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पुराणों की प्राचीनता पर एक शोधपूर्ण नजर...

हमें फॉलो करें पुराणों की प्राचीनता पर एक शोधपूर्ण नजर...

अनिरुद्ध जोशी

, बुधवार, 25 जुलाई 2018 (13:58 IST)
पुराणों पर मध्यकाल से ही विवाद होता आया है। अंग्रेज काल में अंग्रेजों ने इसे अप्रमाणिक ग्रंथ कहना शुरू किया था फिर उनका अनुसारण हमारे यहां के तथाकथित इतिहासकारों ने भी किया। कहते हैं कि इस दुष्प्रचार के चलते ही आर्य समाज के लोग भी ऐसा ही मानते हैं।

दरअसल अंग्रेजी के मिथ शब्द के कारण बहुत भ्रांतियां फैली और इसी शब्द के कारण पुराणों को अप्रमाणिक मान लिए जाने का प्रचलन चला। पुराण का पुरातन शब्द से संबंध है। पुरातन अर्थात सबसे प्राचीन।
 
 
गौरतबल है कि पहले विदेशी आक्रांताओं ने बामियान, पुरुषपुर (पेशावर), कराची, चंडीगढ़, श्रीनगर, सोमनाथ, मथुरा, काशी, अयोध्या, प्रयाग, लुम्बिनी, दिल्ली (इंद्रप्रस्थ), मेरठ (हस्तीनापुर), बोधगया, सारनाथ, कुशीनगर, श्रावस्ती, सांची, पाटलिपुत्र, नालंदा, पंचानेर, पावागढ़, कौशाम्बी, लखनऊ (लक्ष्मणपुर), नासिक, आगरा (अंगिरा), राजगिरि, भोपाल (भोजपाल), उज्जैन (अतंतिका), रामेश्वरम, कोलकाता, ढाका, त्रिपुरा आदि महत्वपूर्ण हिन्दू स्थानों पर आक्रमण करके यहां के प्रमुख मंदिरों, महलों और शिक्षा के केंद्रों को ही नष्ट नहीं किया बल्कि हिन्दुओं के धर्मग्रंथों की पांडुलिपियों को ढूंढ-ढूंढ कर जलाया गया। इन तुर्क आक्रमणकर्ताओं में गजनवी, तेमुरलंग, औरंगजेब, मोहम्मद गौरी, बाबर, बख्तियार खिलजी के नाम प्रमुखता से लिए जाते हैं। इस विध्वंस के बाद पुराणों को अप्रमाणिक कहना उचित नहीं होगा। तब फिर पुराण क्या है?
 
 
माना जाता है कि विदेशी शासकों द्वारा पुराणों की प्रतिष्ठा गिराने के पीछे कारण यह था कि वे हिन्दुओं को उनके गौरवपूर्ण इतिहास से काट देना चाहते थे और इस काम में वे सफल भी हुए हैं तभी तो वे छटी शताब्दी से 19वीं शताब्ती के पूर्वार्ध तक राज कर पाए और उन्होंने अपने धर्म और संस्कृति को सबसे प्रमाणिक और सच्चा घोषित करके यहां उनका धर्म स्थापित किया।
 
 
ऐसा माना जाता है कि अंग्रेज काल के पहले मुगल काल में और उसके पहले बौद्ध काल में पुराणों के साथ छेड़खानी की गई जिसके चलते उसकी विरोधाभासी भाषा के कारण उसे अप्रमाणिक ग्रंथ माना जाता है। लेकिन आवश्यकता है पुराणों पर अनुसंधान और रिसर्च को बढ़ावा देने की तभी इसका सच निकलकर सामने आएगा।
 
 
पुराणों में दर्ज है प्राचीन भारत का इतिहास। वह इतिहास जिसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे। अंग्रेजों ने बुध के पूर्व के भारतीय इतिहास को पूर्णत: इतिहास से काटकर अलग करने का भरकस प्रयास किया और आज स्कूलों और कॉलेजों में भारत के इतिहास की शुरुआत बौद्धकाल से मानी जाती है। इसके पूर्व बस हम सिंधुघाटी की सभ्यता से ही शुरू हुए हैं। आज भी यही शिक्षा चल रही है, जबकि देश में 30 हजार साल पुरानी सभ्यता के अवशेष भारत में मौजूद हैं। सिंधु घाटी से भी पहले मध्यप्रदेश के नेमावर से बढ़वानी क्षेत्र तक विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता फैली थी जिसके अवशेष आज भी पाए जाते हैं। संपूर्ण नर्मदा घाटी क्षेत्र में इसके सबूत मौजूद हैं। खैर..
 
 
कितने हैं पुराण?
पुराणों की संख्या मुख्‍यत: अट्ठारह बताई गई है:- विष्णु, पद्य, ब्रह्म, शिव, भागवत, नारद, मार्कंडेय, अग्नि, ब्रह्मवैवर्त, लिंग, वाराह, स्कंद, वामन, कूर्म, मत्स्य, गरुड, ब्रह्मांड और भविष्य। 
 
 
इसे इस तरह समझे: ब्रह्म पुराण, पद्म पुराण, विष्णु पुराण, शिव पुराण (वायु पुराण), भागवत पुराण, (देवीभागवत पुराण), नारद पुराण, मार्कण्डेय पुराण, अग्नि पुराण, भविष्य पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण, लिङ्ग पुराण, वाराह पुराण, स्कन्द पुराण, वामन पुराण, कूर्म पुराण, मत्स्य पुराण, गरुड़ पुराण और ब्रह्माण्ड पुराण।
 
 
उपपुराण : गणेश पुराण, नृसिंह पुराण, कल्कि पुराण, एकाम्र पुराण, कपिल पुराण, दत्त पुराण, श्रीविष्णुधर्मोत्तर पुराण, मुद्गगल पुराण, सनत्कुमार पुराण, शिवधर्म पुराण, आचार्य पुराण, मानव पुराण, उश्ना पुराण, वरुण पुराण, कालिका पुराण, महेश्वर पुराण, साम्ब पुराण, सौर पुराण, पराशर पुराण, मरीच पुराण और भार्गव पुराण। हरिवंश पुराण, सौरपुराण और प्रज्ञा पुराण भी शामिल हैं।
 
 
पुराण किसने लिखे:
पुराण शब्द 'पुरा' एवं 'अण शब्दों की संधि से बना है। पुरा का अथ है- 'पुराना' अथवा 'प्राचीन' और अण का अर्थ होता है कहना या बतलाना। सवाल यह उठता है कि पुराण किसने कहे, लिखे और कितने हैं? 
 
 
एक वेद व्यास परशुराम के बाद और राम के पहले हुए दूसरे वेद व्यास भगवान कृष्ण के समय में हुए। पहले वेद व्यास ने वेदों को पुन: स्थापित किया और दूसरे वेद व्यास ने महाभारत और कुछ पुराण सहित अनेक ग्रंथ लिखे थे। पुराणों अनुसार ही अब तक 27 वेद व्यास हो चुके हैं। कृष्ण के समय के पराशर मुनी के पुत्र को 28वां वेद व्यास माना जाता है जिनका नाम कृष्णद्वैपायमान था। पहले वेदव्यास विष्णु का अवतार थे।
 
 
कहते हैं कि संसार की रचना करते समय ब्रह्मा ने एक ही पुराण की रचना की थी। जिसमें एक अरब श्लोक थे। लेकिन बाद में इस पुराण को वेद व्यासों ने समय समय पर कई भागों में विभक्त किया। हालांकि इतिहासकार मानते हैं ‍कि पुराणों की रचना वैदिक काल के काफी बाद की है, ये स्मृति विभाग में रखे जाते हैं। मुलत: 18 पुराण माने जाते हैं जिसमें 4 लाख श्लोक हैं।
 
 
कहते हैं कि 18 पुराण महर्षि वेद व्यास ने लिखे हैं। वेदव्यास मुनि पराशर के पुत्र थे और कौरवों के पिता थे। लेकिन यहां यह बताना जरूरी है कि सभी पुराण वेदव्यासजी ने नहीं लिखे। उनमें से कुछ पुराण अन्यों ने लिखे हैं जैसे विष्णु पुराण को उनके पिताश्री पराशर मुनी ने लिखा है तो उपपुराणों को समय समय पर अन्य ऋषियों ने लिखा। इसमें से कुछ पुराण तो बौद्धकाल और मध्यकाल में लिखे गए माने जाते हैं जैसे ब्रह्मवैवर्त पुराण और भविष्यपुराण आदि।
 
 
यद्यपि आजकल जो पुराण मिलते हैं उनमें से अधिकतर पीछे से बने हुए या प्रक्षिप्त विषयों से भरे हुए हैं तथापि पुराण बहुत प्राचीन काल से प्रचलित थे। वेदों के अंतर्गत आने वाले छांदोग्य उपनिषद् में लिखा है कि पुराण वेदों में पांचवां वेद है। इससे यह सिद्ध होता है कि अत्यंत प्राचीन काल में वेदों के साथ पुराण भी प्रचलित थे जो यज्ञ आदि के अवसरों पर कहे जाते थे। 
 
 
पुराणों का एक और सत्य :
ब्रह्म, मत्स्य, विष्णु, ब्रह्मांड आदि सब पुराणों में ब्रह्मपुराण पहला कहा गया है। शोधकर्ता पुराणों में सबसे पुराने पुराण ब्रह्म पुराण और विष्णु पुराण को मानते हैं क्योंकि पुराण के पांचों लक्षण भी उस पर ठीक बैठते हैं। उसमें सृष्टि की उत्पत्ति और लय, मन्वंतरों, भरतादि खंडों और सूर्यादि लोकों, वेदों की शाखाओं तथा वेदव्यास द्वारा उनके विभाग, सूर्य वंश, चंद्र वंश आदि का वर्णन है। इन पुराणों के बाद मत्स्य पुराण, स्कंद और वराह पुराण की प्रतिष्ठा है। फिर शिव और देवीभागवत पुराण। कुछ लोगों का कहना है कि वायुपुराण ही शिवपुराण है।
 
 
लेकिन कुछ पुराणों में कलिकाल के राजाओं में मगध के मौर्य राजाओं तथा गुप्तवंश के राजाओं तक का उल्लेख मिलता है तो इससे सिद्ध होता है कि या तो पुराणों में इनकी वंशावली जोड़ी गई या ये पुराण इसी काल में लिखे गए होंगे।
 
 
पुराणों में श्रीमद्भागवत पुराण का ही प्रचार सबसे अधिक है क्योंकि उसमें भक्ति के माहात्म्य और श्रीकृष्ण की लीलाओं का विस्तृत वर्णन है। इसमें 12 स्कंधों के भीतर पुरातन सभी प्रसंगों को समेटा गया है। अग्निपुराण में इतिहास के साथ साथ ही आयुर्वेद, व्याकरण, रस, अलंकार, शस्त्र- विद्या आदि अनेक विषयों का वर्णन है।
 
 
हालां‍कि शोधकर्ता मानते हैं कि प्राचीनकालीन पुराणों के खोज जाने और नष्ट हो जाने के बाद आजकल के जो पुराण मिलते हैं उन्हें मध्यकाल में रचा गया होगा और जहां तहां से मिले बिखरे हुए सूत्रों का समेटने का प्रयास किया गया होगा। इसीलिए पुराणों में कहीं कहीं तात्कालिक परिस्थिति का वर्णन और कुछ ऐसे श्लोक भी मिलते हैं जिनको मूल पुराणकार से अलग रचा हुआ माना जा सकता हैं। हालांकि यह पुराण मथुरा और काशी आदि के कंठस्थ ब्राह्मणों द्वारा सुनकर लिखे गए पुराण हैं, तो उन्होंने अपनी पीढ़ियों से ‍जितना सुना उतना कंठस्थ किया। अधिकतर विद्वान मानते हैं कि शंकराचार्य के काल में पुराणों और वेदों का पुनरुद्धार किया गया लेकिन मध्यकाल में आक्रांतानों ने इन्हे नष्ट कर दिया था।
 
 
सारांश यह कि अधिकांश पुराणों का वर्तमान रूप हजार वर्ष के भीतर का है। इसका कारण यह कि यदि यह पुराण प्राचीन होते तो इनमें किसी जाति और धर्म विशेष के प्रति द्वैष वाली भावनाओं का प्राचार नहीं मिलता। जैसे शूद्र, मलेच्छ, यवनादि के बारे में उल्लेख करना।
 
 
मत्स्यपुराण में स्पष्ट लिखा है कि पहले पुराण एक ही था, उसी से 18 पुराण हुए (53/4)। शिवपुराण के अंतर्गत रेवा माहात्म्य में लिखा है कि अठारहों पुराणों के वक्ता मत्यवतीसुत व्यास हैं। 
 
 
ब्राह्मांड पुराण में लिखा है कि वेदव्यास ने एक पुराणसंहिता का संकलन किया था। इसके आगे की बात का पता विष्णु पुराण से लगता है। उसमें लिखा है कि व्यास का एक रोम हर्षण नाम का शिष्य था जो सूति जाति का था। व्यासजी ने अपनी पुराण संहिता उसी के हाथ में दी। रोम हर्षण के छह शिष्य थे- सुमति, अग्निवर्चा, मित्रयु, शांशपायन, अकृतव्रण और सावर्णी। इनमें से अकृत- व्रण, सावर्णी और शांशपायन ने रोम हर्षण से पढ़ी हुई पुराणसंहिता के आधार पर और एक एक संहिता बनाई। वेदव्यास ने जिस प्रकार मंत्रों का संग्रहकर उनका संहिताओं में विभाग किया उसी प्रकार पुराण के नाम से चले आते हुए वृत्तों का संग्रह कर पुराणसंहिता का संकलन किया। उसी एक संहिता को लेकर सुत के चेलों के तीन और संहीताएं बनाई। इन्हीं संहिताओं के आधार पर अठारह पुराण बने होंगे।
 
 
आजकल जो पुराण मिलते हैं उनमें विष्णु और ब्रह्म, ब्रह्मांड पुराण बौद्धकाल के जान पड़ते हैं, क्योंकि उनकी रचनावली में अन्य पुराणों से भिन्नता है, जो उसी काल को वर्णित करती है। विष्णु पुराण में 'भविष्य राजवंश' के अंतर्गत गुप्तवंश के राजाओं तक का उल्लेख है।
 
 
जावा के पास बाली टापू पर हिंदुओं के पास एक ब्रह्मांड पुराण मिला है। इन हिंदुओं के पूर्वज ईसा की पांचवी शताब्दी में भारतवर्ष में पूर्व के द्वीपों में जाकर बसे थे। बालीवाले ब्रह्मा़डपुराण में 'भविष्य राजवंश प्रकरण' नहीं है उसमें जनमेजय के प्रपौत्र अधिसीमकृष्ण तक का नाम पाया जाता है। इससे यह सिद्ध होता है कि विष्णु पुराण में बाद के राजवंशों की वंशावली को जोड़ा गया होगा, लेकिन यह तो तय हो गया ही उसका बाकी हिस्सा प्राचीन है अर्थात महाभारत काल का ही है।
 
 
हालांकि यह तो तथ्‍य सिद्ध है कि पुराणों की रचना महाभारत काल में पराशर मुनी, उनके पुत्र वेद व्यास और उनके शिष्यों पैल, जैमिन, वैशम्पायन, सुमन्तमुनि और रोम हर्षण ने मिलकर की थी। उसके बाद शिष्यों की परंपरा ने उस वेद और पुराण के ज्ञात के बौद्धकाल तक जिंदा बनाए रखा। मध्यकाल में हिन्दुओं के ग्रंथों सहित मंदिरों और स्मारकों को नष्ट किए जाने का एक खतरनाक दौर चला और अंग्रेज काल में भारतीयों को अपने गौरवपूर्ण इतिहास से काटका की साजिश रची गई जिसके चलते अखंड भारत जाति और धर्म में बंटकर खंड-खंड हो गया।
 

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