-दिलशाद ज़ाफरी
जब मैं तेरे आंगन में
एक फूल की मानिंद खिला
तू देख के मुझको जीती थी
मेरे आंसू पीती थी
मां ओ मां!
अक्सर डरकर मैं छुप जाता था
तेरे आंचल में
ख़ुशियों के सारे रंग मैं पाता था
तेरे आंचल में
मेरे लिए तू ही सारी दुनिया थी
तेरी झोली में ही तो मेरी सारी ख़ुशियां थीं।
आज!
मैं उलझा हूं जीवन के संघर्षों में
पर इस तपती दोपहरी में भी
मां!
तेरी कोई दुआ
बादल बनकर मेरी रूह से टकराती है
और
आज भी
सारी फ़िक्रों के बीच
मुझे ये ख़ुशियां दे जाती हैं