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त्रिभाषा सूत्र के लिए सभी सांसद बनाएं वातावरण- देवपुजारी

संस्कृत में शपथ लेने वाले मध्यप्रदेश के सांसदों का सम्मान

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, शनिवार, 6 जुलाई 2019 (13:52 IST)
दौर। सुधीर गुप्ता, गजेन्द्र पटेल, जीएस डामोर, महेन्द्रसिंह सोलंकी, रोडमल नागर, दुर्गादास उइके, साध्वी प्रज्ञा, छतरसिंग दरबार आदि 2019 में निर्वाचित हुए मध्यप्रदेश के 8 सांसदों का सम्मान रुद्राक्ष की माला पहनाकर संस्कृत भारती के अखिल भारतीय महामंत्री श्रीश देवपुजारी तथा मध्यक्षेत्र के संघटन मंत्री प्रमोद पण्डित द्वारा 4 जुलाई को नई दिल्ली में किया गया।
 
इस अवसर पर श्रीश देवपुजारी एवं प्रमोद पंडित ने उपस्थित सांसदों को नई शिक्षा नीति हेतु कुछ सुझाव भी दिए गए। इनमें 8वीं तक शिक्षा प्रादेशिक भाषा माध्यम में अनिवार्य रूप से कराई जाए। विद्यालय की भाषा के स्थान पर राज्य की भाषा किया जाए। ग्रेड 3 से ही त्रिभाषा सूत्र लागू किया जाए। त्रिभाषा सूत्र को ग्रेड 10वीं तक अनिवार्य किया जाए। संपूर्ण भारत को एकता के सूत्र में बांधने वाली संस्कृत को अनिवार्य किया जाए। अंग्रेजी की अनिवार्यता हटाई जाए। व्यावसायिक विषयों को भाषा के विकल्प में न रखा जाए।
 
इसके साथ ही संस्कृत कौशल विकास के विषयों में सम्मिलित हो। उसमें प्रवचन अर्थात वाल्मीकि रामायण एवं भागवत, ज्योतिष, आयुर्वेद, योग, वास्तुशास्त्र, कर्मकांड आदि छ: अध्याय पढाए जाएं। त्रिभाषा सूत्र में लचीलेपन के अंतर्गत केवल ग्रेड 6 में ही भाषा बदलने का विकल्प दिया जाए।
 
माध्यमिक विद्यालयों में विदेशी भाषाओं का विकल्प न रखा जाए। राज्य की भाषा के साहित्य के साथ उसकी सहायक उपभाषाओं, बोलियों के साहित्य को भी सम्मिलित किया जाए, न कि विभिन्न भाषाओं या उर्दू आदि के साहित्य को।
 
सुझावों में कहा गया कि भारतीय भाषाओं का पाठ्यक्रम पूरा करने का विकल्प उच्च शिक्षा में भी उपलब्ध होना चाहिए। उदाहरण के लिए MBA होकर मार्केटिंग करने के लिए भारतीय भाषाओं का ही सहारा लेना होगा, किन्तु छात्र तो अंग्रेजी माध्यम में पढ़ा होता है। संस्कृत शिक्षा पर अलग से पूर्ण विचार हो। संस्कृत के विविध ज्ञान को लिबरल आर्ट एजुकेशन के साथ ही सभी विद्यालयों एवं उच्च शिक्षा के स्तरों पर विभिन्न विषयों के साथ संबद्ध कर सभी विषयों में सम्मिलित करना चाहिए।
 
उच्च शिक्षा में भी सीबीसीएस आदि क्रमों में भी संस्कृत का विकल्प उपलब्ध कराना चाहिए। विज्ञान, वाणिज्य, प्राद्योगिकी, प्रबंधन, और चिकित्सा आदि पाठ्यक्रमों में भी संस्कृत पढ़ने का विकल्प मिलना चाहिए। संस्कृत के वैज्ञानिक पक्ष को भी पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया जाना चाहिए।
 
सभी संस्कृत विश्वविद्यालयों की उपाधियों की मान्यता के लिए केन्द्र सरकार की ओर से सभी विश्वविद्यालय, भर्ती बोर्ड, मंत्रालयों और निकायों को आदेश जारी किया जाए। उल्लेखनीय है कि इस समय संस्कृत विश्वविद्यालय की उपाधियों को लेकर हरियाणा, उड़ीसा आदि राज्यों में न्यायालयों में वाद चल रहा हैं। इसके साथ ही डिजिटल इंडिया को संस्कृत के पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया जाए।
 
सुझावों के अनुसार डिजिटल साक्षरता गुरुकुलों में भी लागू की जानी चाहिए। नीतिपरक और नैतिक चिंतन में महापुरुषों और शहीदों की जीवनी को शामिल किया जाना चाहिए। पंचतंत्र और जातक कथाएं भी इसमें शामिल की जानी चाहिए। बुनियादी स्वास्थ्य और सुरक्षा के प्रशिक्षण में से यौन शिक्षा को हटाया जाना चाहिए।
 
नीतिपरक और नैतिक चिंतन पर पाठ्यक्रम शिक्षा के हर स्तर पर और हर प्रकार पर उपलब्ध किया कराया जाना चाहिए। उच्च गुणवत्ता के अनुवाद के लिए आईआईटीआई की स्थापना शीघ्रता से हो और दायित्व निर्धारित किया जाए। 20 से कम संख्या वाले विद्यालयों के समेकन से संस्कृत गुरुकुलों को छूट मिलनी चाहिए। इसमें कहा गया है कि संस्कृत विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों को संख्या संबंधी छूट दी जानी चाहिए। साथ ही इनका पुनः वर्गीकरण किया जाना चाहिए। लिबरल एजुकेशन के अंतर्गत संस्कृत में उल्लेखित 64 कलाओं को पुनर्जीवित किया जाना चाहिए।
 
राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान को केंद्रीय विश्वविद्यालय घोषित कर अलग से नया संस्थान स्थापित किया जाए जो संपूर्ण देश में संस्कृत के अनुसंधान शिक्षण आदि की व्यवस्था देखे। यही संस्थान प्रशासनिक, न्यायालयीय, वित्तीय इत्यादि क्षेत्र में प्रयुक्त होने वाली शब्दावली का निर्माण करे।
 
इस अवसर पर सांसदों ने कहा कि संस्कृत में शपथ लेना एक गौरव की अनुभूति थी। उन्होंने भविष्य में संस्कृत भाषा के हित में काम करने की इच्छा प्रकट की। पारंपरिक संस्कृत विद्यालयों को सबल बनाने का संकल्प भी दो सांसदों ने लिया। यजमान मंदसौर के सांसद सुधीर गुप्ता ने संस्कृत भारती के अधिकारियों का एवं उपस्थित सांसदों का स्वागत उत्तरीय और पुष्पगुच्छ देकर किया।

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