नेपाल और श्रीलंका में हिन्दू जाति का अस्तित्व संकट में...
खतरे में है हिन्दू धर्म का अस्तित्व? भाग-3
गतांग से आगे...
नेपाल में हिन्दू धर्म : जिस तरह से भारत के बंगाल और केरल में वामपंथ के वर्चस्व के चलते वहां हिन्दू धर्म खतरे में हो चला है उसी तरह अब नेपाल भी वामपंथ की गिरफ्त में आ चुका है। लंबे समय से जारी राजनीतिक संकट और ईसाई संस्थाओं द्वारा कथित धर्म परिवर्तन के आरोपों के बीच 2.50 करोड़ से ज्यादा की जनसंख्या वाले नेपाल को 2006 में धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित कर दिया गया था। नेपाल में 80 प्रतिशत से ज्यादा लोग हिन्दू हैं। राजनीतिक गतिरोध और धर्म परिवर्तन के आरोपों के कारण लोगों में निराशा है, ऐसे में वामपंथी वर्चस्व के चलते अब नेपाल में भी हिन्दू धर्म पर संकट के बादल गहरा गए हैं। कभी यहां 99 प्रतिशत हिन्दू होते थे। यहां के हिन्दू यह स्वीकार करने के कतराते हैं क्योंकि उनमें से अधिकतर अब वामपंथी या तथाकथित धर्मनिर्पेक्ष सोच से ग्रस्त हैं।
2012 की नेपाल में हुई जनगणना के अनुसार देश में ईसाइयों की जनसंख्या में 1 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इससे पहले 10 वर्ष पूर्व हुई जनगणना में ईसाइयों की संख्या नेपाल की कुल आबादी 26 मिलयन का 0.4 प्रतिशत थी, जो बढ़कर 1.4 हो गई। माओवादी समर्थित संचालित सरकार ने हाल में जनगणना की रिपोर्ट प्रस्तुत की उसमें हिन्दुओं का प्रतिशत कुल जनसंख्या का 81 प्रतिशत है जबकि मुसलमानों की संख्या 4.4 और बौद्धों की जनसंख्या 10.7 से घटकर 9 प्रतिशत रह गई।
वामपंथ के वर्चस्व के चलते सीमावर्ती राज्यों में पाकिस्तान, चीन और वैटिकन का दखल बढ़ गया है जिसके चलते यहां की हिन्दू जनसंख्या और माहौल में धीरे-धीरे बदलाव होते हुए स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। साम्यवादी विचारधारा वाले तथा ईसाई धर्मप्रसार के लिए प्रतिकूल माहौल मिलने के चलते भारत और चीन को दबाने के लिए ईसाई राष्ट्रों की दृष्टि से नेपाल एक महत्वपूर्ण देश है। छद्म रूप से यहां थारू व मधेशियों का तेजी से धर्मांतरण किए जाने की खबरें आती रहती हैं। इन क्षेत्रों में ईसाई और इस्लामिक संगठन पहले से ही नेपाल में प्रलोभन, भय का वातावरण कायम किए हुए हैं।
भारत की तरह ही नेपाल के दूरदराज के आदिवासी और अन्य वंचित तबके का तेजी से ईसाई और इस्लामिकरण किए जाने के पीछे अंतरराष्ट्रीय साजिश जारी है। नेपाली हिन्दू संगठन आरोप लगाते रहे हैं कि नेपाल में ईसाई आबादी तेजी से बढ़ रही है और वे नेपाली हिंदुओं को मुफ्त शिक्षा, नौकरियां देकर उनका धर्मांतरण कर रहे हैं। हालांकि धर्मान्तरण कर रही ईसाई संस्थाओं का कहना है कि ईसाई अब स्वतंत्रतापूर्वक अपने धर्म का प्रचार कर रहे हैं। हिंदू इसलिए धर्मांतरण कर रहे हैं क्योंकि उनमें से कई उत्पीड़ित और महंगे धार्मिक कृत्यों से दबा हुआ महसूस करते हैं। नेपाल के उत्तरी पहाड़ी इलाकों तथा दक्षिणी पठार के कुछ जिलों में अचानक लोग ईसाई बनने लगे हैं।
नेपाल का राजनीतिक सफर बहुत उथल पुथल वाला रहा है। हालांकि हिमालयीन देश होने के कारण यह देश मध्यकाल और अंग्रेज काल की क्रूर गतिविधियों से कुछ हद तक बचा रहा। हालांकि वर्तमान में संचार, यातायात और संपर्क के साधन बढ़ने से यहां धर्मान्तरण, अपराध, वामपंथ और आतंकवादियों के ठिकाने बनते जा रहे हैं।
श्रीलंका में हिन्दू :
भारत के दक्षिण में स्थित श्रीलंका में भी बड़ी संख्या में हिन्दू रहते थे। हालांकि अब यहां की जनसंख्या का करीब 12.5 प्रतिशत हिस्सा हिन्दुओं का है। एक डीएनए शोध के अनुसार श्रीलंका में रह रहे सिंहल जाति के लोगों का संबंध उत्तर भारतीय लोगों से है। हालांकि वर्तमान में अब वहां तमिल और सिंहल की समस्या नहीं रही। अंग्रेज भारत की तरह श्रीलंका में भी फूट डालकर गए थे।
श्रीलंका पर पहले पुर्तगालियों, फिर डच लोगों ने अधिकार कर शासन किया 1800 ईस्वी के प्रारंभ में अंग्रेजों ने इस पर आधिपत्य जमाना शुरू किया और 1818 में इसे अपने पूर्ण अधिकार में ले लिया। अंग्रेज काल में यहां जहां मिशनरियों को फलने-फूलने का मौका मिला वहीं, भारत, बांग्लादेश, म्यांमार, मालदीव आदि जगहों से यहां पर तमिल क्षेत्र में मुसलमानों की बसाहट शुरू हो गई और धीरे धीरे मस्जिदें, मदरसों की संख्या बढ़ती गई। आज तमिल क्षेत्र में हालात खराब हो चुके हैं।
अंग्रेज काल में अंग्रेजों ने 'फूट डालो राज करो' की नीति के तहत तमिल और सिंहलियों के बीच सांप्रदायिक एकता को बिगाड़ा गया। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद 4 फरवरी 1948 को श्रीलंका को पूर्ण स्वतंत्रता मिली। जब श्रीलंका आजाद हुआ तो सत्ता सिंहलियों के हाथ में देकर चले गए और तमिलों को हाशिए पर धकेल गए। लेकिन सिंहली यह नहीं जानते थे कि अंग्रेज और मुस्लिम सल्तनतें श्रीलंका को अशांत देखना चाहती थी। योजनाबद्ध तरीके से सिंहलियों के मन में हिंदू और मुसलमानों के प्रति नफरत क्यों भरी गई?
तमिल विद्रोह : बहुत काल तक खुद को अगल थलग किए जाने के कारण तमिलों में असंतोष फैलने लगा। मई 1976 में प्रभारण ने लिबरेशन टाइगर्स तमिल ईलम (लिट्टे) का गठन किया गया और तमिलों के लिए अलग राष्ट्र की मांग की जाने लगी। हजारों निर्दोष सिंहलियों, उच्च पदों पर आसीन श्रीलंकाई नेताओं और भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या का दोषी है लिट्टे।
ऐसा आरोप लगाया जाता रहा है कि श्रीलंकाई शासन और तमिल अलगाववादियों के बीच चली लंबी लड़ाई का फायदा मुस्लिम कट्टरपंथियों और ईसाईयों ने उठाया और उन्होंने इस बीच अपने पैर जमाना शुरू कर दिए। इससे श्रीलंका के तमिल और सिंहली क्षेत्र में सामाजिक अशांति बढ़ने लगी। बांग्लादेश और पाकिस्तान की ओर से जहां वहां के मुसलमानों को अप्रत्यक्ष समर्थन मिला, वहीं श्रीलंका के गरीब क्षेत्र में ईसाई मिशनरियों ने अपना अभियान जारी रखा।
सन 2009 में भारत के सहयोग से तमिल विद्रोहियों को पूरी तरह से नेस्तनाबूद कर दिया गया। 19 मई 2009 को प्रभाकरण को भी मार गिराया। लेकिन इस अभियान में हजारों निर्दोष तमिलों की हत्या कर दी गई।
श्रीलंकाई सेना द्वारा बर्बर तरीके से तमिलों की हत्या किए जाने के दौरान हजारों तमिल हिंदुओं ने भागकर भारत के तमिलनाडु में शरण ली, जो आज भी शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं। 2009 में श्रीलंकाई सेना की कार्रवाई के बाद वहां के लाखों तमिल बेघर हुए जो आज भी दरबदर हैं।
भारत ने दक्षिण एशियाई सहयोग संगठन (सार्क) का सदस्य होने के नाते श्रीलंका की हर संभव मदद की। व्यापार, तकनीक, निर्माण और सैन्य सहयोग देकर भारत ने श्रीलंका को एक मजबूत देश बनाने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।