अब कब तक छींकोगे चाचू,
करो छींकना बंद।
सुबह-सुबह से छींक रहे हो,
गिनती हुई पचास।
लगता है इन छींकों में तो,
छुपी बात कुछ ख़ास।
इन छींकों में चाचू क्या कुछ,
मिलता है आनंद।
अगर नहीं ऑफिस जाना तो,
साफ-साफ बोलो।
खाना है गरम-गरम मुंगोड़ी,
सच के पट खोलो।
मन की कविता पढ़ों ठीक से,
नहीं बिगाड़ो छंद।
गोल-गोल बातें करना यह,
आदत ठीक नहीं।
क्या इच्छा है आज आपकी,
कुछ तो कहो सही।
हंसकर कह दो अब तो चाचू,
क्या है तुम्हें पसंद।
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