Ground Report : कोरोना के बाद अब कुदरत की मार,लॉकडाउन में घर लौटे किसान परिवार अब रोटी-रोटी को मोहताज !

भारी बारिश ने किसानों की फसल को किया बर्बाद,नौकरी खोने के बाद फसल ही थी आखिरी सहारा

विकास सिंह
बुधवार, 2 सितम्बर 2020 (13:54 IST)
भोपाल। मध्यप्रदेश में किसानों पर एक बार फिर कुदरत की मार पड़ी है। पहले जून-जुलाई की कम बारिश ने किसानों को चिंता मे डाला तो वहीं अगस्त के आखिरी दिनों में हुई रिकॉर्ड बारिश ने खेतों में खड़ी फसल को बर्बाद कर दिया है। प्रदेश में अब भी रूक रूक कर जारी बारिश के दौर से किसान यह सोचने पर मजबूर हो गए हैं कि उनकी लागत पूंजी भी निकल पाएगी या नहीं। 
 
भारी बारिश और बाढ़ से किसानों की खेतों में खड़ी फसल पूरी तरह बर्बाद हो गई है। बारिश का सीधा असर सोयाबीन और तिलहन की फसल पर पड़ा है। ऐसे में गांव के वह किसान परिवार जो पहले ही लॉकडाउन की मार झेल रहे थे उन पर अब दोहरी मार पड़ी है। 
 
लॉकडाउन के दौरान ‘वेबदुनिया’ ने जब बड़े-बड़े महानगरों से वापस घर लौटे प्रवासी मजदूरों से बात की थी तो उन्होंने साफ कहा था कि वह खेती किसानी कर लेंगे लेकिन वापस कमाने नहीं जाएंगे। ऐसे में अब बारिश ने ऐसे किसानों के सामने बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। 
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पहले कोरोना और अब कुदरत की मार झेलने को मजबूर ऐसे ही किसानों से ‘वेबदुनिया’ ने फिर बातचीत कर उनकी परेशानी को जाना। छतरपुर जिले के गौरिहार तहसील के रहने वाले बबलू जोशी जो पत्नी-बच्चों और भाइयों के साथ दिल्ली में ई-रिक्शा चलाते थे, लॉकडाउन के कारण वापस अपने घर लौटने को मजबूर हुए थे और परिवार चलाने के लिए खेती किसानी कर रहे थे। 
 
‘वेबदुनिया’ से बातचीत में बबलू जोशी कहते हैं कि गांव लौटने पर पांच हजार का कर्ज लेकर दस बीघा बटाई की जमीन पर तिलहन की बुवाई की थी लेकिन आधी जमीन में ही तिलहन उगी और अब बारिश ने बची खुची फसल पूरी तह बर्बाद कर दी। ऐसे में अब घर का खर्च चलाने के साथ साथ कर्ज कहां से लौटाएंगे सबसे बड़ी चिंता इस बात की है। तीन भाइयों में सबसे बड़े बबलू जोशी कहते हैं कि पहले से ही पत्नी की बीमारी का कर्ज था और अभी बुआई का कर्ज। यदि बारिश थम जाएगी तो भी मुश्किल से एक क्विंटल तिलहन मिलने की ही उम्मीद है।
सरकार से मदद मिलने के सवाल पर बबलू जोशी कहते हैं कि फसल बीमा योजना का कोई पता ही नहीं है, खुद की जमीन नहीं है तो प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना का लाभ भी नहीं मिल पा रहा है। भविष्य के सवाल पर बबलू जोशी कहते हैं कि खेती से दो वक्त की रोटी मिलना भी मुश्किल हो रहा है ऐसे में अब लोगों का कर्ज चुकाने के लिए वापस बाहर जाना मजबूरी हो गया है। 
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कुछ ऐसी ही कहानी बुजुर्ग किसान उस्ताद अहिरवार की भी है। ‘वेबदुनिया’ से बातचीत में अहिरवार कहते हैं कि लॉकडाउन के पहले मेरे तीनों लड़के बाहर कमाते थे जिससे घर का खर्च चलता था। मार्च में लॉकडाउन के बाद सभी लोग घर लौट आए है और फिर बाजार से कर्ज लेकर बटाई की जमीन पर खेती की थी लेकिन अब बारिश ने पूरी फसल बर्बाद कर दी है और लागत भी निकालना मुश्किल हो गया है।
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ऐसे में अब पूरा परिवार रोटी-रोटी को मोहताज हो गया है। उस्ताद अहिरवार कहते हैं कि पिछली बार की बारिश ने भी फसल हमसे छीन ली थी और इस बार फिर कुछ ऐसे हालात दिखाई दे रहे है। ऐसे में अभी जब पिछले साल का कर्ज ही नहीं चुका पाए थे तब नया कर्जा कहा से चुकाएंगे। 
भारी बारिश और बाढ़ से बर्बाद फसलें -मध्यप्रदेश में रिकॉर्ड बारिश के चलते बाढ़ के चलते खेतों में पानी भरने से खड़ी फसलें या तो बर्बाद हो गई या बर्बादी के कगार पर पहुंच गई है। वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर साधुराम शर्मा कहते हैं कि लगातार बारिश  से किसानों के सामने बड़ा संकट खड़ा हो गया है।
 
'वेबदुनिया' से बातचीत में कृषि एक्सपर्ट डॉक्टर साधुराम शर्मा कहते हैं कि बारिश से खेतों में पानी भरने से सबसे अधिक नुकसान दलहन और तिलहन की फसलों को हुआ है। भारी बारिश और बाढ़ से लाखों हेक्टेयर में बोई गई दलहन की फसल को बहुत नुकसान हुआ है। पहले तो खेतों में पानी भरने से फसलें सड़ गई उसके बाद बाढ़ का पानी जब उसके उपर से निकला तो फसल पूरी तरह बिछ गई। ऐसे में अब वह फसल किसी काम की नहीं बची है।

बातचीत में साधुराम शर्मा महत्वपूर्ण बात कहते हैं कि खरीफ की फसल बर्बाद होने से किसानों के पास अब कोई विकल्प भी नहीं बचा है कि वह कोई और फसल बो सके। 

मध्यप्रदेश में बारिश से बर्बाद हुई फसल की जमीनी हकीकत देखने लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लगातार बाढ़ प्रभावित इलाको में जाकर किसानों से मिल रहे है और हर संभव सहायता देने की बात कह रहे है। ऐसे में देखना हो कि कुदरत की मार झेल रहे किसानों  को अब सरकार कितनी मदद मिल पाएगी।

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