Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

happy mothers day 2020 : तुझे सब है पता मेरी मां...

हमें फॉलो करें Mother's Day 2020

अरुंधती आमड़ेकर

Mother's Day 2020
मां
 
हां, मां को सब पता होता है, जो हम बताते हैं वो भी और जो नहीं बताते वो भी। जैसे भगवान से कुछ नहीं छुपता, वैसे ही मां से कुछ नहीं छुपता। मैंने और शायद आपने भी इस सच्‍चाई को कई बार महसूस किया होगा। मां से छुपना आसान है लेकिन उससे छुपाना बेहद मुश्किल है। जन्‍म लेने के बाद खुद को जानने में हमारी जिंदगी नि‍कल जाती है लेकिन मां तो हमें तब से जानती है, जब हम अजन्‍मे होते हैं।
 
हमारे सुख-दु:ख की जि‍तनी साक्षी हमारी मां होती है, उतना शायद ही कोई ओर हो, भले ही फि‍र मां सामने हो या ना हो। मां सि‍र्फ एक रिश्‍ता नहीं होता, वो एक संस्‍कार है, एक भावना है, एक संवेदना है। संस्‍कार इसलि‍ए, क्‍योंकि वो आपके लि‍ए सि‍र्फ और सि‍र्फ अच्‍छा सोचती है। भावना इसलि‍ए, क्‍योंकि वो आपके साथ दि‍ल से जुड़ी होती है और संवेदना इसलि‍ए, क्‍योंकि वो आपको हमेशा प्रेम ही देती है।
 
हम अपने जीवन की हर पहली चीज में अपनी मां को ही पाते हैं। इस दुनि‍या से हमें जोड़ने वाली मां ही होती है और मां के साथ ही हमारे हर नए रि‍श्‍ते की शुरुआत होती है। मां के साथ जुड़ा हर रि‍श्ता हमारा हो जाता है। मां हमें जन्‍म के बाद से सि‍र्फ देती ही है, कभी कुछ लेती नहीं है। उसके साथ हम सभी बहुत सहज महसूस करते हैं। 
 
दूसरे रि‍श्तों को नि‍भाने में हमें सतर्कता बरतनी पड़ती है, सोचना पड़ता है, समझना पड़ता है लेकिन मां के साथ नि‍बाह तो यूं ही नि‍र्बाध बहते पानी की तरह हो जाता है, क्‍योंकि हम जानते हैं कि मां को तो सब पता है। उसके साथ कैसी असहजता? हम ये सब कुछ सोच-समझकर नहीं करते अपि‍तु ये सब स्‍वाभावि‍क रूप से हम कर जाते हैं शायद इसलि‍ए कि हम मां से गर्भत: जुड़े होते हैं।
 
इन सबके बीच मां कभी हमें जानने का दावा नहीं करती, क्‍योंकि वो इसकी जरूरत नहीं समझती। वो जिंदगीभर सि‍र्फ हमारे लि‍ए जीती है। हम कितनी ही बार उससे उलझ लेते हैं लेकिन वो हमेशा हमें उलझनों से नि‍कालती रहती है। जरा सोचकर देखिए कि हम हर उम्र में उसे अपनी तरह से तंग किया करते हैं।
 
बचपन में हमारा रातों को जागना और दि‍न में सोना। मां हमारे लि‍ए कई रातों तक सो नहीं पाती, दि‍न में उसे घर की जि‍म्‍मेदारी सोने नहीं देती। तब हम अपने बचपने में उसे समझ नहीं पाते। जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं, हमारी पढ़ाई-लि‍खाई की जि‍म्‍मेदारी भी उसकी ही है और साथ ही अच्‍छे संस्‍कारों की भी जि‍म्‍मेदारी भी उसकी ही होती है। बड़े होते ही हमारी अपनी सोच बनती है, हमें एक वैचारिक दृष्टि मि‍लती है।
 
हमारी ये सोच जमाने की हवा के साथ बनती है और इसी के चलते कभी-कभी हमारे अपनी मां से वैचारि‍क मतभेद भी हो जाते हैं लेकिन मां तो हर जमाने में मां ही होती है। हम फि‍र एक बार उसे समझ नहीं पाते और वो फि‍र एक बार मात खा जाती है वो भी हमारे लि‍ए। ये वि‍डंबना ही है कि बचपन में हम बच्‍चे होने की वजह से मां को समझ नहीं पाते और बड़प्‍पन में बड़े होने की वजह से उसे समझ नहीं पाते।
 
मां को एक व्‍यक्ति के रूप में नहीं समझा जा सकता। उसे समझने के लि‍ए समाज और संसार के व्‍यवहारों से ऊपर उठना पड़ता है। मां को समझने के लि‍ए भावना का धरातल चाहि‍ए। एक व्‍यक्ति के तौर पर हो सकता है कि कभी मां से हमारे मतभेद हो जाएं लेकिन मां कभी गलत नहीं होती, बच्‍चा उसके लि‍ए दुनि‍यादारी से अलग होता है।
 
संतान की खुशी और उसका सुख ही मां के लि‍ए उसका संसार होता है। अक्‍सर जब मैं मां से पूछती हूं कि मां तुम ऐसी क्‍यों हो? मां का जवाब हमेशा एक ही होता है, 'इसे जानने के लि‍ए मां बनना जरूरी है'। सच ही है, मां कहने, सुनने, लि‍खने या सवाल-जवाब का विषय नहीं है, केवल अनुभव करने का वि‍षय है।


Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

‘संक्रमण-काल’ में डर से छुपते नागरिक की भूमिका को लेकर उठते सवाल