Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

पीएम नरेंद्र मोदी के सुरक्षा दस्ते में शामिल हो रहे मुधोल कुत्ते क्यों हैं खास?

हमें फॉलो करें पीएम नरेंद्र मोदी के सुरक्षा दस्ते में शामिल हो रहे मुधोल कुत्ते क्यों हैं खास?

BBC Hindi

, बुधवार, 24 अगस्त 2022 (07:48 IST)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा का जिम्मा संभाल रहे स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप ने देसी प्रजाति के बेहद फुर्तीले मुधोल कुत्तों को शामिल करने का फैसला किया है। पीएम के सुरक्षा दस्ते में शामिल करने के लिए इन्हें ट्रेनिंग दी जा रही है। देसी नस्ल के इन कुत्तों की खासियतें आपको चौंका सकती है। ये कुत्ते सिर्फ़ ज्वार की रोटी के एक टुकड़े पर भी ज़िंदा रह सकते हैं।
 
बहुत कम खाने पर ज़िंदा रहने वाले ये कुत्ते मक्का, दाल या फलियों से बनी आधा किलो दलिया से भी काम चला सकते हैं। फ़िलहाल केनाइन रिसर्च इनफॉरमेशन सेंटर (सीआरआईसी) मुधोल में इन कुत्तों की ट्रेनिंग चल रही है।
 
मुधोल कर्नाटक के बगलकोट जिले में है। आजकल यही खाना इन कुत्तों को मिल रहा है। इसके साथ हर दिन दो अंडे और आधा किलो दूध भी मिलता है। पीएम के एसपीजी दस्ते में शामिल करने के लिए मुधोल से पिल्लों को लिया गया था।
 
webdunia
क्या हैं ख़ासियतें
मुधोल कुत्तों के सिर, गर्दन और छाती गहरी होती है। पैर सीधे होते हैं और पेट पतले। कान नीचे की ओर मुड़ा होता है। ग्रेट डेन के बाद देसी नस्लों में यह सबसे लंबा कुत्ता होता है। इसकी ऊंचाई 72 सेंटीमीटर और वजन 20 से 22 किलो होता है। मुधोल कुत्ते पलक झपकते ही एक किलोमीटर तक फर्राटा भर लेते हैं। इन कुत्तों का शरीर किसी एथलीट की तरह होता है और शिकार करने में इसका कोई सानी नहीं है।
 
विशेषज्ञों के मुताबिक मुधोल प्रजाति के कुत्तों की कुछ खासियतें चौंकाने वाली हैं। जैसे, इनकी आंखें 240 डिग्री से लेकर 270 डिग्री तक घूम सकती हैं। हालांकि देसी नस्ल के कुछ कुत्तों की तुलना में इनके सूंघने की क्षमता कम होती है। ठंडे मौसम से तालमेल बिठाने में इन्हें दिक्कत हो सकती है।''

कर्नाटक वेटरिनरी एनिमल एंड फिशरीज साइंसेज यूनिवर्सिटी बीदर के रिसर्च डायरेक्टर डॉ बीवी शिवप्रकाश का कहना है, '' मुधोल प्रजाति के कुत्तों को फैंसी ब्रांडेड खाना नहीं चाहिए। सीआरआईसी में कुत्तों को जो भी दिया जाता है उस खाने पर यह जिंदा रह सकते हैं। अगर मालिक चाहे तो उनके खाने में चिकन मिलायाा जा सकता है। ये ज्वार की एक रोटी खाकर भी जिंदा रह सकता है। ''
 
सीआरआईसी के प्रमुख और यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रोफेसर सुशांत हांडगे ने बीबीसी हिंदी से कहा, ''आप इस कुत्ते को बांध कर नहीं रह सकते। ये खुला घूमना पसंद करता है। सुबह-शाम एक घंटा घूम कर अपना काम बेहद मुस्तैदी कर सकता है। यह वन मैन डॉग है। ज्यादा लोगों पर इसे भरोसा नहीं होता। अमूमन इन कुत्तों को निगरानी के काम में लगाया जाता है। ''
 
साल 2018 में उत्तरी कर्नाटक की एक रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देसी नस्ल के कुत्तों की तारीफ की थी। इसके बाद कई सुरक्षा एजेंसियों ने सीआरआईसी से पिल्लों को लेकर उन्हें ट्रेनिंग देनी शुरू की।
 
एसएसबी राजस्थान ने 2018 में यहां से दो पिल्ले लिए। वहीं सीआरपीएफ बेंगलुरू ने भी दो पिल्ले लिए, सीआईएसएफ हरिकोटा ने एक ( 2019), बीएसएफ टेकनपुर ने चार ( 2020) , वन विभाग बांदीपुर ने दो ( 2020) और इंडियन एयर फोर्स की आगरा यूनिट ने सात, ( 2021,2022) ने सात पिल्ले लिए। रिमोट वेटरिनरी कोर या आरवीसी मेरठ ने 2015 में छह पिल्ले लिए थे।
 
कहां से आते हैं
मुधोल कुत्तों को पहली बार राजा मालोजीराव घोरपड़े ( 1884-1937) के शासन में तवज्जो मिली। आदिवासी शिकार के लिए इन कुत्तों का इस्तेमाल करते थे। मालोजीराव का ध्यान इस ओर गया। यहां तक कि राजा ने ब्रिटेन की अपनी यात्रा के दौरान किंग जॉर्ज पंचम को कुछ मुधोल पिल्ले भी उपहार में दिए थे।
 
सुशांत हांडगे कहते हैं, '' कहा जाता है कि छ्त्रपति शिवाजी महाराज की सेना ने भी मुधोल कुत्तों का इस्तेमाल किया था। '' डॉ. शिवप्रकाश ने कहा, '' अममून ये कुत्ते मुधोल तालुक में ही पाए जाते हैं। अब सीआरआईसी से इन कुत्तों को प्राइवेट ब्रीडर ले जाते हैं। अब महाराष्ट्र, तेलंगाना और दूसरे राज्यों में भी इनका प्रजनन कराया जा रहा है। ''
 
पिछले साल नेशनल ब्यूरो ऑफ एनिमल जेनेटिक्स रिसोर्सेज( एनबीएजीआर), करनाल ने मुधोल प्रजाति के कुत्ते को देसी नस्ल के कुत्ते के तौर पर मान्यता दी और इसे सर्टिफाई किया। इस सर्टिफिकेशन के पास कई प्राइवेट ब्रीडरोंन मुधोल और बगलकोट के आसपास अलग-अलग राज्यों ने रहने वालों के हाथों इन कुत्तों को बेचना शुरू किया।
 
मुधोल तालुक में लोकापुर वेंकप्पा नावालगी ने बीबीसी हिंदी से कहा, '' उनके पास 18 कुत्ते हैं। इनमें 12 मादा और छह नर हैं। हम एक साल में एक बार इनका प्रजनन कराते हैं। मादा एक साल में दो से चार और यहां तक कि दस से चौदह पिल्लों को भी जन्म दे सकती है। कुछ लोग इंजेक्शन नहीं लगाते और ना ही पिल्लों का रजिस्ट्रेशन कराते हैं। यह एक समय लेने वाली प्रक्रिया है। इसलिए ये एक पिल्ले को 12 हजार रुपये में बेचते है। लेकिन जो लोग पिल्लों को इंजेक्शन लगाते हैं और सर्टिफिकेशन कराते हैं वे इसे 13 से 14 हजार रुपये तक में बेचते हैं। इन कुत्तों का जिंदगी अमूमन 16 साल तक होती है। लेकिन अब ये घट कर 13-14 साल हो गई है। ''
 
बेंगलुरू की रश्मि मविनकर्वे ने बीबीसी हिंदी को बताया, '' हमारे यहां एक मुधोल डॉग है। यह काफी मिलनसार है और मेरी तीन साल की बेटी के साथ काफी घुलमिल गई है। ये इतने मिलनसार होते हैं कि बच्चे इन्हें टेडी बियर समझने लगते हैं। लोगों का कहना कि ये काफी तुनकमिजाज होते हैं लेकिन ये सही नहीं है। यह सब इस पर निर्भर करता है कि आप इनकी कैसी परवरिश करते हैं। ये बिल्कुल भी आक्रामक नहीं है। हमारे पास एक समय में ऐसे सात कुत्ते थे।
 
''मर्फी नाम के अपने एक मुधोल कुत्ते के बारे में वे कहती हैं,"इसे महीने में एक बार नहलाया जाता है। फिर भी इसके शरीर से दूसरे कुत्तों जैसी दुर्गंध नहीं आती। हम सप्ताह एक बार इसकी ग्रूमिंग करते हैं। इनका खाना भी सादा है। हम हर दिन इन्हें रागी गंजी और दही के साथ ढाई-ढाई सौ ग्राम खाना देते हैं। इनमें अंडा और 100 ग्राम के करीब चिकन होता है। सप्ताह में इन्हें 100 ग्राम चावल दिया जाता है। साल में एक बार टीका दिलाते हैं। इनकी देखभाल करना काफी सस्ता है।''
 
न्यूज़ीलैंड में प्रशिक्षित सर्टिफाइड केनाइन बिहेवियरिस्ट अमृत हिरण्य ने बीबीसी से कहा, '' मुधोल हाउंड (कुत्ते) या ग्रे हाउंड को आम तौर पर शिकारी कुत्ते माने जाते हैं। अगर भारतीय सेना की इन्फैंट्री में इन्हें खतरे की पहचान करने के बाद हमला कर वापस लौट आने के मकसद से लिया जा रहा है तो ये बिल्कुल मुफीद हैं। दुनिया में सिर्फ मुधोल नस्ल के कुत्तों की आंखें 240 से 270 डिग्री पर घूम सकती हैं। ''
 
वह बताते हैं, '' ये काफी तेजी से दौड़ सकते हैं। दौड़ते वक्त ये लंबी छलांग लगा सकते हैं क्योंकि इनका शरीर काफी पतला होता है। इन्फैंट्री पेट्रोलिंग के लिए ये बेहद कारगर साबित हो सकते हैं क्योंकि ये घने अंधेरे में भी देख सकते हैं। इनकी सुनने की क्षमता हियरिंग एड या मनुष्यों की सुनने की क्षमता से भी ज्यादा होती है।''
 
वह कहते हैं, '' लेकिन अगर इनका इस्तेमाल विस्फोटक, नार्कोटिक्स की खोज या चोरी जैसे अपराध की पड़ताल के लिए इस्तेमाल किया जाए तो ये उतने कारगर साबित नहीं होंगे। क्योंकि मुधोल की सूंघने की ताकत लेब्राडोर, जर्मन शेफर्ड या बेल्जियन मेलिनोइस से कम होती है।''
 
हिरण्य कहते हैं कि कोंबाई या चिप्पारारी जैसे देसी नस्ल के कुत्तों में मुधोल से ज्यादा सूंघने की क्षमता होती है। लेकिन उनकी नजर ज्यादा दूर तक नहीं जाती। लेकिन मुधोल का यही एक पहलू नहीं है।हिरण्य कहते हैं, '' मुधोल की त्वचा ऐसी होती है कि यह शुष्क मौसम में भी ठीक तरह से रह लेता है। महाराष्ट्र और उत्तरी कर्नाटक के मौसम के लिए इनकी त्वचा मुफीद होती है। थोड़ा सा मौसम बदलने के साथ ही इनके शरीर में खुजली या फंगस हो सकते हैं। जब आप निजी तौर पर दस से तीस फीसदी बेहतर कार्यक्षमता के साथ ऐसे कुत्तों को पाल सकते हैं। तो फिर जनता के पैसे से कुत्तों को काम में लगना है तो मुधोल को क्यों न अपनाया जाए।
 
वह कहते हैं, '' दुनिया भर में लोग जर्मन शेफर्ड या बेल्जियन मेलिनोइस को अपनाने की ओर बढ़ रहे हैं। इसकी कई वजह हैं। एक, बेल्जियन मेलिनोइस किसी भी मौसम के बर्दाश्त कर सकते हैं। और यह जर्मन शेफर्ड से छोटा होता है। '' हिरण्य ने कहा, ''आपको याद होगा कि बेल्जियन मेलिनोइस ने ही सूंघ कर ओसामा बिन लादेन का पता लगाया था। विस्फोटक सूंघ कर पता लगाने में एक सेकेंड की देरी भी काफी खतरनाक साबित हो सकती है। लिहाज़ा ऐसे काम में मुधोल को लगाना जोखिम भरा हो सकता है। ''
 
वह कहते हैं, '' पिछले सात-आठ साल में बेल्जियन मेलिनियोस ने 5000 किलो नार्कोटिक्स का सूंघ कर पता लगाया होगा। बेंगलुरू के नजदीक सीआरपीएफ के ट्रेनिंग सेंटर के डॉग ब्रिडिंग सेंटर में इन कुत्तों को ट्रेनिंग दी गई थी।''

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

चाबहार में दफ्तर खोलेगी भारतीय कंपनी, सर्बानंद सोनोवाल ईरान की 3 दिवसीय यात्रा पर