द्रौपदी के स्वयंवर में अर्जुन ने भाग लिया था। अर्जुन स्वयंवर की प्रतियोगिता जीत गए थे लेकिन द्रुपद की पुत्री द्रौपदी को पांचों पांडवों के साथ विवाह करना पड़ा। द्रौपदी समय-समय पर पांचों पतियों के साथ रमण करती थी। द्रौपदी ने एक-एक वर्ष के अंतराल से पांचों पांडव के एक-एक पुत्र को जन्म दिया। इस तरह द्रौपदी के पांच पुत्र थे। लेकिन अश्वत्थामा ने महाभारत के युद्ध के अंत में द्रौपदी के इन पांचों पुत्रों का सोते समय वध कर दिया था।
द्रौपदी महाभारत में एक ऐसा चरित्र है जिस पर जितना लिखा जाए उतना कम है। द्रौपदी से एक बार सत्यभामा ने पूछा था कि बहिन, तुम्हारे पति पांडवजन तुमसे हमेशा प्रसन्न रहते हैं। मैं देखती हूं कि वे लोग सदा तुम्हारे वश में रहते हैं, तुमसे संतुष्ट रहते हैं। तुम मुझे भी ऐसा कुछ बताओ कि मेरे श्यामसुंदर भी मेरे वश में रहें।
तब द्रौपदी बोली- सत्यभामा, ये तुम मुझसे कैसी दुराचारिणी स्त्रियों के बारे में पूछ रही हो। जब पति को यह मालूम हो तो वह अपनी पत्नी के वश में नहीं हो सकता। तब सत्यभामा ने कहा- तो आप बताएं कि आप पांडवों के साथ कैसा आचरण करती हैं? उचित प्रश्न जानकर तब द्रौपदी बोली- सास ने मुझे जो धर्म बताए हैं, मैं सभी का पालन करती हूं और सदा धर्म की शरण में रहती हूं। जब-जब मेरे पति घर में आते हैं, मैं घर साफ रखती हूं। समय पर भोजन कराती हूं। देवता, मनुष्य, सजा-धजा या रूपवान कैसा ही पुरुष हो, मेरा मन पांडवों के सिवाय कहीं नहीं जाता। पतिदेव के बिना अकेले रहना मुझे पसंद नहीं। बुरी बातें नहीं करती हूं और बुरी जगह पर नहीं बैठती हूं और किसी के भी समक्ष असभ्यता से खड़ी नहीं होती हूं।.. इस तरह द्रौपदी ने और भी कई बातें बताई।
अब सवाल यह उठता है कि क्या द्रौपदी पांचों पांडवों से किसी एक को अधिक प्रेम करती थी या कि पांचों पांडवों में कोई एक उससे अधिक प्रेम करता था?...बहुत शोध करने के बाद यह बात निकलकर सामने आती है कि भीम ही एकमात्र ऐसा पांडव थे जो द्रौपदी का अधिक खयाल रखते थे और उन्होंने द्रौपदी का अंत तक साथ दिया था।
1.पहली घटना : जुए में द्रौपदी को दांव पर लगाने पर सबसे ज्यादा क्रोधित भीम हुए थे और उन्होंने युधिष्ठिर का विरोध भी किया था। बाद में जब द्रौपदी का चीरहरण हो रहा था तो सबसे ज्यादा क्रोध भीम को ही आ रही था जबकि युधिष्ठिर सहित अन्य पांडव चुप थे। भीम अपने क्रोध पर काबू नहीं रख पाए और उसी समय उन्होंने प्रतिज्ञा ले ली कि दु:शासन की छाती का लहू पियूंगा और दुर्योधन की जंघा उखाड़ दूंगा। महाभारत के युद्घ में भीम ने अपनी इस प्रतिज्ञा को पूरा भी किया था।
2.दूसरी घटना : राजा विराट के राजमहल में पांचों पांडव भेष बदलकर एक साल के अज्ञातवास में रह रहे थे। उसी दौरान राजा विराट के साले कीचन ने कामांध होकर द्रौपदी को देखा और उसे राता को अपने कक्ष में अकेले में बुलाया। यह बात जब द्रौपदी ने भीम को बताई तो भीम ने कीचक का वध करने का प्रण लिया और रात के समय द्रौपदी की जगह खुद कीचक के कमरे में पहुंच गए। द्रौपदी समझकर जैसे ही कीचक ने भीम को हाथ लगाया। भीम ने कीचक को उठाकर पटक दिया। इसके बाद दोनों के बीच युद्ध हुआऔर भीम ने कीचक का वध कर दिया।
3.तीसरी घटना : जुए में अपना सब कुछ गंवा देने के बाद जब पांडव वनवास की सजा काट रहे थे, तब दुर्योधन के जीजा जयद्रथ की बुरी नजर द्रौपदी पर पड़ी। उसने द्रौपदी के साथ जबरदस्ती की और उसे रथ पर ले जाने का दुस्साहस भी किया। लेकिन एन वक्त पर पांडव आ गए और उसे बचा लिया। भीम ने तब जयद्रध की खूब पिटाई की और द्रौपदी के आदेश पर जयद्रथ के सिर के बाल मुंडकर उसको पांच चोटियां रखने की सजा दी और सभी जनता के सामने उसका घोर अपमान करवाया।
4.चौथी घटना : महाभारत के युद्ध की समाप्ति के बाद सभी पांडव सशरीर स्वर्ग गए थे। स्वर्ग अर्थात हिमालय के किसी क्षेत्र में जहां इंद्रादि का राज्य था। पांचों पांडव अपना राजपाट परीक्षित को सौंपकर जब स्वर्ग की कठिन यात्रा कर रहे थे तब इस यात्रा में भीम ने द्रौपदी का पूरा ध्यान रखा। कठिन चढ़ाई और कांटों भरे रास्ते में हर जगह भीम ने द्रौपदी को हर संभव सहयोग किया।
यात्रा के दौरान जब पांडव ब्रदीनाथ पहुंचें और वहां से आगे बढ़े तो सरस्वती नदी के उद्गम स्थल पर नदी को पार करना द्रौपदी के लिए कष्टकर हो गया था। ऐसे समय में भीम ने एक बड़ा सा चट्टान उठाकर नदी के बीच में डाल दिया। द्रौपदी ने इस चट्टान पर चलकर सरस्वती नदी को पार किया था। कहते हैं कि माणा गांव में सरस्वती के उद्गम पर आज भी इस चट्टान को देखा जा सकता है। इसे वर्तमान में भीम पुल कहा जाता है।
एक जगह द्रौपदी लड़खड़ाकर गिर पड़ी। द्रौपदी को गिरा देख भीम ने युधिष्ठिर से पूछा कि द्रौपदी ने कभी कोई पाप नहीं किया। तो फिर क्या कारण है कि वह नीचे गिर पड़ी? युधिष्ठिर ने कहा- द्रौपदी हम सभी में अर्जुन को अधिक प्रेम करती थीं। इसलिए उसके साथ ऐसा हुआ। ऐसा कहकर युधिष्ठिर द्रौपदी को देखे बिना ही आगे बढ़ गए।
जनश्रुति के अनुसार स्वर्ग यात्रा के दौरान द्रौपदी भीम का सहारा लेकर चलने लगी लेकिन द्रौपदी भी ज्यादा दूर नहीं चल पाई और वह भी गिरने लगी। ऐसे समय भीम ने द्रौपदी को संभाला। उस समय द्रौपदी ने कहा- सभी भाइयो में भीम ने ही मुझे सबसे ज्यादा प्यार किया है और मैं अगले जन्म में फिर से भीम की पत्नी बनना चाहूंगी।
थोड़ी देर बाद सहदेव भी गिर पड़े। तब भीम ने पूछा सहदेव क्यों गिरा? युधिष्ठिर ने कहा- सहदेव किसी को अपने जैसा विद्वान नहीं समझता था, इसी दोष के कारण गिरना पड़ा। कुछ देर बाद नकुल भी गिर पड़े। भीम के पूछने पर युधिष्ठिर ने बताया कि नकुल को अपने रूप पर बहुत अभिमान था। इसलिए आज इसकी यह गति हुई है।
थोड़ी देर बाद अर्जुन भी गिर पड़े। युधिष्ठिर ने भीम से कहा- अर्जुन को अपने पराक्रम पर अभिमान था। अर्जुन ने कहा था कि मैं एक ही दिन में शत्रुओं का नाश कर दूंगा, लेकिन ऐसा कर नहीं पाए। अपने अभिमान के कारण ही अर्जुन की आज यह हालत हुई है। ऐसा कहकर युधिष्ठिर आगे बढ़ गए। थोड़ी आगे चलने पर भीम भी गिर गए। तब भीम ने गिरते वक्त युधिष्ठिर से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि तुम खाते बहुत थे और अपने बल का झूठा प्रदर्शन करते थे। इसलिए तुम्हें आज भूमि पर गिरना पड़ा। यह कहकर युधिष्ठिर आगे चल दिए।
युधिष्ठिर कुछ ही दूर चले थे कि उन्हें स्वर्ग ले जाने के लिए स्वयं देवराज इंद्र अपना रथ लेकर आ गए। तब युधिष्ठिर ने इंद्र से कहा- मेरे भाई और द्रौपदी मार्ग में ही गिर पड़े हैं। वे भी हमारे हमारे साथ चलें, ऐसी व्यवस्था कीजिए। तब इंद्र ने कहा कि वे सभी शरीर त्याग कर पहले ही स्वर्ग पहुंच चुके हैं लेकिन आप सशरीर स्वर्ग में जाएंगे। इसके बाद इंद्र और युधिष्ठिर रथ में बैठाकर स्वर्ग की ओर निकल पड़े।