Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

भारत-चीन सीमा पर क्यों बार-बार हो रही है झड़प

हमें फॉलो करें भारत-चीन सीमा पर क्यों बार-बार हो रही है झड़प
, गुरुवार, 21 मई 2020 (11:22 IST)
रिपोर्ट : चारु कार्तिकेय
 
हाल के ही कुछ हफ्तों में भारत और चीन के सैनिकों के बीच झड़प के कम से कम 4 प्रकरण हो चुके हैं। क्या ये सामान्य घटनाएं हैं या ये किसी और बात की तरफ इशारा करती हैं?
 
आखिर इन दिनों लद्दाख और सिक्किम में भारतीय और चीनी सेना के सिपाहियों के बीच इतना तनाव क्यों है? हाल के ही कुछ हफ्तों में दोनों पक्षों के बीच झड़प के कम से कम 4 प्रकरण हो चुके हैं जिनमें 5 मई को लद्दाख और 9 मई को सिक्किम में दोनों तरफ के सिपाहियों के बीच हाथापाई तक हो गई थी। अब बताया जा रहा है कि लद्दाख के पांगोंग सो तालाब में चीनी सेना ने गश्ती नावों की संख्या बढ़ा दी है।
उत्तरी सिक्किम के नाकु ला और पूर्वी लद्दाख के पांगोंग सो तालाब इलाके में दोनों सेनाओं के बीच हाथापाई और पत्थरबाजी हुई थी और दोनों तरफ के वरिष्ठ अधिकारियों के हस्तक्षेप करने के बाद मामला शांत हुआ था। मीडिया में आईं कुछ खबरों में सेना का बयान आया था कि दोनों प्रकरण स्थानीय थे और इनका न तो आपस में कोई संबंध था और न किसी और स्थानीय या वैश्विक घटना से। लेकिन यह बात सही है कि इस तरह के प्रकरण आए दिन होते रहते हैं, क्योंकि दोनों देशों के बीच की सीमा विवादित है।
webdunia
क्या है एलएसी?
 
भारत और चीन के बीच की सीमा रेखा को लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल कहा जाता है। माना जाता है कि दोनों देशों की सीमा 4,000 किलोमीटर से भी ज्यादा लंबी है और कम से कम भारत के 5 उत्तरी और पूर्वोत्तरी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से होकर गुजरती है- लद्दाख, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश। एलएसी को 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद दोनों देशों ने एक समझौते के तहत माना था लेकिन उसकी असल परिभाषा को लेकर दोनों देशों के बीच आज भी विवाद है। 
एलएसी को लेकर दोनों देशों की अपनी-अपनी समझ है और इस वजह से दोनों के बीच टकराव होते रहते हैं। लद्दाख एलएसी करीब 134 किलोमीटर पांगोंग सो झील के बीच से गुजरती है और भारतीय सेना झील में करीब 45 किलोमीटर के इलाके पर पहरा देती है। भारतीय सेना का कहना है कि चीनी सिपाही हर साल सैकड़ों बार एलएसी का उल्लंघन कर भारत की सीमा में घुस आते हैं। कई बार स्थिति गंभीर भी हो जाती है।
 
2013 में लद्दाख की देपसांग घाटी में दोनों देशों के सैनिक 3 हफ्तों तक आमने-सामने तने रहे थे। बाद में वरिष्ठ अधिकारियों के हस्तक्षेप पर सेनाएं पीछे हटी थीं। 2017 में इसी तरह का एक प्रकरण सिक्किम से सटे डोकलाम में हुआ था, जो भारत, चीन और भूटान के बीच एक तरह का ट्राई-जंक्शन है। यहां 3 महीनों तक दोनों देशों की सेनाएं एक-दूसरे के सामने तनी रही थीं।
webdunia
क्यों हो रहे हैं ये प्रकरण?
 
तो सवाल ये उठता है कि जहां सीमा को लेकर झड़पों और छिटपुट वारदात का इतना लंबा और गंभीर इतिहास है, ऐसे में पिछले कुछ सप्ताह में होने वाले प्रकरणों को कैसे देखा जाना चाहिए? क्या इन्हें सामान्य घटनाएं कहा जाए या ये किसी और चीज की तरफ इशारा करती हैं? कई जानकारों का मानना है कि इस अवधि में हर साल सीमा पर कुछ न कुछ होता ही है। ऐसा शायद इसलिए होता हो, क्योंकि बर्फ पिघलने की वजह से दोनों सेनाएं अपनी-अपनी तरफ से सीमा तक गश्त लगाने के लिए ज्यादा बार पहुंचती हैं।
 
वरिष्ठ पत्रकार नीलोवा रॉयचौधरी कहती हैं कि उनकी राय में ये हर साल होने वाली झड़पों जैसा ही है और इनमें कुछ नया नहीं है। उनका मानना है कि ये प्रकरण 2013 और 2017 में हुईं घटनाओं जैसे बिलकुल भी नहीं हैं और जब तक दोनों देशों के बीच सीमा विवाद का अंत नहीं हो जाता, ये होते रहेंगे। लेकिन कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि इन झड़पों के पीछे कोई और ट्रिगर हो, इसकी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता, जैसे विश्व स्वास्थ्य संगठन के असेंबली में ताईवान की भागीदारी।
 
पूर्व विदेश सचिव शशांक ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा कि वैसे तो इस मामले की ज्यादा चर्चा मीडिया में ही है लेकिन फिर भी यह तथ्य अपनी जगह है कि भारत अब विश्व स्वास्थ्य संगठन के कार्यकारी बोर्ड का अध्यक्ष है और ताईवान को ऑब्जर्वर से सदस्य का दर्जा देने और कोरोना वायरस के स्रोत की तलाश के लिए शुरू की गई जांच- दोनों में भारत की अहम् भूमिका रहेगी। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि ये मामला पूरी तरह से समझ में नहीं भी आता है, क्योंकि भारत, चीन को ये लगातार समझाने की कोशिश कर रहा है कि दोनों देशों के कई क्षेत्रों में साझा हित हैं।
सीमा तक सड़कें
 
सीमा पर एक और चिंता का विषय है। चीन की तरफ सीमा के काफी पास तक सड़कें और अच्छी व्यवस्था है जिनसे चीनी सिपाही सीमा तक आसानी से पहुंच सकते हैं। नीलोवा रॉयचौधरी बताती हैं कि भारत ने दशकों तक सीमा तक जाने वाली सड़कें, पुल इत्यादि नहीं बनाए थे, इस डर से कि कहीं उनकी वजह से चीनी सैनिकों का भारत में और अंदर तक घुस आना आसान न हो जाए। इस डर को भारत ने हाल ही में खत्म किया है और अब सीमा के इस तरफ भी सड़कें, पुल इत्यादि बनाए जा रहे हैं और कुछ जानकार ये आशंका व्यक्त करते हैं कि संभव है कि यह बात चीन को अखर रही हो।
 
शशांक कहते हैं कि संभव है कि चीन इन झड़पों के जरिए इस निर्माण प्रक्रिया में रुकावटें खड़ी करने की कोशिश कर रहा हो, लेकिन ये सड़कें भारत के लिए बहुत जरूरी हैं और इन पर काम आगे बढ़ना चाहिए। हाथापाई वाली घटना को छोड़कर इस साल अभी तक कोई और बड़ी घटना नहीं हुई है। लेकिन जब तक दोनों देशों के सीमा विवाद का समाधान नहीं हो जाता तब तक इन झड़पों के चलते रहने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
 
नीलोवा रायचौधरी कहती हैं कि दोनों देशों के बीच विशेष प्रतिनिधियों के बीच सीमा-विवाद पर जो बातचीत चल रही थी, वो पिछले 2 सालों से बंद पड़ी है और अब तो वो तभी शुरू हो सकती हैं, जब उन्हें कोई राजनीतिक धक्का मिले।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

कोरोना वायरस : जब महामारी और अम्फान चक्रवात एक साथ आ जाए