Girl Child poem : मम्मी मैं भी बड़ी हो गई।
घिसट रही थी घुटनों के बल,
लेकिन अब मैं खड़ी हो गई।
मम्मी मैं भी बड़ी हो गई।
सरक-सरक कर इस कोने से,
उस कोने पहुंची कई बार।
पता नहीं कमरे का चक्कर,
लगा आई मैं कितने बार।
छूट गया घुटनों का बंधन,
खुली हुई हथकड़ी हो गई।
पकड़-पकड़ दीवार परिक्रमा,
कमरे की कर डाली है।
खूब कैमरे चमके मेरी,
फोटो गई निकाली है।
खुशियों की इस दीवाली में,
जैसे मैं फुलझड़ी हो गई।
मुझे देखकर हंसते थे सब,
बजा-बजा कर ताली थे खुश
चलते-चलते फिसल गई तो,
सभी हो गए बिलकुल चुप।
पता नहीं ऊधम-मस्ती में,
कैसे यह गड़बड़ी हो गई।
लेकिन शायद मम्मी बोलीं,
उठना गिरना जीवन का क्रम।
उठने गिरने से ही आती,
बच्चों के निर्बल तन में दम|
अब तो गिरकर लगी संभलने,
मैं खुद की ही छड़ी हो गई।
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