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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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मम्मी, तेरी मम्मी की सारी कहानी याद आ गई : ज़ाकिर ख़ान की कविता

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डॉ. छाया मंगल मिश्र

ज़ाकिर ख़ान की मां को समर्पित कविता
 
इंदौर की सरज़मीन के फ़नकार, इंदौर का गौरव हैं ज़ाकिर ख़ान। युवा वर्ग में खासतौर से 'सख्त बंदे' की इमेज के रूप में ख्यातिप्राप्त हैं। आजकल स्टैंडअप कॉमेडियन के रूप में दुनियाभर में नाम कमा रहे हैं।

मशहूर सारंगीनवाज़ उस्ताद मोईनुद्दीन खां साहब मरहूम के पोते और सितारनवाज़ उस्ताद इस्माइल खां के साहबज़ादे ज़ाकिर की मां को समर्पित यह कविता अंत में आपको लगभग रुला देती है। सरल, सहज भाव से 'लॉकडाउन' के दौरान हुई जाकिर की मां से शिकायतभरी लाड़ की यह अभिव्यक्ति मन भिगो देती है। मां के प्रति यही प्यार और संवेदनाएं ही हैं, जो किसी 'सख्त बंदे' को भी कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ा देती हैं।
 
सभी को संदेश देती यह कविता कि मां को 'थैंक्स' बोलें और कहें दिल से दिल की बात अपनी मां को... इससे पहले कि मन की मन में ही रह जाए, मां को जोर से कस लें अपनी बाहों में, और कहें शुक्रिया इस दुनिया में लाने का, प्यार से पालने-पोसने, खिलाने-पिलाने, जायज-नाजायज नखरे उठाने का। वो जो न होती तो हम भी ना होते। आपका 'आई लव यू मां' उसको नई ऊर्जा, नई शक्ति, नवजीवन से भर देगा... और किसी भी मां के लिए आपका दिया प्यार, सम्मान, आपकी की हुई कद्र से बड़ा कोई तोहफा कभी हो ही नहीं सकता...।
 
ऐसे बुरे फंसे कि नानी याद आ गई,
मम्मी, तेरी मम्मी की सारी कहानी याद आ गई।
 
अब देख ना, पराये शहर में बैठकर बस, सांस लिए जा रहे हैं,
मम्मी यार तेरे खाने के सपने आजकल दिन-रात आ रहे हैं।
 
अब खुद से बनाना पड़ता है ना तो सोचता हूं,
कोई 'दो मिनट आती हूं' बोलकर किचन में ऐसा क्या 'टोना' करने जाती थी तू।
 
मसाले थे... घी की खुशबू थी... या तेरे हाथों का जादू,
पत्थर भी प्लेट में ले के आती थी न तो 'सोना' लगती थी।
 
अब देख तेरी परवरिश ने क्या हाल कर दिया,
इस 'लॉकडाउन' ने तो तेरे राजा बेटा को निढाल कर दिया।
 
यार... बर्तन मांजना क्यूं नहीं सिखाया मां तूने?
ये पंखा भी गंदा होता है... ये राज क्यूं नहीं बताया मां तूने?
 
हर रोज नए तरह से किचन में आग लगा लेते हैं,
हाथ पकड़ के रोटी बेलना क्यूं नहीं सिखाया मां तूने?
 
कभी दाल जलाते हैं... कभी सैंडविच बनाते हैं,
सोचता हूं, कितने खुशनसीब हैं वो लोग।
 
जो अभी भी इन दिनों में अपनी मां के हाथ का खाते हैं,
बताना चाहिए था ना... कि ठंडी रोटियों पर घी फैलता नहीं है।
 
बताना चाहिए था ना... कि चार दिन पुराना खाना... ये बदन झेलता नहीं है, 
तेरे खाने की खुशबू ना, रह... रहकर आती है।
 
तुझे कभी थैंक यू नहीं बोला ना... ये बात बहुत सताती है।
तेरे हाथों में जादू है, दुनिया की बेस्ट इंसान तू ही है... 
 
कभी फोन पर तो बोल नहीं पाया... पर हां... 
जमीन पर भगवान ना... तू ही है।
 
ऐसे बुरे फंसे हैं ना... कि नानी याद आ गई।
मम्मी! तेरी मम्मी की ना...। सारी कहानी याद आ गई...! 

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