रिएलिटी चेक टीम, बीबीसी न्यूज
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में इन दिनों आम चुनाव हो रहे हैं और भारतवासी इस बात का फैसला कर रहे हैं कि अगले पांच साल किसकी सरकार देश को चलाएगी। चुनाव के इसी त्योहार में भ्रामक और गलत खबरों के प्रसार के मामले भी देखने को मिल रहे हैं।
जहां हर एक वोट की अपनी अहमियत होती है ऐसे में किसी गलत सूचना के आधार पर वोटों का भटकाव होने की गुंजाइश भी बढ़ जाती है, यही वजह है कि कई फैक्ट चेक संस्थान और सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म पर गलत सूचनाओं को जांचा-परखा जा रहा है। ये तमाम बेहद शुरुआती कदम हैं, यह साफ है कि झूठी सूचनाएं जितनी तेजी से फैलती हैं उनका कोई मुकाबला तक नहीं है।
चुनाव अभियान के दौरान ऐसी ही कई गलत और भ्रामक सूचनाओं का अंबार सा लग गया है। आइए, देखते हैं हाल में फैली ऐसी ही कुछ भ्रामक खबरें।
एक खबर बीते कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही है, जिसमें दावा किया जा रहा है कि भारत की मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस पार्टी की नेता और इटली में जन्मी सोनिया गांधी ब्रिटेन की महारानी से भी अमीर हैं। यह एक गलत खबर है, जिसका खंडन छह साल पहले हो चुका था।
भारत जैसे देश में जहां आमदनी में असमानता का होना एक बहुत बड़ा मुद्दा है, वहां किसी बड़ी हस्ती या नेता के बारे में यह बताना कि उनके पास असीम निजी धन दौलत है, उस नेता की छवि को भारी नुकसान पहंचा सकता है।
सोनिया गांधी की संपत्ति से जुड़ी ऐसी खबरें साल 2012 में प्रकाशित हुई थीं। साल 2013 में हफ़िंगटन पोस्ट ने दुनिया के सबसे अमीर लोगों की सूची प्रकाशित की थी जिसमें उन्होंने सोनिया गांधी का नाम भी शामिल किया था। हालांकि बाद में जब सोनिया गांधी ने इस सूची में अपना नाम शामिल करने पर सवाल उठाए तो उन्होंने उनका नाम हटा दिया था।
पिछले लोकसभा चुनाव यानी साल 2014 में सोनिया गांधी ने अपनी कुल संपत्ति नौ करोड़ रुपए बताई थी। जबकि ब्रिटेन की महारानी की संपत्ति इससे काफ़ी ज़्यादा है।
यह मामला भले ही पांच-छह साल पुराना हो लेकिन इस बार के लोकसभा चुनाव के दौरान इसे उठाया जा रहा है, यहां तक की सत्तारूढ़ दल बीजेपी के एक प्रवक्ता ने इस मामले को उठाया। इतना ही नहीं, कई खबरों और पोस्ट में सोनिया गांधी को उनके रंग-रूप और उम्र से ज्यादा ख़बसूरत दिखने पर भी सवाल किया गया। उनकी फर्जी तस्वीरें बनाकर उन्हें भारतीय नैतिक मूल्यों के खिलाफ बताया गया। जबकि हकीकत में वो तस्वीरें हॉलीवुड की एक मशहूर अदाकारा की थीं।
एक और खबर जो बीते दिनों से सोशल मीडिया पर काफी फैलाई गई वह भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शैक्षणिक योग्यता से जुड़ी है। गुजरात से आने वाले नरेंद्र मोदी एक चाय बेचने वाले के बेटे थे। उन्होंने अपनी चायवाले की छवि को बीते कई चुनावों में काफी अच्छे से भुनाया है। उन्होंने अपनी शैक्षणिक योग्यता में खुद को पोस्ट-ग्रेजुएट बताया है।
इस बीच एक वीडियो सोशल मीडिया पर फैलाया जा रहा है जिसमें नरेंद्र मोदी को यह कहते हुए दिखाया जा रहा है कि उन्होंने हाईस्कूल (10वीं कक्षा) से आगे पढ़ाई नहीं की। इस वीडियो को कांग्रेस पार्टी के समर्थक काफी शेयर कर रहे हैं।
असल में यह वीडियो काफी पुराना है और शेयर किए जा रहे वीडियो में पूरे साक्षात्कार का छोटा सा अंश ही दिखाया जा रहा है। इसी वीडियो में नरेंद्र मोदी आगे बताते हैं कि उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा डिस्टेंस एजुकेशन के माध्यम से पूरी की है। इस सच्चाई के बावजूद भी नरेंद्र मोदी की शिक्षा से जुड़ा वीडियो फेसबुक, ट्विटर और यू-ट्यूब पर काफी तेजी से फैलाया जा रहा है।
वो 'सर्वे' जो कभी हुआ ही नहीं
सोशल मीडिया पर कई बार फर्जी सर्वे और ऐसे अवॉर्ड्स के बारे में बताया जाता है जो हकीकत में कभी होते ही नहीं। ऐसी ही एक झूठी खबर संयुक्त राष्ट्र के संगठन यूनेस्को के हवाले से फैलाई जा रही थी जिसमें बताया जा रहा था कि यूनेस्को ने नरेंद्र मोदी को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ प्रधानमंत्री घोषित किया है। यह खबर पूरी तरह गलत है क्योंकि यूनेस्को कभी भी इस तरह के अवॉर्ड नहीं देता। फिर भी यह खबर चुनावी प्रचार के दौरान काफी फैलाई जा रही है।
इसी तरह से बीबीसी के नाम पर भी कई फर्जी सर्वे फैलाए जाते हैं जैसे बीबीसी के नाम से एक सर्वे के आधार पर यह बताया गया कि कांग्रेस पार्टी दुनिया की सबसे भ्रष्ट राजनीतिक पार्टी घोषित हुई है।
इसी तरह बीबीसी के नाम से एक और झूठी खबर फैलाई जा रही है जिसमें दावा किया जा रहा है कि बीबीसी ने चुनावों में बीजेपी की जीत बताई है। वहीं बीबीसी के ही नाम से एक अन्य खबर में कांग्रेस के चुनाव में आगे रहने की बात भी फैलाई जा रही है। बीबीसी ने इस तरह की ख़बरों पर साफ़ किया है कि उन्होंने भारत में चुनाव से जुड़ा ऐसा कोई सर्वे नहीं किया है।
नकली उंगलियां?
चुनावी अभियान के दौरान मतदान प्रक्रिया से जुड़ी कई झूठी जानकारियां भी फैलाई जा रहा हैं। भारत में मतदान के दौरान मतदाता की उंगली पर नीले रंग की स्याही लगा दी जाती है, जिससे यह पहचान की जा सके कि उन्होंने अपना वोट डाल दिया है।
चुनाव के दौरान एक झूठी खबर फैलाई जा रही है जिसमें दावा किया जा रहा है कि एक तरह की नकली उंगली की मदद से लोग दोबारा वोट डालने में कामयाब हो रहे हैं।
इस खबर में बताया जा रहा है कि पहली बार वोट डालते समह नक़ली उंगली पर नीली स्याही लगाई गई और दूसरी बार वोट डालने के लिए असली उंगली का इस्तेमाल किया गया।
फेक न्यूज से कैसे निपटा जाए?
फेक न्यूज से निपटने के लिए कई समाचार संस्थानों और सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म पर अलग-अलग तरह के कदम उठाए जा रहे हैं। फिर भी यह एक बडी चुनौती बना हुआ है।
मेलबर्न की डीकिन यूनिवर्सिटी में सोशल मीडिया और भारतीय राजनीति की पढ़ाई करने वाली प्रोफेसर ऊषा रोड्रिग्ज कहती हैं कि किसी के निजी मैसेज बॉक्स में कौन सी सूचनाएं आ रही हैं और वह उसे आगे शेयर कर रहा है इसे नियंत्रित करना बहुत मुश्किल काम है।
वे कहती हैं, 'जो लोग किसी खास विचारधारा या खबर के प्रभाव में आ जाते हैं, उन्हें अगर खबर की सच्चाई बता भी दी जाए तो वे उसे मानते नहीं हैं।' इसी का फायदा उठाते हुए राजनीतिक दलों के आईटी सेल लगातार ग़लत सूचनाओं से भरी खबरें फैलाते रहते हैं।'
एक अंतरराष्ट्रीय फ़ैक्ट चैक नेटर्वक के साथ काम करने वाली कंचन कौर बताती हैं कि गलत जानकारियों वाले संदेश उन ग्रुप्स में फैलाए जाते हैं जहां पहले से ही उस मामले पर पूर्वाग्रह बना हुआ हो, इस तरह के संदेश उसे और मज़बूत कर देते हैं।
इंडिया कनेक्टेड नामक किताब की सह-लेखिका शालिनी नारायण के मुताबिक आमतौर पर फर्जी खबरों से जुड़े वीडियो वायरल किए जाते हैं क्योंकि लोगों को अपनी आंखों-देखी पर जल्दी विश्वास होता है।