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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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मार्मिक कविता : असहाय, बेबस ललनाएं

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डॉ. रामकृष्ण सिंगी

कन्या पूजन के इस देश में कितनी ललनाएं रुआंसी। 
कितने हो रहे मुजफ्फरपुर/देवरिया, किस किस को दोगे फांसी ।।1।। 
 
कितने संत/महंत दोगले, कभी शंका न हुई जिनकी नीयत पर। 
बनकर ग्रहण लगे जघन्य से, कितनी चन्द्र-धवल अस्मत पर ।।2।। 
 
कितने छद्म समाजसेवी, अफसर, नेता, मिलजुलकर षड़यंत्रकारी । 
असहाय, बेबस, अबोध ललनाएं अनगिन, हवस का जिनकी ग्रास बनी बेचारी ।। 3।। 
 
जलेंगी सहानुभूति की मोमबत्तियां अब, कुछ समय तो टिमटिमाएंगी। 
पर प्रभावशालियों के हथकण्डों के झोंको से, कुछ समय बाद बुझ जाएंगी ।।4।।
 

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