहत पति को अधिकतम तीन साल की सजा का प्रावधान है। बस, मरने वाली महिला भले ही मर जाए आदमी 3 साल में बाहर निकल आएगा और फिर से शादी करके मजे करेगा।

 
समाज : 
धर्म और समाज उन शक्तिशाली व्यक्तियों का समूह है जो वक्त के अनुसार अपने हित में नियम बनाते और तोड़ देते हैं, लेकिन उनके नियमों में कभी भी महिलाओं को प्राथमिकता नहीं दी जाती रही है।उनके नियम धनवान या शक्तिशाली लोगों पर लागू नहीं होते हैं। 
 
दहेज प्रथा में समाज को जिम्मेदार नहीं माना जाता बल्की व्यक्ति को। दहेज मामले में हत्या कर या तलाक लेकर वे लोग फिर से उसी समाज में विवाह भी कर लेते हैं। ऐसा कौन-सा समाज है जो हत्यारों की शादी करने की इजाजत दे देता है फिर से जुर्म करने के लिए। ऐसा कौन-सा समाज है जिसने एक प्रस्ताव लाकर दहेज प्रथा को गैर-सामाजिक घोषित कर ऐसे लोगों को समाज से बाहर कर दिया है?
 
 
आज भी हम देखते हैं कि जब हम किसी की शादी में जाते हैं तो वहां पर दहेज का सामान सजा हुआ मिलता है। लड़की की जब विदाई होती है तब बस की छत पर आपने दहेज का सामान जमाते हुए लोगों को देखा होगा। शादी में समाज ही शालिम होता है न की कोई व्यक्ति। क्या समाज को यह दिखाई नहीं देता कि कोई अपनी बेटी को कितना दहेज दे रहा है और क्यों? समाज के तमाम बुद्धिजीवी वर्ग आज दहेज प्रथा को बढ़ावा दे रहे हैं। भारत के किसी भी वर्ग के परिवार में आपको इसका नजारा मिल ही जाएगा। खासतौर पर समृद्ध परिवारों में दहेज लेने की अधिक होड़ लगी रहती है। 
 
हमने धनाढ्य परिवारों की शादी को भी देखा है और अब तो इन समृद्ध परिवारों की तरह की मध्यमवर्गी परिवारों में भी दिखावे के चलते ये बढ़ गया है। लोग यह समझना ही नहीं चाह रहे हैं कि दहेज लेना और देना दोनों ही गुनाह है। भारतीय दंड संहिता भी अपराधी का सहयोग करने वाले को अपराधी मानती है। समाज को यह स्वत: संज्ञान नहीं लेना चाहिए?
 
एक पिता बहुत लाड़-प्यार से अपनी बेटी को पढ़ाता है, फिर उसके लिए अच्छे वर की तलाश करता है। फिर जब अच्‍छा रिश्ता मिल जाता है तो बात शुरू होती है कि किस तरह से विवाह करेंगे। फिर धीरे से बातों ही बातों में बात यह भी होने लगती है वर पक्ष की ओर से कि हमने अपनी बेटी की शादी में इतना दहेज दिया और आप देखिये दूसरों रिश्तेदारों और पड़ोसियों को कि वे कितना दे रहे हैं लेकिन हम तो इतना कुछ मांग ही नहीं रहे हैं।...वास्तव में यह तो अप्रत्यक्ष रूप से मांग ही होती है। कहते हैं कि साब हमें कुछ नहीं चाहिए बस बारातियों का स्वागत धूम धाम से कर देना या शादी का खर्च आप ही उठा लेना।
 
 
वर पक्ष में तो कई ऐसे होते हैं जो कि तब तक सीधे बने रहते हैं जब तक की फेरों का समय नहीं आ जाता। इसके बाद वे नाटक करना शुरू कर देते हैं। अगर वहां भी छुटकारा मिल जाए तो आगे ससुराल में लड़की को सताया जाता है, ताने दिए जाते हैं और कभी-कभी तो जान तक ले ली जाती है। खास बात यह कि किसी भी परिवार की यह कहानी समाज के जिम्मेदार लोग देख रहे होते हैं और वे कुछ भी नहीं करते हैं तब भी जबकि महिला आत्महत्या लेती हैं। ये ही समाज के जिम्मेदार लोग फिर से जब व्यक्ति दूसरी शादी करता है तब भी शादी में शामिल होते हैं। आप किसी भी समाज के जो जिम्मेदार हैं उनकी जिंदगी को भी नजदीक से देख लेना तो पता चल जाएगा कि समाज की बागडोर किन लोगों के हाथों में हैं और वे क्या चुपचाप तमाशा देखते रहते हैं। 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

National Science Day : 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस