मोहर्रम मास 2021: जानिए क्यों खास माना गया है यह त्योहार
इस वर्ष मोहर्रम (मुहर्रम) मास का प्रारंभ 9 अगस्त 2021 से हो सकता है। साल 2021 के अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार चांद के दिखने पर नए इस्लामी साल की शुरुआत होगी। यह इस्लामी साल 1443 हिजरी होगा। यह माह 'गम का महीना' भी कहलाता है। मुस्लिम धर्म समुदाय के लोगों के लिए मोहर्रम एक प्रमुख महीना माना गया है। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार, हिजरी संवत् का प्रथम मास 'मोहर्रम' होता है। इस माह में पैगंबर मुहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन एवं उनके साथियों की शहादत हुई थी। इसे सब्र और इबादत का महीना भी कहते हैं।
मोहर्रम मास इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना होता है। जब पैगंबर मुहम्मद और उनके साथी मक्का से मदीना जा बसे, तब मदीना पहुंचने पर पहली बार मुस्लिम समुदाय की स्थापना की गई थी। ये एक घटना थी जिसे हिजरी यानी प्रवास के रूप में मनाया जाता है। इस तरह, नए साल का पहला दिन अलहिजरी के तौर पर जाना जाता है। मुस्लिम धर्मसमुदाय रमजान के बाद उसे मोहर्रम मास को दूसरा पवित्र महीना मानते हैं। यह माह साल के 4 पवित्र महीनों में से ये एक है, जब लड़ाई मना हो जाती है।
दरअसल मोहर्रम शहादत और कुर्बानी को याद करने का दिन है। यह इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना और इस्लाम धर्म के नए साल की शुरुआत का महीना भी है। लेकिन मुस्लिम समुदाय इस महीने की एक से 10वें मोहर्रम तक हजरत इमाम हुसैन की याद में मातम मनाते हैं, मान्यता के अनुसार इस महीने की 10 तारीख को इमाम हुसैन की शहादत हुई थी, अत: इस दिन को रोज-ए-आशुरा कहते हैं। इसे आशुर यानी मातम का दिन कहा जाता है और इराक की राजधानी बगदाद के दक्षिण पश्चिम के कर्बला में इमाम हुसैन और इमाम अब्बास के तीर्थस्थल हैं। 10वें मोहर्रम पर रोजा रखने की भी परंपरा है।
यह मोहर्रम का सबसे अहम दिन माना गया है। इस दिन जुलूस निकालकर हुसैन की शहादत को याद किया जाता है, क्योंकि यह दिन पूरी दुनिया को भाईचारा, मानवता का संदेश देता हैं और जीवन में हर बुराई से बचने और अच्छाई को अपनाने का संदेश देता है। यह त्योहार 19 अगस्त 2021 को मनाया जाएगा।
मोहर्रम के दिन जब मातम मनाया जाता है तो शिया समुदाय के लोग कहते हैं कि 'या हुसैन, हम न हुए।' इसका एक विशेष महत्व है। मातम मनाने वाले लोग कहते हैं कि हजरत इमाम हुसैन हम बहुत दुखी हैं क्योंकि आपके साथ कर्बला की जंग में नहीं रहे। हम भी इस्लाम की रक्षा के लिए आपके साथ शहादत देते।
मोहर्रम में एक तरीके से 60 हिजरी में शहीद हुए लोगों को श्रद्धांजलि दी जाती है। मुस्लिम धर्म समुदाय के लोग मोहर्रम के 10 दिनों तक बांस, लकड़ी का इस्तेमाल कर तरह-तरह से इसे सजाते हैं और 11वें दिन इन्हें बाहर निकाला जाता है। मुस्लिम लोग इकट्ठे होकर इन्हें लेकर नगर भ्रमण करते हैं, इसके बाद इन्हें इमाम हुसैन की कब्र बनाकर दफनाया जाता है।
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