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इस बार आसान नहीं है हेमा की राह, मथुरा में होगी रोचक जंग

हमें फॉलो करें इस बार आसान नहीं है हेमा की राह, मथुरा में होगी रोचक जंग
मथुरा , बुधवार, 3 अप्रैल 2019 (14:46 IST)
मथुरा। जाट समुदाय के दबदबे वाली मथुरा लोकसभा सीट पर दिलचस्प जंग देखने को मिलेगी, जिसमें मौजूदा भाजपा सांसद हेमा मालिनी को ‘मोदी लहर’ पर भरोसा है वहीं दूसरी ओर इसे ‘बृजवासी बनाम बाहरी’ के बीच मुकाबला करार दे रहे विपक्ष का दावा है कि सांसद को स्थानीय समस्याओं से कोई सरोकार नहीं रहा।
 
इस सीट पर, पहली बार राष्ट्रीय लोकदल ने कोई जाट उम्मीदवार नहीं उतारा है। समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और रालोद के गठबंधन ने राजपरिवार के सदस्य कुंवर नरेंद्रसिंह को टिकट दिया है जो तीन विधानसभा चुनाव हार चुके हैं। भाजपा के अगड़े वोटों में सेंध मारने के लिए कांग्रेस ने महेश पाठक को उतारा है।
 
पिछले चुनाव में रालोद के जयंत चौधरी को 3 लाख 30 हजार 743 वोट से हराने वाली हेमा के लिए इस बार चुनौती आसान नहीं होगी बशर्ते विपक्ष जाट, अन्य पिछड़ा वर्ग, मुस्लिम और ठाकुर वोटों का ध्रुवीकरण करने में कामयाब रहता है। 
 
मतदाताओं के मूड को भांपना हालांकि आसान नहीं है क्योंकि कई बार स्थानीय मसले हाशिए पर चले जाते हैं। कुछ का मानना है कि बालाकोट हवाई हमला और मिशन शक्ति चुनावी मसले हो सकते हैं तो कुछ की नजर में मथुरा में किसानों की समस्याएं, बेरोजगारी और विकास का अभाव बड़े मुद्दे हैं। 
 
श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर के पास एक दुकानदार ने कहा कि हम हेमा मालिनी को नहीं जानते, लेकिन हम मोदी को वोट देंगे। कई बार देश के लिए अपनी समस्याएं भूलनी पड़ती हैं। 
 
वहीं छाता के रहने वाले एक ग्रामीण ने कहा कि हेमा मालिनी कभी हमारे गांव नहीं आईं। हमने 2014 के बाद उन्हें नहीं देखा। हम उनके लिए वोट क्यों दें? इस बार स्थानीय व्यक्ति को वोट देंगे, जो हमारे लिए खड़ा तो होगा। 
 
दोनों उम्मीदवारों के लिए आंतरिक गुटबाजी भी बड़ा मसला है। स्थानीय भाजपा नेता जहां हेमा से नाखुश बताए जा रहे हैं। उन्हें दूसरी सीट देने की भी पहले चर्चा रही, वहीं कुंवर नरेंद्रसिंह के भाई और तीन बार सांसद रहे कुंवर मानवेंद्रसिंह चुनाव से ठीक पहले भाजपा में शामिल हो गए। 
 
हिंदुओं के तीर्थ मथुरा में 17 लाख 99 हजार 321 मतदाता हैं, जिनमें 9 लाख 75 हजार 843 पुरुष और 8 लाख 23 हजार 276 महिलाएं हैं। इसमें पांच विधानसभा क्षेत्र छाता, मांट, गोवर्धन, मथुरा और बलदेव आते हैं। इसे भाजपा का गढ़ नहीं कहा जा सकता। 1991 से 2004 तक भले ही यहां से भाजपा जीती हो, लेकिन 2004 में कांग्रेस से मानवेंद्र और 2009 में रालोद के जयंत विजयी रहे थे। 
 
हेमा को यकीन है कि केंद्र में मोदी सरकार के काम और मथुरा में विकास की उनकी परियोजनाओं के दम पर उन्हें वोट मिलेंगे। उन्होंने कहा कि मैंने यहां काफी काम किया है और बहुत कुछ करना है। इसके लिए पांच साल और चाहिए। मैं बृज की विरासत को आधुनिकीकरण के साथ पुनर्जीवित करना चाहती हूं। इसीलिए चुनाव लड़ रही हूं। 
 
उन्होंने कहा कि लोगों को मोदी जी पर भरोसा है और वे उनके लिए और मेरे काम के लिए वोट भाजपा को डालेंगे। दूसरी ओर हेमा पर अपने संसदीय क्षेत्र की अवहेलना का आरोप लगाते हुए कुंवर नरेंद्रसिंह ने कहा कि मुंबई में बैठकर मथुरा की राजनीति नहीं हो सकती। 
 
उन्होंने कहा कि बृजवासी हूं और मुझे यहां लोगों की समस्याएं पता है। पिछली बार वह मोदी लहर में जीत गई थीं लेकिन मथुरा के लिए उन्होंने कुछ नहीं किया। यहां विकास गायब है। फिरकापरस्त ताकतों के मुकाबले में धर्मनिरपेक्ष ही जीतेंगे।
 
नरेंद्रसिंह ने कहा कि पूछिए उनसे कि यमुना की सफाई के लिए क्या किया? छाता शक्कर मिल कब शुरू होगी? बेरोजगारी, वृंदावन में बंदरों से परेशानी, ये सब बड़े मसले हैं लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया। योगी सरकार में विकास हुआ है तो सिर्फ पूर्वी उत्तर प्रदेश में। (वार्ता) 
 

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