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हिन्दी कहानी : उतरता रंग

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संजय वर्मा 'दृष्ट‍ि'

एक अमीर महिला मोहल्ले में बड़ी-बड़ी डींगे हाकती रहती थी। उसके पास पैसा है। उसी मोहल्ले में गरीब व मध्यम परिवार के लोग भी रहते थे। किसी संस्था द्वारा महिला सभा आयोजित हुई। सभी महिलाओं को आमंत्रित किया गया। सभा शुरू होने से पहले अमीर महिला ने दिवाली के दिन महंगा बड़ा टीवी खरीदा और इसकी बात सभी महिलाओं को बताई। सभी उसकी बात को सुन रहे थे और बधाई और मिठाई खिलाने के लिए उनसे कह रहे थे। वो अमीरी का बखान करती ही जा रही थी। सब से कह रहे थी कि घर आकर महंगा टीवी देखना। साथ ही साथ यह भी बता रही थी कि मेरे अलावा किसी के पास इस तरह का महंगा और बड़ा टीवी मोहल्ले में नहीं है। 
 
सवाल यहां खरीददारी का नहीं था। अमीर महिला के अमीरी का घमंड कुछ ज्यादा ही रंग बता रहा था। इसी बीच में एक महिला ने गरीब महिला के बारे में बताया कि इनके पतिदेव का टीवी पर किसी बड़ी प्रतियोगता के लिए सिलेक्शन हुआ है, उसी का दीवाली के दिन प्रसारण होगा। साथ ही इस महिला के बच्चे का भी डांस प्रतियोगिता में सिलेक्शन हुआ है उसका भी प्रसारण उसी दिन होगा एवं पुनः प्रसारण दूसरे दिन भी होगा। 
 
सभी महिलाएं उस अमीर महिला के घर बड़ा और महंगा टीवी देखने के लिए गई। जैसे ही कार्यक्रम शुरू हु, उस समय गरीब महिला खुशी और उत्साह से मानो अमीर बन गई। सब महिलाएं तारीफ और बधाइयां देने लगी। जहां टीवी की तारीफ होना थी, वहां गरीब महिला, बच्चे की तारीफ होने लगी। अमीर महिला के चेहरे  पर अमीरी के घमंड का रंग देखते ही देखते उतरता चला गया। तब समझ में आया की पैसा ही सब कुछ नहीं होता। कला कौशल श्रम भी इस दुनिया में काफी दम रखते हैं।

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