Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

मातृ दिवस 2020 :वेदों में मिलती है मां की महिमा

हमें फॉलो करें happy mothers day
webdunia

डॉ. छाया मंगल मिश्र

happy mothers day


वेदों में 'मां' को 'अंबा','अम्बिका','दुर्गा','देवी','सरस्वती','शक्ति','ज्योति','पृथ्वी' आदि नामों से संबोधित किया गया है। 
 
 इसके अलावा 'मां' को 'माता', 'मात', 'मातृ', 'अम्मा', 'अम्मी', 'जननी', 'जन्मदात्री', 'जीवनदायिनी', 'जनयत्री', 'धात्री', 'प्रसू' आदि अनेक नामों से पुकारा जाता है। 
 
रामायण में श्रीराम अपने श्रीमुख से 'मां' को स्वर्ग से भी बढ़कर मानते हैं। वे कहते हैं-
 
'जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गदपि गरीयसी।'
 
अर्थात, जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है। 
 
महाभारत में जब यक्ष धर्मराज युधिष्ठर से सवाल करते हैं कि 'भूमि से भारी कौन?' तब युधिष्ठर जवाब देते हैं-
 
'माता गुरुतरा भूमेरू।'
 
अर्थात, माता इस भूमि से कहीं अधिक भारी होती हैं। 
 
 
इसके साथ ही महाभारत महाकाव्य के रचियता महर्षि वेदव्यास ने 'मां' के बारे में लिखा है-
 
'नास्ति मातृसमा छाया, नास्ति मातृसमा गतिः।
नास्ति मातृसमं त्राण, नास्ति मातृसमा प्रिया।।'
 
अर्थात, माता के समान कोई छाया नहीं है, माता के समान कोई सहारा नहीं है। माता के समान कोई रक्षक नहीं है और 
 
माता के समान कोई प्रिय चीज नहीं है
 
तैतरीय उपनिषद में 'मां' के बारे में इस प्रकार उल्लेख मिलता है-
 
'मातृ देवो भवः।'
 
अर्थात, माता देवताओं से भी बढ़कर होती है। 
 
'शतपथ ब्राह्मण' की  सूक्ति  कुछ इस प्रकार  है-
 
'अथ शिक्षा प्रवक्ष्यामः
मातृमान् पितृमानाचार्यवान पुरूषो वेदः।'
 
अर्थात, जब तीन उत्तम शिक्षक अर्थात एक माता, दूसरा पिता और तीसरा आचार्य हो तो तभी मनुष्य ज्ञानवान होगा।
 
 'मां' के गुणों का उल्लेख करते हुए आगे कहा गया है-
 
'प्रशस्ता धार्मिकी विदुषी माता विद्यते यस्य स मातृमान।'
 
अर्थात, धन्य वह माता है जो गर्भावान से लेकर, जब तक पूरी विद्या न हो, तब तक सुशीलता का उपदेश करे।
 
 हितोपदेश-
 
आपदामापन्तीनां हितोऽप्यायाति हेतुताम् ।
मातृजङ्घा हि वत्सस्य स्तम्भीभवति बन्धने ॥
 
 जब विपत्तियां आने को होती हैं, तो हितकारी भी उनमें कारण बन जाता है। बछड़े को बांधने में मां की जांघ ही खम्भे का काम करती है।
 
स्कन्द पुराण-
 
नास्ति मातृसमा छाया नास्ति मातृसमा गतिः।
नास्ति मातृसमं त्राण, नास्ति मातृसमा प्रिया।।'
 महर्षि वेदव्यास
 
 माता के समान कोई छाया नहीं, कोई आश्रय नहीं, कोई सुरक्षा नहीं। माता के समान इस दुनिया में कोई जीवनदाता नहीं।
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

Maharana Pratap History : भारत के गौरव महाराणा प्रताप की वीरता का इतिहास जानिए