इस्लाम धर्म में यौमे आशुरा पर्व सौहार्द का संदेश दे देता है। मोहर्रम माह की दसवीं तारीख जिसे यौमे आशुरा कहा जाता है, यह इमाम हुसैन की (रअ) शहादत का दिवस है। यौमे आशूरा सभी मुसलमानों के लिए बेहद अहम् दिन माना गया है। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार आशूरा या मोहर्रम के दसवें दिन पैगंबर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन की शहादत हुई थी। इमाम हुसैन के साथ उनके कई अनुयायी कर्बला के मैदान में शहीद हुए थे। इस्लामी कैलेंडर के अनुसार मोहर्रम साल का पहला महीना है।
इमाम हुसैन इस्लाम धर्म के प्रवर्तक और पैगम्बर हजरत मोहम्मद (सल्लाहलाहु अलैहि व सल्लम) के नवासे थे। हजरत अली (रअ) अरबिस्तान (मक्का-मदीना वाला भू-भाग) के खलीफा यानी मुसलमानों के धार्मिक-सामाजिक राजनीतिक मुखिया थे। उन्हें यह अधिकार उस दौर की अवाम ने दिया था। अर्थात हजरत अली को लोगों ने जनतांत्रिक तरीके से अपना मुखिया बनाया था।
हजरत अली के स्वर्गवास के बाद लोगों की राय इमाम हुसैन को खलीफा बनाने की थी, लेकिन अली के बाद हजरते अमीर मुआविया ने खिलाफत पर कब्जा किया। मुआविया के बाद उसके बेटे यजीद ने साजिश रचकर दहशत फैलाकर और बिकाऊ किस्म के लोगों को लालच देकर खिलाफत हथिया ली। यजीद दरअसल शातिर शख्स था जिसके दिमाग में प्रपंच और दिल में जहर भरा हुआ था। चूंकि यजीद जबर्दस्ती खलीफा बन बैठा था, इसलिए उसे हमेशा इमाम हुसैन से डर लगा रहता था। कुटिल और क्रूर तो यजीद पहले से ही था, सत्ता का नेतृत्व हथियाकर वह ओर खूंखार और अत्याचारी भी हो गया।
यजीद दुर्दांत शासक साबित हुआ। अन्याय की आंधी और तबाही के तूफान उठाकर यजीद लोगों को सताता था। यजीद जानता था कि खिलाफत पर इमाम हुसैन का हक है क्योंकि लोगों ने ही इमाम हुसैन के पक्ष में राय दी थी। यजीद के आतंक की वजह से लोग चुप थे। इमाम हुसैन चूंकि इंसाफ के पैरोकार और इंसानियत के तरफदार थे, इसलिए उन्होंने यजीद की बैअत नहीं की। इमाम हुसैन ने हक और इंसाफ के लिए इंसानियत का परचम उठाकर यजीद से जंग करते हुए शहीद होना बेहतर समझा लेकिन यजीद जैसे बेईमान और भ्रष्ट शासक और बैअत करना मुनासिब नहीं समझा।
यजीद के सिपाहियों ने इमाम हुसैन को चारों तरफ से घेर लिया था, नहर का पानी भी बंद कर दिया गया था, ताकि इमाम हुसैन और उनके साथी यहां तक कि महिलाएं और बच्चे भी अपनी प्यास नहीं बुझा सकें। तब प्यास को बर्दाश्त करते हुए इमाम हुसैन बड़ी बहादुरी से ईमान और इंसाफ के लिए यजीद की सेना से जंग लड़ते रहे।
यजीद ने शिमर और खोली का साथ साजिश का सहारा लेकर प्यासे इमाम हुसैन को शहीद कर दिया। इमाम हुसैन की शहादत दरअसल दिलेरी की दास्तान है, जिसमें इंसानियत की इबारत और ईमान के हरूफ (अक्षर) हैं। यौमे आशुरा के दिन सभी मस्जिदों में जुमे की नमाज के खुत्बे में इस दिन की फजीलत और हजरते इमाम हुसैन की शहादत पर विशेष तकरीरें होती हैं। यौमे आशूरा यानी मोहर्रम माह की वह दस तारीख, जिस इस दिन को पूरे विश्व में बहुत अहमियत, अज्मत और फजीलत वाला दिन माना जाता है।