महाभारत में द्रौपदी एक अहम् किरदार है। द्रौपदी के जीवन और चरित्र को समझना बहुत ही कठिन है। उन्हें तो सिर्फ कृष्ण ही समझ सकते थे। द्रौपदी श्रीकृष्ण की मित्र थी। मित्र ही मित्र को समझ सकता है। आज हम आपको द्रौपदी की वे पांच गलतियां बताना चाहते हैं जिसके कारण महाभारत की संपूर्ण कहानी बदल गई। यदि द्रौपदी ये गलतियां नहीं करती तो आज इतिहास कुछ और होता।
1. स्वयंवर में कर्ण का अपमान करना : द्रौपदी कर्ण को चाहती थी, लेकिन जब उसे पता चला कि कर्ण तो सूत पुत्र है तो उसने अपना इरादा बदल दिया। उसने पहली बात तो यह कि कर्ण को स्वयंवर की प्रतियोगिता में भाग नहीं लेने दिया और दूसरा यह कि उसने कर्ण को बुरी तरह अपमानीत किया। यदि वह ऐसा नहीं करती तो परिणाम कुछ ओर होता। हालांकि द्रौपदी के पिता ने द्रोणाचार्य की मृत्यु की प्रतिज्ञा ली थी और उनका वध अर्जुन के अलावा और कोई नहीं कर सकता था इसलिए वे चाहते थे कि उनकी पुत्री का विवाह अर्जुन से ही हो।
2.पांडवों की पत्नी बनना स्वीकार करना : अर्जुन ने स्वयंवर की प्रतियोगिता को जीत लिया था लेकिन किन्हीं भी परिस्थितियों में द्रौपदी यदि पांचों पांडवों की पत्नी बनना स्वीकार नहीं करती तो आज इतिहास कुछ ओर होता। द्रौपदी कुंति के कहने या स्वयंवर के बाद युधिष्ठिर और वेद व्यासजी के कहने पर पांचों से विवाह करना स्वीकार किया था।
3.दुर्योधन का अपमान : द्रौपदी ने ही इंद्रप्रस्थ में युधिष्ठिर के राज्याभिषेक के समय दुर्योधन को कहा था, 'अंधे का पुत्र भी अंधा।' बस यही बात दुर्योधन के दिल में तीर की तरह धंस गई थी। यही कारण था कि द्यूतकीड़ा में उनसे शकुनी के साथ मिलकर पांडवों को द्रौपदी को दांव पर लगाने के लिए राजी कर लिया था। द्यूतकीड़ा या जुए के इस खेल ने ही महाभारत के युद्ध की भूमिका लिख दी थी जहां द्रौपदी का चिरहरण हुआ था।
4. युद्ध के लिए प्रेरित करना : अपनी चिरहरण के बाद द्रौपदी ने पांडवों से कहा कि यदि तुम दुर्योधन और उनके भाइयों से मेरे अपमान का बदला नहीं लेते हो तो धिक्कार है तुम्हें। द्रौपदी ने पांडवों से कहा कि मेरे केश अब तब तक खुले रहेंगे जब तक कि दुर्योधन के खून से इन्हें धो नहीं लेती। उस समय द्रौपदी ने ऋतु स्नान नहीं था। ऐसे में भीम ने कसम खाई कि मैं दुर्योधन की जांघ को गदा से तोड़ दूंगा और दु:शासन की छाती को चीरकर उसका रतक्तपान करूंगा। चीरहरण के दौरान कर्ण ने द्रौपदी को बचाने की जगह कहा, 'जो स्त्री पांच पतियों के साथ रह सकती है, उसका क्या सम्मान।' यह बात द्रौपदी को ठेस पहुंचा गई और वह हर समय अर्जुन को कर्ण से युद्ध करने के लिए उकसाती रही।
5.जयद्रथ की बुरी नजर : जुए में अपना सब कुछ गंवा देने के बाद जब पांडव वनवास की सजा काट रहे थे, तब दुर्योधन के जीजा जयद्रथ की बुरी नजर द्रौपदी पर पड़ी। उसने द्रौपदी के साथ जबरदस्ती की और उसे रथ पर ले जाने का दुस्साहस भी किया। लेकिन एन वक्त पर पांडव आ गए और उसे बचा लिया। पांडव वहीं पर जयद्रथ का वध करना चाहते थे लेकिन द्रौपदी ने पांडवों को ऐसा करने से तो रोक दिया जोकि उसकी बड़ी गलती थी। द्रौपदी ने जयद्रथ के सिर के बाल मुंडवाकर पांच चोटियां रखने की सजा दी और सभी जनता के सामने उसका घोर अपमान करवाया। जयद्रथ किसी को अपना चेहरा दिखाने के लायक नहीं रहा और हर पल अपमान को सहता रहा। इस अपमान का बदला जयद्रथ ने चक्रव्यूह में फंसे अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु को मौत के घाट उतारकर लिया।
तो यह थे द्रौपदी की महाभरत को रचने में खास भूमिका। हालांकि द्रौपदी का उपरोक्त के अलावा और भी बहुत कुछ योगदान रहा है। इनमें से ऐसे कई कार्य है जिसके लिए उनकी प्रशंसा की जानी चाहिए।