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ढाई दशक से भाजपा का 'अटल' दुर्ग है लखनऊ

हमें फॉलो करें ढाई दशक से भाजपा का 'अटल' दुर्ग है लखनऊ
, बुधवार, 3 अप्रैल 2019 (14:15 IST)
देश की राजनीति की दिशा और दशा तय करने वाले राज्य उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ पिछले ढाई दशकों से भाजपा के कब्जे में है तथा उसका तिलिस्म तोड़ने के लिए कांग्रेस समेत अन्य दलों को यहां खासा पसीना बहाना पड़ेगा। 1991 में अटलजी की जीत के बाद से लखनऊ भाजपा का मजबूत किला बना हुआ। पिछले चुनाव में ढाई लाख से ज्यादा मतों से जीते राजनाथसिंह एक बार फिर भाजपा उम्मीदवार के रूप में मैदान में हैं। 
 
साफ-सुथरी और मिलनसार छवि वाले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने नब्बे के दशक में कांग्रेस के एकाधिकार को तोड़ते हुए यहां भाजपा की जीत का परचम लहराया था, जिसके बाद यहां कोई भी दल भाजपा की चुनौती से पार नहीं पा सका है। अटलजी 10वीं लोकसभा के लिए 1991 में पहली बार इस सीट से चुने गए। पिछले सात लोकसभा चुनाव से भाजपा लगातार जीत दर्ज कर रही है। वाजपेयी यहां से पांच बार सांसद चुने गए, जिसके बाद 2009 में उनकी राजनीतिक विरासत संभालने चुनाव मैदान में उतरे भाजपा के कद्दावर नेता लालजी टंडन को नवाब नगरी ने सिर-माथे पर लिया।
 
पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष राजनाथसिंह ने लखनऊ संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस की रीता बहुगुणा जोशी को करारी शिकस्त दी। सिंह को 5 लाख 61 हजार 106 वोट मिले जबकि कांग्रेस प्रत्याशी को 2 लाख 88 हजार 357 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा। बसपा के निखिल दूबे को  64 हजार 449 वोट और सपा के अभिषेक मिश्रा को 56 हजार 771  वोट मिले थे।
 
गोमती तट पर बसे लखनऊ के बारे में मान्यता है कि इसे मर्यादा पुरुषोत्तम राम के छोटे भाई लक्ष्मण ने बसाया था तो कुछ लोग इसे लखन पासी के शहर के तौर पर भी जानते हैं। दशहरी आम और चिकन की कढ़ाई और गलावटी कबाब के लिए मशहूर लखनऊ में 21 फीसदी आबादी मुस्लिम है, जबकि अनुसूचित जाति 9.61 फीसदी और अनुसूचित जनजाति की आबादी 0.02 फीसदी है। इसके अलावा इस सीट पर ब्राह्मण और वैश्य मतदाता निर्णयक भूमिका में है।
  
दिलचस्प बात यह है कि समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी  इस हाईप्रोफाइल सीट पर अब तक खाता नहीं खोल पाई है। आजादी के बाद जीत की हैट्रिक जमाने वाली कांग्रेस को यहां पहली बार 1967 में एक निर्दलीय प्रत्याशी ने झटका दिया था। उस चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार आनंद नारायण ने जीत का परचम लहराया था।
 
लखनऊ संसदीय सीट पर अब तक हुए 16 लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा सात बार भाजपा को जीत हासिल हुई जबकि कांग्रेस ने छह बार विजय पताका लहराई। इसके अलावा जनता दल, भारतीय लोकदल और निर्दलीय ने एक-एक बार जीत दर्ज की है। लखनऊ सीट पर पहली बार 1952 में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की शिवराजवती नेहरू ने जीत हासिल की। इसके बाद कांग्रेस ने लगातार दो बार जीत हासिल की।
 
आपातकाल के बाद 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में हेमवती नंदन बहुगुणा भारतीय लोकदल से जीतकर संसद पहुंचे। हालांकि 1980 में कांग्रेस ने एक बार फिर शीला कौल को यहां से चुनावी मैदान में उतारकर वापसी की। वह 1984 में चुनाव जीतकर तीसरी बार सांसद बनने में कामयाब रहीं। जनता दल के मानधातासिंह ने 1989 में कांग्रेस की हाथों से यह सीट क्या छीनी कि दोबारा कांग्रेस यहां से वापसी नहीं कर सकी।
 
लखनऊ की आबादी 23 लाख 95 हजार 147 है। इसमें 100 फीसदी शहरी आबादी है जिसमें 19 लाख से अधिक लोगों को वोट देने का अधिकार हासिल है। लखनऊ लोकसभा सीट के तहत पांच विधानसभा सीटें अभी भाजपा के कब्जे में हैं जिनमें लखनऊ पश्चिम, लखनऊ उत्तर, लखनऊ पूर्व, लखनऊ मध्य और लखनऊ कैंट विधानसभा सीट शामिल हैं।
 
पिछले लोकसभा चुनाव में यहां मतदान प्रतिशत 53.02 था। औसत मतदान के बावजूद यहां भाजपा के प्रत्याशी और मौजूदा गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कांग्रेस उम्मीदवार रीता बहुगुणा जोशी को दो लाख 72 हजार 749 वोटों से मात दी थी। हालांकि श्रीमती जोशी बाद में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गई थीं। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर लखनऊ कैंट से वह दोबारा निर्वाचित हुईं और योगी मंत्रिमंडल में उन्हें महत्वपूर्ण स्थान दिया गया। श्रीमती जोशी इस लोकसभा चुनाव में इलाहाबाद से भाजपा उम्मीदवार हैं। (वार्ता)
 

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