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धरती के बढ़ते तापमान को रोकने में बाधक बन रहीं तेल कंपनियां!

हमें फॉलो करें धरती के बढ़ते तापमान को रोकने में बाधक बन रहीं तेल कंपनियां!

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, शनिवार, 15 अप्रैल 2023 (09:23 IST)
-अजीत निरंजन
 
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के प्रमुख फातिह बिरोल ने डीडब्ल्यू को बताया कि अगर दुनिया अपने जलवायु लक्ष्यों के प्रति गंभीर है तो मौजूदा तेल क्षेत्र, गैस के कुएं और कोयले की खदानें 'पर्याप्त से अधिक' हैं। ज्यादातर अमीर देशों के ऊर्जा मंत्रियों के नेतृत्व वाली पेरिस स्थित अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) के प्रमुख ने चेतावनी दी है कि जीवाश्म ईंधन का उत्पादन बढ़ाने वाली कंपनियां धरती के तापमान को रोकने के लक्ष्यों को हासिल करने में बाधक बन रही हैं।
 
आईईए के कार्यकारी निदेशक फातिह बिरोल ने डीडब्ल्यू को बताया कि अगर वे अपनी रणनीतियों के तहत तेल, गैस या कोयले के उत्पादन में बेतहाशा वृद्धि जारी रखती हैं और दूसरी तरफ यह भी कहती हैं कि कंपनी की रणनीति 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य के मुताबिक है तो यह एक समस्या है।
 
आईईए एक वैश्विक प्राधिकरण है, जो ऊर्जा से जुड़ा डेटा इकट्ठा करता है और उसका विश्लेषण करता है। यह इस मसले पर पूरी दुनिया की सरकारों और कंपनियों की बातें सुनता है और उनका निष्कर्ष निकालता है। औद्योगिक देशों के ओईसीडी समूह ने 1973 में तेल संकट के बाद सुरक्षित ऊर्जा आपूर्ति में मदद के लिए इस एजेंसी की स्थापना की थी।
 
हालांकि हाल के वर्षों में इस एजेंसी के काम का दायरा बढ़ गया है। यह एजेंसी सदस्य देशों को जलवायु परिवर्तन रोकने में मदद करने के लिए भी काम करती है। विश्व के नेताओं ने सदी के अंत तक ग्लोबल वॉर्मिंग को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रखने का लक्ष्य निर्धारित किया है, लेकिन मौजूदा नीतियों से यह लक्ष्य हासिल होता नहीं दिख रहा है।
 
कुछ जीवाश्म ईंधन कंपनियां अपने उत्पादन को बढ़ाने की योजना बना रही हैं। इसे देखते हुए ऐसा लगता है कि ग्लोबल वॉर्मिंग तय सीमा से दोगुनी बढ़ सकती है। बिरोल ने कहा कि हमें तेल, गैस और कोयले की खपत कम करनी है। अगर हमारा लक्ष्य ऐसा करने का है और अगर हम ऐसा कर सकते हैं तो मौजूदा तेल व गैस क्षेत्र और कोयला खदानें हमारी मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त से भी ज्यादा हैं।
 
कोई नया तेल या गैस क्षेत्र नहीं
 
आईईए की फ्लैगशिप वर्ल्ड एनर्जी आउटलुक रिपोर्ट 1998 से हर साल प्रकाशित होती आ रही है। इस रिपोर्ट में बताया जाता है कि अगर नीतियां एक जैसी रहती हैं तो दुनियाभर में ऊर्जा आपूर्ति और मांग कैसे बदलेगी? 2021 में रिपोर्ट में एक नया परिदृश्य जोड़ा गया है। जलवायु परिवर्तन को लेकर सरकारों और निवेशकों की गंभीरता को देखते हुए आईईए ने एक रोडमैप जारी किया कि किस तरह वैश्विक अर्थव्यवस्था 2050 तक नेट-जीरो कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल कर सकती है।
 
इस मॉडल में सुझाव दिया गया है कि इस लक्ष्य को हासिल करने पर सदी के अंत तक धरती के तापमान में वृद्धि पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सिमट जाएगी। बिरोल ने कहा कि यह मॉडल अब 'ऊर्जा की दुनिया, आर्थिक दुनिया और कई सरकारों के लिए बाइबिल' के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है।
 
इसके तहत अब नई जगहों पर जमीन से ईंधन निकालने, ड्रिल करने या खोदने के लिए निवेश को बंद करना होगा। 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को हासिल करने के लिए कोई नया गैस और तेल क्षेत्र की अनुमति नहीं देनी होगी। इसके अलावा नई कोयला खदान या मौजूदा कोयला खदान के विस्तार की अनुमति नहीं देनी होगी।
 
आईईए की एक और हालिया रिपोर्ट में यह बात दोहराई गई है। हालांकि नई रिपोर्ट में कहा गया है कि इस दशक के अंत तक नए तेल क्षेत्रों के लिए हर साल 18 अरब डॉलर का निवेश किया जा सकता है। आईईए के एक प्रवक्ता ने डीडब्ल्यू को बताया कि ये ऐसे क्षेत्र हैं जिन्हें पहले ही मंजूरी मिल चुकी है और ये उत्पादन के लिए तैयार हैं इसलिए अगले कुछ वर्षों तक इनमें निवेश की जरूरत है।
 
सस्टेनेबिलिटी थिंक टैंक इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट द्वारा किए गए विश्लेषण में एक कदम आगे की बात कही गई है। इसमें यह निष्कर्ष निकाला गया है कि नए तेल और गैस क्षेत्रों को विकसित करना 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को हासिल करने के हिसाब से 'सही नहीं' है।
 
आईईए की हालिया रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि नेट-जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य भी तभी हासिल हो सकता है जब 2050 तक कोयले, तेल और गैस की मांग में क्रमश: 90, 80 और 70 फीसदी की कमी हो। साथ ही, रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु कार्यकर्ताओं और निवेशकों को ऊर्जा कंपनियों पर दबाव बनाना होगा कि वे अपने कारोबार में कार्बन का उत्सर्जन कम करें।
 
बिरोल ने कहा कि अगर कोई तेल कंपनी यह कहती है कि वह उत्पादन बढ़ाएगी तो मैं उससे सहमत नहीं हूं। यह उसकी पसंद है। हालांकि अगर कंपनी कहती है कि वह अपना तेल उत्पादन 3 मिलियन बैरल प्रतिदिन बढ़ाने जा रही है और उसकी रणनीति पेरिस समझौते के मुताबिक है तो यह सही नहीं है। यह पूरी तरह विरोधाभास है।
 
नवीकरणीय ऊर्जा की क्रांति को पहचानने में विफल रहा है आईईए
 
जीवाश्म ईंधन पर अपनी मजबूत पकड़ के बावजूद आईईए स्वच्छ ऊर्जा के विकास को समझने में उतना कामयाब नहीं रहा है। वैज्ञानिकों और ऊर्जा विश्लेषकों ने आईईए की आलोचना की है कि वह इस बात का आकलन करने में पूरी तरह सफल नहीं रहा है कि सौर ऊर्जा और हवा से कितनी बिजली बनाई जा सकती है।
 
इसकी रिपोर्ट में अक्षय ऊर्जा के बुनियादी ढांचे के विकास में काफी कम वृद्धि का अनुमान लगाया गया है जबकि कई देशों ने इसके अनुमान की तुलना में नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में काफी ज्यादा वृद्धि दर्ज की है। इसका नतीजा यह हो सकता है कि नीति निर्माताओं ने टेक्नोलॉजी को उतनी गंभीरता से न लिया हो।
 
इसकी प्रतिक्रिया में बिरोल ने कहा कि यह सामान्य बात है कि अगर आप ऊर्जा से जुड़े सबसे महत्वपूर्ण संगठन हैं तो कई पक्ष आपकी आलोचना कर सकते हैं। हालांकि हमें जो आलोचना मिल रही है, वह यह है कि हम स्वच्छ ऊर्जा को इतनी मजबूती से आगे बढ़ा रहे हैं कि जीवाश्म ईंधन के महत्व को कम कर रहे हैं।
 
आईईए के अनुमान सटीक न होने का एक कारण यह है कि नवीकरणीय ऊर्जा का समर्थन करने वाली नीतियों में तेजी से बदलाव आया है जिससे आईईए के अनुमान पुराने हो गए हैं। हालांकि विशेषज्ञों ने यह भी कहा है कि एजेंसी गलतियों से सीखने और मॉडलों को अपडेट करने में धीमी रही है।
 
स्वच्छ ऊर्जा अनुसंधान फर्म ब्लूमबर्गएनईएफ के एक सौर विश्लेषक जेनी चेस ने कहा कि पुराने डेटा से नवीकरणीय ऊर्जा के विकास की रूपरेखा पेश करना कठिन है, लेकिन आईईए अतीत को भविष्य में पेश कर रहा है। दूसरे शब्दों में कहें तो पुराने डेटा से ही भविष्य की रूपरेखा पेश कर रहा है। आईईए बार-बार यह समझने में विफल रहा है कि एक क्रांति हो रही है, लेकिन उन्होंने आखिरकार यह बात समझ ही ली।
 
आयरलैंड में यूनिवर्सिटी कॉलेज कॉर्क के ऊर्जा मॉडलर एंड्रयू स्मिथ ने कहा कि कुछ समस्याओं को ठीक नहीं किया गया है। आईईए मॉडल में नवीकरणीय ऊर्जा को बिजली ग्रिड में ले जाने की लागत वास्तविकता की तुलना में कहीं अधिक है। यह व्यवस्थागत समस्या है जिसके बारे में कई साल पहले बताया गया था और यह अभी भी हो रहा है।
 
जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल में कमी करनी होगी
 
जैसे-जैसे धरती का तापमान बढ़ रहा है, जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल में कटौती की मांग तेज होती जा रही है। जलवायु परिवर्तन और प्रदूषित हवा से होने वाले नुकसान से चिंतित विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने जीवाश्म ईंधन की खोज और उत्पादन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिए कानून बनाने का आह्वान किया है। वर्ष 2021 में डब्ल्यूएचओ ने कहा कि जलवायु परिवर्तन मानवता के सामने 'सबसे बड़ा स्वास्थ्य खतरा' है।
 
मार्च में इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज ने विज्ञान के क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों की समीक्षा वाली अपनी ऐतिहासिक रिपोर्ट प्रकाशित की। इसमें यह निष्कर्ष निकाला गया कि अगले 12 वर्षों में कार्बन प्रदूषण को हर हाल में दो-तिहाई तक कम करने पर ही ग्लोबल वॉर्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रखने के लक्ष्य को हासिल करने की आधी संभावना होगी। साथ ही 2040 तक कार्बन प्रदूषण 2019 की तुलना में 80 फीसदी कम हो जाना चाहिए।
 
यह रिपोर्ट जारी होने के कुछ हफ्तों बाद कई जीवाश्म ईंधन कंपनियों ने प्रदूषण रोकने की अपनी योजनाओं को धीमा कर दिया। बीपी ने जीवाश्म ईंधन के उत्पादन से उत्सर्जन में कटौती के अपने लक्ष्यों को कम कर दिया। एक्सॉन मोबिल ने जैव ईंधन के रूप में शैवाल का उपयोग करने की योजना को खत्म कर दिया। शेल के सीईओ वाएल सवान ने मार्च में एक साक्षात्कार में 'द वॉल स्ट्रीट जर्नल' को बताया कि उनकी कंपनी यह विचार कर रही है कि कच्चे तेल के उत्पादन में कटौती के अपने लक्ष्यों में बदलाव करना है या नहीं?
 
बिरोल ने कहा कि यह बहुत ही आसान है। अगर हमें 1.5 डिग्री के लक्ष्य को हासिल करना है तो आपको उतना तेल, गैस और कोयले का इस्तेमाल नहीं करना होगा जितना आप आज कर रहे हैं। यह बात पूरी तरह स्पष्ट है। इसमें किसी तरह का संशय नहीं है।

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